भारत में कोरोना से संक्रमित मरीज़ों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी थमने का नाम नहीं ले रही है। पिछले 24 घंटो में लगभग 3525 मरीज़ और संक्रमित हो चुके हैं।
भारत कोरोना के मामले मे अब चीन के पीछे चल रहा है। चीन में जहां अभी कोरोना के मरीज़ों की संख्या 82,926 है, वहीं भारत मे कुल मरीज़ों की संख्या 70,286 है। पूरी दुनिया में यूएसए में मरीज़ों की संख्या सबसे अधिक 14,08,000 है।
भारत में महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु इस मामले में टॉप तीन मे हैं। महाराष्ट्र मे सबसे ज़्यादा मरीज़ों की संख्या 23,401 है। भारत में लॉकडाउन का यह तीसरा चरण चल रहा है लेकिन संक्रमण के थमने की खबर कहीं से भी नहीं आ रही है।
क्या भारत में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका है?
देश में कई मरीज़ ऐसे भी पाए गए हैं जिनकी कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं रही है फिर भी वे संक्रमित हो गए हैं। ऐसे में अब लग रहा है कि कोरोना का कम्यूनिटी ट्रांसमिशन शुरू हो चुका है लेकिन हमारी सरकार इसे मानने से इंकार कर रही है।
अब सरकार से सवाल यह है कि जब तक आप देश की स्थिति को स्वीकार नहीं करेंगे तो आप कैसे ईमानदारी से इस संक्रमण के खिलाफ स्ट्रैटजी बना सकेंगे?
सोशल डिस्टेंसिंग का उड़ाया जा रहा है मज़ाक
भारत में शुरुआती दिनों में लॉकडाउन का सही से पालन हो रहा था मगर अचानक से सोशल डिस्टेंसिंग का मज़ाक बनाते हुए सरकार शराब दुकानों को खोलने की आज़ादी दे देती है।
अभी कुछ दिनों पहले जब तब्लिगी जमात में लोग इकट्ठा हुए थे तब उसे धर्म का खूब जामा पहनाया गया और कोरोना के फैलने का श्रेय सिर्फ एक ही धर्म को दे दिया गया।
मगर आज उसी सरकार को सोशल डिस्टेंसिंग की याद नहीं आती है जब शराब से सबसे अधिक राजस्व के नाम पर शराब के दुकानो में लंबी लाइनें लगने की इजाज़त दे देती है। वहीं, कुछ बुद्धिजीवी लोग इन शराबों के लिए लाइन में खड़े लोगों के ऊपर फूल फेंककर उनका स्वागत कर रहे हैं।
मज़दूरों से डबल किराया वसूलने की खबरें
सरकार द्वारा मज़दूरो को घर पहुंचने के नाम पर 85 प्रतिशत सब्सिडी के साथ श्रमिक ट्रेनें चलाई गईं मगर इस सब्सिडी के नाम पर कई जगहों से खबरें आईं कि मज़दूरों से डबल किराया वसूला गया।
केंद्र सरकार, राज्य पर आक्षेप लगा रही है और राज्य सरकार केंद्र पर आक्षेप लगा रही है कि निःशुल्क यातायात आपके ज़िम्मे है फिर उनसे अधिक किराया क्यों लिया जा रहा है।
कई मज़दूरो के पास अपना आईडी प्रूफ भी नहीं है जिससे वे ट्रेन में यात्रा कर अपने घर पहुंच सकें। कई मज़दूर ट्रेन की पटरियों के ज़रिये ही घर के लिए रवाना होने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में कुछ मज़दूर ट्रेन से कटकर मर भी जाते है और देश की आधी आबादी कहती है कि रेलवे ट्रेक में सोने की क्या जरूरत थी?
मगर यह कोई नहीं पूछता कि रेलवे ट्रेक से घर के लिए निकलने और रास्ते में ही सो जाने की नौबत क्यों आई? फिर सरकार इन मज़दूरों के लिए मुआवज़े का ऐलान करती है फिर भी कोई यह नहीं पूछता कि ये मुआवज़े की रकम वाली सुविधा पहले क्यो नहीं दी?
फिर मज़दूरो के ट्रेन के साथ-साथ यात्री ट्रेन शुरू की जाती है जिनमें जनरल और स्लीपर की कोई जगह नहीं है, सिर्फ एसी कोच ही मौजूद हैं। मज़दूरो के लिए ट्रेन शुरू करना तो एक बहाना था। आखिर अगले स्टेप में उन्हें अपर क्लास एसी ट्रेनें जो शुरू करनी थी।
मज़दूरों के मौलिक अधिकारों को खत्म करने की साज़िश
लॉकडाउन की वजह से उद्योग धंधे पूरे ठप हो चुके हैं। इससे उबरने के लिए भी सारा बोझ मज़दूरों के कंधों में डालते हुए उनके मौलिक अधिकारों को ही खत्म किए जा रहे हैं। पहले उत्तरप्रदेश फिर मध्यप्रदेश फिर महाराष्ट्र अब देखते-देखते और राज्य भी श्रम कानून खत्म करने की ओर बढ़ रहे हैं।
इन कानूनों के खत्म होने से अब उत्पादन में वृद्धि के लिए मज़दूरों से सप्ताह में 72 घंटे काम ली जाएगी। मज़दूरो के साथ किस स्तर का शोषण हो रहा है, वह कल्पना से परे है। लेबर इंस्पेक्टर अब उद्योगो की जांच नहीं कर सकता है।
अब छोटे उद्योग जहां 50 से कम श्रमिक हैं वे उद्योग की श्रेणी में नहीं आएंगे। मतलब अब इन छोटे उद्योगों में किसी भी कानून का पालन नहीं होगा। इस पूरे मामले को देखकर लगता है कि कोरोना की मार अगर सबसे ज़्यादा कोई झेल रहा है तो वो है मजदूर वर्ग।
सरकार ने ना तो लॉकडाउन से पहले मज़दूरों के बारे में सोचा और ना ही अभी इस बारे में सोच रही है, बल्कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लगातार मज़दूरों की आहुति दी जा रही है। कब तक सरकार मज़दूरो की लाशों से अर्थव्यवस्था की नींव तैयार करेगी?
संदर्भ- आज तक, एनडीटीवी, एबीपी न्यूज़, हिन्दुस्तान. पत्रिका