कोरोना वायरस आज लगभग पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। हर देश अपनी क्षमता के अनुसार इसके संक्रमण को रोकने में पूरी तरह व्यस्त है। किसी हद तक उन्हें सफलता भी मिल रही है।
इसका राज़ वहां के लोगों के बीच एकता और अखंडता में है। जहां-जहां कोरोना वायरस ने अपना कहर बरपाया है, वहां के लोग एक साथ मिलकर इस मुसीबत का सामना कर रहे हैं।
उनके यहां कोरोना वायरस की लड़ाई में ना कोई हिन्दू है और ना ही कोई मुसलमान और ना कोई किसी दूसरे को कोरोना वायरस फैलाने का ज़िम्मेदार ठहरा रहा है। भेदभाव किए बगैर सब एक साथ कोरोना वायरस से लड़ रहे हैं।
भारत में स्थिति अलग है
दुनियाभर के मुल्कों की तुलना में हमारे देश में एक अलग ही द्श्य है। इस समय इंडिया में कोरोना वायरस का कहर कम और धार्मिक नफरतों का कहर ज़्यादा है।
यहां पर लोग एक-दूसरे के खिलाफ नफरत की आग में जल रहे हैं। इस आग में घी डालने का काम हमारे मुल्क की मीडिया कर रही है। दिन रात एक विशेष समुदाय के खिलाफ नफरत और झूठी खबरें फैलाना कुछ न्यूज़ चैनलों का पेशा बन गया है।
ज़रूरत की चीज़ों की खरीदारी में भी हिन्दू-मुसलमान हो रहा है
भारत की भोली-भाली जनता को इंसान से हैवान बनाने में इसी गोदी मीडिया का बहुत बड़ा रोल है। पिछले कुछ सालों से अफवाह और फेक न्यूज़ के ज़रिये मुसलमानों को बदनाम करना एक आम बात हो गई है।
मुसलमानों के खिलाफ फैलाई गई नफरतों का आलम यह है कि अब गाँव के लोग भी मुसलमानों से दूरी बनाने लगे हैं और भेदभाव करना शुरू कर दिया है।
कई जगहों पर तो लोगों ने आर्थिक बहिष्कार भी शुरू कर दिया है। साग-सब्ज़ी और ज़रूरत के सामानों में भी कुछ लोगों ने हिन्दू-मुसलमान करना शुरू कर दिया है।
भारत को यह कौन सी दिशा दी जा रही है?
ऐसे लोगों से मैं पूछना चाहता हूं कि आखिर आप भारत को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं? क्या ऐसा करने से हमारा मुल्क कभी उन्नति कर पाएगा? क्या आप एक विशेष समुदाय का आर्थिक बहिष्कार करके अपने मुल्क को नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं?
आज आप जिन नेताओं के कहने पर आपसी भाईचारा खराब कर रहे हैं, अगर कल आपको या आपके परिवार को कुछ होता है तब क्या वे लोग आपकी सहायता को आएंगे?
क्या नफरत की आग में जलाकर आप आराम से रह पाएंगे? आखिर आपकब तक नफरत फैलाने वालों का साथ देते रहेंगे?
मेरे दोस्तों, यह चार दिन की ज़िंदगी है मुहब्बत में गुज़ार दो और अभी भी वक्त है अपनी आंखें खोलो वरना एक दिन हम सब को बहुत पछताना पड़ेगा। राहत इंदौरी के शेर से मैं अपनी बात खत्म करता हूं।
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पर सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।