कोरोना के दुष्प्रभाव से वैसे ही पूरा देश परेशान है। इससे सबसे बुरी तरीके से बिहार में मक्के की खेती करने वाले किसान और व्यापारी प्रभावित हुए हैं। फसल लगभग तैयार है लेकिन बाज़ार में इसकी कीमत इतनी कम है कि किसान परेशान हैं। उन्हें इसका उचित दाम ही नहीं मिल पा रहा है।
बारिश के बाद अब बाज़ार की मार झेल रहा है किसान
बेमौसम बारिश और लगातार वृहद रूप में ओलावृष्टि से हुई फसल के नुकसान के कारण किसान पहले से ही बहुत परेशान थे। बीते साल 2019 में मक्के की खेती करने वाले किसानों ने लगभग ₹2100 से ₹2300 प्रति क्विंटल की दर से मक्के को बाज़ार में बेचा था। इस बार इसी मक्के की कीमत 1100₹ से 1200₹ प्रति क्विंटल भी नहीं मिल पा रही है।
बिहार के हिस्से का यह एक मात्र ऐसा फसल है जिसकी मांग अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में बहुत ज्यादा है। इसी मक्के से मुर्गी का दाना बनता है जिसे तमाम मुर्गी फार्म में मुर्गें और मुर्गियों को भोजन के रूप में दिया जाता है। मक्के का सूप स्वीट यानि कॉर्न सूप भी इसी से बनता है। जिसे लोग पांच सितारा होटल में भी बड़े चाव के साथ पीते हैं। बड़े-बड़े सिनेमाहॉलों में जो पोप कॉर्न मिलता है, वो भी इसी मक्के से बनता है।
बिहार के आधे से अधिक ज़िलों के किसान हैं परेशान
बिहार के कुल 11 ज़िले हैं जहां वृहद रूप से मक्के की खेती होती है। वो ज़िले भागलपुर, खगड़िया, समस्तीपुर, कटिहार, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, सहरसा, मधेपुरा और नवगछिया हैं। इसके अलावा देश में मक्के के कुल उत्पादन का 30 से 40 फीसदी उत्पादन अकेले बिहार के ये हिस्से करते हैं।
बिहार सरकार ने इस वर्ष ₹1760 समर्थन मूल्य घोषित किया है लेकिन नवगछिया, खगड़िया, पूर्णिया और भागलपुर तक के किसानों ने बताया कि कहीं भी फसल की खरीद का कोई केन्द्र नहीं खुले हैं, और तो और लॉकडाउन की वजह से अन्य प्रदेशों से भी कोई व्यापारी अब तक मक्के के खरीददारी के लिए नहीं आए हैं।
रास्ते पर बिखरा पड़ा है अनाज
राष्ट्रीय राजमार्ग 31 मानसी, खगड़िया ज़िले में नवगछिया से लेकर पूर्णिया तक सड़क के दोनों हिस्से में तैयार फैला पड़ा है। फसल की तैयारी के लिए पर्याप्त स्थान से अभाव के कारण किसान फसल की तैयारी एनएच से आस-पास से ही हिस्से में करते हैं। यही हालात कोशी के दियारा क्षेत्र में भी देखने को मिल रहे हैं। मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, मधुबनी में भी किसान फसल को तैयार कर परेशान हैं। फसल का कोई खरीददार ही नहीं मिल रहा है और उचित दाम तो बिल्कुल भी नहीं मिल पा रहा है।
इस क्षेत्र में बाढ़ के बाद कोशी नई मिट्टी छोड़ कर जाती है और यहां की मिट्टी भी बहुत उपजाऊ है। फसल भरपूर होती है लेकिन इस बार हालात अलग हैं। उचित मूल्य न मिलने के कारण लगभग एक हजार करोड़ से अधिक के आर्थिक घाटे का अनुमान लगाया जा रहा है।
अभी भी खरीद केन्द्रों के खुलने से मिल सकती है राहत
किसान, मज़दूर और छोटे व्यापारियों का वर्ग बहुत परेशान हैं। हाजीपुर जोन के सीपीआरओ राजेश कुमार ने इस सम्बन्ध में कहा है कि अब तक 26 रेक मक्के को मुंबई भेजा गया है जिसका वजन 62 हजार 400 टन है।
हालांकि अगर राज्य सरकार अभी भी मक्का खरीद केन्द्र की शुरुआत शीघ्रता से कर दे तो तो किसान को बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि जैसे ही सरकार 1760 रुपये से खरीद की शुरुआत करती है तो व्यापारियों को भी क्रय मूल्य बढ़ाना होगा। अभी तक कोई खरीददारी नहीं होने के कारण किसान व्यापारियों और बिचौलियों के हाथों औने-पौने दाम पर मक्का बेचने को मजबूर हैं।