यह तो आप जानते हैं कि जिस महामारी से पूरी दुनिया त्रस्त है, उसका शुरुआती बिंदु मांसाहार ही है। पशु उत्पादों की पैदावार और उपभोग ना केवल पर्यावरण के लिए बल्कि हमारे व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वास्थ्य दोनों के लिए भी बुरा साबित हो रहा है।
बूचड़खानों से निकले जानवरों के अपशिष्ट के प्रबंधन में की गई अनदेखी ने आज पूरी दुनिया को मौत के सामने खड़ा कर दिया है। इस उद्योग में कार्यरत श्रमिकों, पड़ोसी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और इनके उपभोक्ताओं के लिए एक यह एक बड़ा स्वास्थ्य जोखिम भी पैदा करती है। आबादी में मौजूद इस उद्योग की फैक्ट्री, फार्म पानी के दूषित होने का कारण बनते है।
मांसाहार क्या पर्यावरण को पहुंचा रहा है चोट?
मांसाहार आज न केवल इंसानों का बल्कि पर्यायवरण का भी दुश्मन बन गया है। हमें पर्यायवरण को बचाने के लिए अनेक उपाय सुझाए जाते हैं कि सोलर प्लांट लगाइए, हाइब्रिड गाड़ी चलाइए, आदि। लेकिन अब स्थित इतनी बिगड़ चुकी है कि यह तरीके अकेले कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं।
आज अपनी प्लेट से जानवरों के उत्पादों को हटाना कार्बन फुट प्रिंट घटाने के बेहतरीन तरीकों में से एक है। जीवाश्म ईंधन के उपयोग की गतिविधियों से उत्सर्जित कार्बन की पहचान करना तो आसान है क्योंकि इस का असर सड़क पर प्रदूषण के रूप में फौरन दिखाई देता है लेकिन पशु उत्पादों के लिए गणित इतना सरल नहीं है।
क्या आप जानते हैं?
दुनिया के कुल जीएचजी का 15% से अधिक पशु कृषि से आता है। ये उत्सर्जन पौधों के प्रोटीन के पशु प्रोटीन में बदलने के दौरान होने वाली प्रक्रिया का परिणाम होता है। इसके अलावा खाद प्रबंधन में लापरवाही करने वाले जानवरों में फेरमेंटेशन भी इसका मुख्य कारण है।
खाद्य और भूमि उपयोग प्रणाली द्वारा उत्सर्जित जीएचजी का 50% पारंपरिक पशु कृषि से जुड़ा हुआ है। जैसे-जैसे जानवरों की संख्या बढ़ती है, उनके उत्सर्जन में भी वृद्धि होने की संभावना भी बढ़ती जाती है। मांसाहार का उद्योग भारत में तीसरा सबसे बड़ा जीएचजी उत्सर्जक क्षेत्र है। हालांकि यहां खपत अपेक्षाकृत कम है। पशु-आधारित प्रोटीन की बढ़ती मांग के साथ-साथ यह आंकड़ा चिंताजनक होता जा रहा है।
शाकाहार आधारित खाद्य ही है विकल्प
ये आंकड़े हमें अपने और पर्यायवरण की खातिर शाकाहार आधारित खाद्य विकल्पों पर अधिक ध्यान देने, खेती की परंपरागत नीतियों में बदलाव कर खाद्य सुरक्षा की समस्याओं से निपटने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। पौधे आधारित उत्पाद मीट से बेहतर हैं क्योंकि वे पशु प्रोटीन के मुकाबले 60% तक कम ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। साथ ही इसमें 99% कम पानी और 47% से 99% कम भूमि का उपयोग होता हैं।
मांस के विपरीत यह बहुत ही कम जल प्रदूषण करते हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकलता है कि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने, भूमि और पानी पर बढ़ते तनाव को कम करने और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं जैव विविधता में सुधार के लिए हमें पशु मांस की वैश्विक खपत को कम करना होगा।
दुनिया भर की सरकारें और एजेंसियां पशु उत्पादों से शाकाहार की तरफ शिफ्ट होने का आग्रह कर रही हैं। यही कारण है कि वैकल्पिक प्रोटीन स्रोतों के विकास में वह निवेश कर रही हैं।