केरल देश का वह राज्य है जहां लोगों ने अपने शिक्षित होने के खूबी को अपने सामाजिक विकास के लिए बखूबी इस्तेमाल किया है। इसलिए वहां की जनता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को सिर्फ पहचानती ही नहीं, बल्कि उसको आसानी से सर्वसुलभ बनाने के लिए राजनीतिक वर्ग पर अपना दबाव बनाए रखती है।
वह कभी भी अपने ऊपर किसी राजनीतिक वर्ग को हावी नहीं होने देती है। इसका ही परिणाम है कि कोविड-19 के खिलाफ जंग में भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा केरल की स्वास्थ्य सेवा ज़्यादा चाक-चौबंद नज़र आती है।
बेहतर रोग प्रबंधन आया काम
सरल उपायों से केरल के लोगों के बीच कोरोना संक्रमण रोकने के लिए प्रचार-प्रसार, बेहतर रोग प्रबंधन के ज़रिए महामारी को नियंत्रित करने में सहायक रहा है। त्वरित जांच, संक्रमितों व संभावितों की लगातार तलाश, उनको सावधानी के साथ आइसोलेशन में रखना और लगातार इलाज को केरल सरकार ने अपना बीज मंत्र माना।
कोरोना का पहला मामला सामने आने के सौवें दिन के बाद केरल अपनी स्वास्थ्य सेवा की मुश्तैदी के दम पर यह कहने में सक्षम है कि उसने वायरस के संक्रमण पर नियंत्रण पा लिया है।

लोगों की जीवन शैली और शिक्षित होना आ रहा है काम
ज़ाहिर है केरल के पास बहुत सारी अन्य सकारात्मक परिस्थितियां भी थीं जिनका लाभ उन्हें कोरोना के खिलाफ संघर्ष में मिला है। मसलन, केरल देश का सबसे अधिक शिक्षित राज्य है। बेहतर साक्षरता दर के कारण केरल में लोग कोराना वायरस के लक्षण और उससे सावधान रहने के तरीकों को ज़्यादा आसानी से समझ पा रहे हैं। वहां के लोग समझ गए कि मजबूत प्रतिरोधक क्षमता से सहारे भी कोरोना संक्रमण से लड़ा जा सकता है।
शरीर के प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक सामग्री उनके खान-पान और दैनिक जीवन में ही मौजूद होती है, जैसे पीने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल वहां के सामाजिक जीवन का हिस्सा है, खान-पान में मसालों का उचित अनुपात में प्रयोग भी उनके प्रतिरोधक क्षमता को संतुलित रखता है।
कोरोना वायरस के सक्रंमण से निपटने में सबसे अधिक ज़रूरी है, हाथों की सफाई और सोशल डिस्टेंसिग। 6.8 करोड़ की जनसंख्या वाले केरल में आबादी का घनत्व प्रति किलोमीटर 859 होने के बाद भी शिक्षित आबादी होने के कारण केरल का हर समुदाय इसका पालन सफलता से कर सका।
पुराने अनुभवों का भी हो रहा है लाभ
लगातार वायरसों से लड़ते रहने के अपने अनुभवों का इस्तेमाल केरल ने कोरोना के खिलाफ जंग में भी किया। इसके पहले निपाह वायरस से निपटने का अनुभव भी केरल के पास है।
देशभर में जहां लॉकडाउन 24 मार्च को लगाया गया केरल ने फरवरी में ही इसे राज्य के कई ज़िलों में लागू कर दिया था। वह भी इसलिए क्योंकि शुरूआती दिनों में देश के कुल संक्रमित मरीज़ों में हर पांचवा हिस्सा अकेले केरल से था।
फिलहाल वहां अधिकांश संक्रमित मरीज़ ठीक होकर घर जा चुके हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि कोरोना से मरने वालों की संख्या मात्र तीन है।
स्वास्थ्य ढांचे की बेहतरी वायरस से लड़ने में कर रही है मदद
यह कामयाबी बताती है कि केरल का स्वास्थ्य-ढांचा अन्य राज्यों से बेहतर है। ध्यान देने वाली बात यह है जहां देश के अन्य राज्य सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था के समकक्ष निजी अस्पतालों के निमार्ण में निवेश कर रहे थे।
केरल ने सरकारी चिकित्सा व्यवस्था को दुरुस्त करने में अपना ध्यान लगाया है। केरल ने हर तरह की चिकित्सा विधि को सामान्य रूप से विकसित होने का अवसर दिया, इसका फायदा भी केरल को मिल रहा है।
केरल में विकेंद्रित पंचायती राज-व्यवस्था के कारण सरकार वार्ड स्तर तक लोगों के पास पहुंचने में सफल हो सकी है। जिससे जो लोग घरों में ही आइसोलेशन या क्वारंटीन में थे, उनके घर तक प्रशासन ने तमाम ज़रूरी चीज़ें मुहैया कराई। आइसोलेसन या क्वारंटीन किए जा रहे लोगों के लिए सामाजिक संस्थाएं और आस-पास के लोग भी मददगार की भूमिका निभा रहे हैं, जिससे लोगों को ज़रूरत की सामग्री का अभाव नहीं हुआ।
विदेश आने वाले राज्य के नागरिक हैं अब सरकार की अगली चुनौती
केरल के जो नागरिक विदेशों में रहते हैं वे राज्य के लिए अभी चुनौती के कारण बन सकते हैं, क्योंकि उनकी कुल आबादी काफी संख्या में है। यह आबादी राज्य की अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार भी है।
जब दुनिया भर में कोरोना के कारण नौकरियों का अभाव हो रहा है तब इन बेरोज़गार प्रवासी नागरिकों के साथ केरल कैसे निपट सकेगा? यह चुनौतीपूर्ण है। अच्छी बात यह है कि केरल अब तक राज्य के अधिकांश कोरोना संक्रमित मरीज़ों से निपट चुका है इसलिए उनका पूरा ध्यान अब इन नागरिकों पर होगा।
केरल का कोरोना पर कामयाबी का सबसे बड़ा कारण यहां के चौकस मतदाता भी हैं, जिसके कारण वहां एक परिपक्व लोकतंत्र देखने को मिलता है। केरल ने जिस तरह से कोरोना संकट में पूरी स्थिति पर नियंत्रण स्थापित किया है उससे पूरे देश के दूसरे राज्यों को ही नहीं, बल्कि पूरे देश की व्यवस्था को भी सबक लेना चाहिए।