हम सब पांच-छह साल की उम्र से ही मिलकर एक-दूसरे के साथ खेला करते थे। एक साथ खेलने के कारण हमारे बीच एक गहरी दोस्ती हो चुकी थी। दूसरा मेरे अंदर खुलापन भी ज़्यादा है इस वजह से मैं किसी भी बात को बोलने से हिचकता नहीं हूं। लेकिन इसके बाद भी 15 साल की उम्र में मेरी दोस्त ब्यूटी (बदला हुआ नाम) से घर के दरवाज़े के पास बैठाकर उसकी दादी उससे जो काम करवा रही थीं, उस बारे में कुछ भी पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हो पा रही थी।
कोहरे वाली एक ठंडी सुबह में रोज की तरह मैं अलाव तापने ब्यूटी के घर पहुंचा था। मैंने देखा कि उसकी आंखें डबडबायी हुई थी। उसके हाथ में रील वाले डोर का एक टुकड़ा था। इस डोर को ज़मीन पर उत्तर और दक्षिण दिशा में रखा गया था और उस डोर पर ब्यूटी अपनी उंगलियों से डोर को काटने के अंदाज में एक रेखा खींच रही थी। मैं वहां जब पहुंचा तो देखा कि वह अपना हाथ सलवार के अंदर डाल रही थी। मुझे उसी समय लगा कि वो अपने प्राइवेट पार्ट को स्पर्श कर रही है।
इससे पहले कि मैं कुछ और देख पाता मुझे वहां से उसकी दादी ने यह कहते हुए भगा दिया कि यह सब मर्दों को नहीं देखना चाहिए। यह सब देखकर मेरा मन कौतूहल की तमाम तरह की कल्पनाओं से सराबोर हो रहा था।
हालांकि उस समय तक मैं मासिक धर्म के बारे में थोड़ा बहुत हाई स्कूल की जीव विज्ञान की किताब में पढ़ चुका था। फिर भी ब्यूटी के घर पर हो रहे इस घरेलू क्रिया-कलाप के बारे में मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। उस समय यह बात किसी से पूछने में भी डर लग रहा था। ब्यूटी भी अब बड़ी हो चुकी थी और मैं उससे भी सीधे यह बात नहीं पूछ पा रहा था।
फिर पिछले एक-दो साल से मैं पीरियड के बारे में कुछ ज़्यादा ही पढ़ने और लिखने लगा। इस बीच Youth Ki Awaaz के कैम्पेन ने इसके बारे में फैले और भी मिथकों को जानने के लिए मुझे प्रेरित किया। ब्यूटी और मैं अब परिपक्वता की ओर अग्रसर थे। अभी जल्द ही उसके साथ मुझे डॉक्टर के यहां जाने का मौका मिला। वह मेरी बाइक पर बैठी हुई थी। मैं मौका देखकर उससे 11 साल पहले घटी उस घटना के बारे पूछने लगा।
वह एक बार तो सकपका गई लेकिन जब मैंने उससे कहा कि मुझे पीरियड्स के बारे में लिखना है। इस पर लोगों को जागरूक करने के लिए मुझे इसके बारे में जानना ज़रूरी है, तो वह बताने के लिए तैयार हो गई।
ब्यूटी ने बताया, “उस दिन सुबह मैं सलवार में लगा खून देखकर डर गई थी। मम्मी को जब मैंने यह बात बताई तो उन्होंने एक कपड़ा देते हुए कहा कि इसी से खून पोछ लो और यह अब हर महीने होगा, फिर 4-5 दिन में ठीक हो जाएगा।”
ब्यूटी ने बताया कि इसी बीच मेरी दादी को जब यह बात पता चली तो वो एक डोर पर मेरे पीरियड के गन्दे खून से आड़ी रेखाएं खिंचवाने लगी। दादी का कहना था कि डोर के जितने काल्पनिक टुकड़े इस खून की रेखा से कटेंगे उतने दिन ही तुम्हारी पीरियड अवधि होगी साथ ही इससे पीरियड के दिनों में दर्द भी कम होगा।
ब्यूटी ने आगे बताते हुए कहा, “मुझे याद है कि उस दिन वह डोर तीन टुकड़ो में बंटा था लेकिन इसके बाद भी मुझे पीरियड 6 दिन तक आया था।” उसने मुझे ये भी बताया कि उसकी दादी ने उसे समझाया कि जो कपड़ा वह प्रयोग करे उसे ऐसी जगह फेंके जहां कोई महिला उसको पार करते हुए न जाए। उसकी दादी ने उसे बताया था कि अगर उसके द्वारा प्रयोग किया गया कपड़ा कोई महिला लांघ जाती है तो उस महिला का पीरियड अनियमित हो जाएगा।
इतना बताने के बाद जब ब्यूटी से मैंने पूछा कि क्या तुम्हें ये सब सही लगता है? तो उसने कहा कि मुझे उस समय सही लगा था लेकिन अब नहीं। मुझे लगता है कि यह सब ढकोसला है लेकिन प्रथाओं के नाम पर इसे करना पड़ता है। फिर उसने मुझसे कहा कि कभी-कभी वह यह सब नहीं करती है।
मैंने उससे कहा कि अगर तुम पढ़-लिखकर इन ढकोसलों में पड़ती हो, तो फिर तुम्हारी पढ़ाई के क्या मतलब? मैंने उससे कहा कि उसे इन सब अंधविश्वासों को अपनी अन्य सम्बन्धियों जैसे छोटी बहन को करने से रोकना चाहिए और जितना हो सके लोगों को इस संबंध में जागरूक भी करना चाहिए।
नोट: विवेक YKA के तहत संचालिच इंटर्नशिप प्रोग्राम #PeriodParGyaan के मई-जुलाई सत्र के इंटर्न हैं।