ना मेरी कोई आवाज़ है और ना ही मेरी कोई पहचान है
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
ना कोई शहर मेरा है और ना ही कोई सरकार मेरी है
आज बस पैर मेरे हैं और सड़क मेरी है
घर जाने के लिए इस सड़क पर चल रहा हूं मैं
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
अपनी मेहनत से मैंने बड़े-बड़े मकान खड़े किए हैं
अपने पसीने से मैंने शहर बड़े किए हैं,
मगर अपने लिए इन शहरों में एक कमरा भी बना नहीं पाया हूं मैं
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
आज मेरे भूखे-प्यासे बच्चों की आंखों में आंसू हैं
मेरे पैरों में छाले पड़े हैं,
खुद को और बच्चों को झूठी तसल्ली के अलावा कुछ भी नहीं दे पा रहा हूं मैं
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
इस सफर में मेरे कुछ भाइयों ने अपनी जान भी गंवाई है
इसके बावजूद भी सरकार हमारे लिए कोई भी इंतजाम नहीं कर पाई है,
मेरे जैसे मज़दूरों का दुख और दर्द बांट रहा हूं मैं
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
इस सफर में मुझे बैल भी बनना पड़ा है
ट्रॉली बैग को बच्चे के लिए ट्रैन भी बनाना पड़ा है,
इस हालत के लिए खुद पर ही गुस्सा कर रहा हूं मैं
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
बेशक कोरोना ने हमारी ज़िन्दगी उजाड़ दी है
मगर इस वजह से हमारे देश की सच्चाई सामने आ पाई है,
इस नए भारत में मेरी जगह कहां है? यह सवाल खुद से पूछ रहा हूं मैं
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
इस सफर में बहुत सारे लोगों ने हमें मदद का हाथ भी दिया है
जिन्हें हम जानते नहीं थे उन्होंने हमारा साथ भी दिया है,
ऐसे लोगों की वजह से मंज़िल की ओर आगे बढ़ रहा हूं मैं
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
सुनने में आया है सरकार ने बड़े पैकेज का ऐलान किया है
कोई यह भी बताए कि इसमें हमें सरकार ने क्या दिया है?
बड़ा पैकेज नहीं हमारे खाने का और घर जाने का इंतजाम कर दो साहब!
यह गुहार सरकार से लगा रहा हूं मैं
मजदूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं।
कोरोना की वजह से हुआ यह पलायन इतिहास में दर्ज़ किया जाएगा
हमारी ये दास्तां सुनते समय कोई अपने आंसूओं को रोक नहीं पाएगा,
अब फिर से शहर लौटूं या ना लौटूं इसके बारे में फिलहाल नहीं सोच रहा हूं मैं
मज़दूर हूँ मैं, आज मजबूर हूं मैं
याद रखो सभी शहर के लोगों, हमारे बगैर आप कुछ भी नहीं हैं
बस इसकी आपको अभी समझ नहीं आ पाई है,
समय आने पर हम हमारी ताकद भी आपको दिखाएंगे
ऐसा कहकर आज घर जा रहा हूं मैं
मज़दूर हूं मैं, आज मजबूर हूं मैं