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मैं विकलांग हूं और मेरी भी परफेक्ट लव स्टोरी हो सकती है

मुझे बहुत समय लग गया यह समझने में कि मैं भी प्यार कर सकती हूं, मैं भी प्यार के काबिल हूं।मुझे आठवीं क्लास की लंच ब्रेक के दौरान अपने दोस्तों के साथ की हुई बात आज भी याद है। हम लेटेस्ट रोमांटिक कॉमेडी फिल्मों के बारे में बातें कर रहे थे। तभी मेरे दोस्तों में से एक ने बताया कि उसे एक लड़का पसंद है। यह सुनकर हमसब खुश होकर बेवकूफों की तरह खिलखिलाने लगें। फिर सब दोस्तों ने बारी-बारी से बताया कि उन्हें किसपर क्रश है, उन्हें कौन पसंद है। इस दौरान मैं भी मेरे क्रश के बारे में सोचने लगी। हाल ही में मेरा दिल उसपर आया था, ऊपर से वो मेरा पहला पहला क्रश था। मुझे शर्म तो आ रही थी लेकिन मैं अपने दोस्तों को ये सब बताना भी चाहती थी।

लेकिन जब मेरी बारी आई, मैंने देखा कि उनको ये ख्याल ही नहीं आया था कि मुझसे भी ये सब पूछा जा सकता है। जब मैंने कहा कि प्यार के बारे में मेरी बात और मेरी कहानी सुनो, तो उन सब ने हंस कर बात टाल दी। मुझे आज भी याद है। इसके बाद मेरी एक करीबी दोस्त ने कहा था,“तू क्या करेगी प्यार-व्यार करके?” उनमें से एक भी दोस्त ने मेरा समर्थन नहीं किया। शायद उनको लगा होगा कि मैं किसी को प्यार नहीं कर सकती। या मुझे दूसरों से कभी प्यार नहीं मिल सकता।  इस बात ने मुझे बहुत छोटा और मामूली सा महसूस कराया था।

शायद मुझे अपने दोस्तों की बात सुनकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए था। मुझे एक विकलांगता है, इसीलिए मुझे एक लम्बे अरसे तक यही लगता था कि प्यार और विकलांगता का कोई साथ नहीं है। शुरू से यही बताया गया कि प्यार और विकलांगता का कोई साथ नहीं, कि प्यार/शादी की मेरी लाइफ में कोई जगह नहीं है। ऐसा कोई जो मुझे प्यार करे, ऐसे  शख्स को ढूंढना एक दूर का सपना लगता।

मैं जब भी प्यार के ख्वाब बुनने की कोशिश करती, तभी कोई आकर मेरे सपनों पर पानी फेर जाता था। अनजानी आंटियां आकर मेरी माँ से पूछती, “आगे जाकर इसकी शादी में कितनी दिक्कत आएगी ना आप लोगों को?” मज़े की बात यह है कि असली मुद्दों पर उन्होंने कभी नहीं सोचा। जैसे इस बात की संभावना कि मुझे आगे जाकर स्कूल छोड़ना पड़े या मुझे कोई जॉब नहीं मिले या मुझे किसी भी शिक्षण संस्थान में एडमिशन लेने में बड़ी कठिनाई हो। क्योंकि भाई कुछ भी कहो, एक औरत की ज़िंदगी में सबसे इम्पॉर्टेन्ट चीज़ होती है शादी, है ना?

मेरी आठवीं के दोस्तों को मेरी विकलांगता के अलावा कुछ और नहीं दिखता था। वो भूल जाते थे कि किसी सामान्य टीनेजर की तरह, मेरे भी क्रशेज़ हो सकते थे, मैं भी किसी को पसंद कर सकती थी, मैं भी दिन में अपने क्रश से बात करने के सपने देखती थी कि वो मुझे डेट पर ले जाएगा, जैसा फिल्मों में होता है।

जब भी मेरे दोस्त अपनी लव लाइफ के बारे में बात करते थे-उनकी पहली डेट, पहला किस्स- मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं बहुत उत्साह के साथ उनकी बातें सुनती थी। यह सोचती थी कि मैं भी डेट पर जाऊंगी, मेरा भी असली रिलेशनशिप होगा, मेरा भी पहला किस्स होगा। जब कुछ दोस्तों की रिलेशनशिप शुरू हो जाती, तो सब लोग उनके लिए खुश होते थे, उनको बधाई देते थे, जश्न मानते थे। वहीं अगर मैं अपने क्रश का नाम भी ले लेती थी (डेटिंग और प्यार करना तो दूर की बात है) तो सब मुझे समझाने में जुट जाते थे कि यह मेरे लिए कितना खतरनाक हो सकता है, और कैसे कोई मुझ पर दया खाकर ही मेरे साथ रह सकता है।

दया, ख़तरा, शोषण इन शब्दों के साथ समाज ने प्यार से मेरा परिचय कराया था। मैं भी उन शब्दों को निगल गयी, इन बातों को मान गयी।  मैं समझ नहीं पाई कि यह सब सच नहीं है।

“अगर कोई मुझ पर केवल दया के लिए डेट करेगा तो?” “अगर किसी ने मेरा सिर्फ इस्तेमाल करके छोड़ दिया तो?” “क्या मैं दिल टूटने का दर्द झेल सकूंगी?” “अगर ये जो कह रहे हैं वो सही हुआ तो? शायद सही ही है।”

जब भी मैं डेट पर जाने की सोचती, इस तरह के सवाल और ख्याल मेरे दिमाग पर हावी हो जाते थे और मैं तुरंत डेटिंग का ख्याल ही छोड़ देती थी।

प्यार तो कहीं भी, किसी के साथ और किसी भी समय हो सकता है- लोग इस किस्म की कहानियां, कविताएं और कोट्स शेयर करते थे। पर वही लोग मुझे यह भी बताते थे कि कैसे ‘कुछ लोगों के लिए’ यह बातें मायने नहीं रखतीं। मुझे नहीं मालूम था कि मैं किसपर और क्या विश्वास करूं| मुझे नहीं मालूम था कि प्यार की सही परिभाषा क्या होती है, मुझे नहीं मालूम था कि कौन प्यार के काबिल है और कौन नहीं। मैं यह सब कैसे जान सकती थी! आखिर, प्यार तो मेरे लिए बना ही नहीं था- इसी बात को मैंने अपनी सच्चाई मान ली थी।

जब भी मैं ट्रेवल करती हूं, तो म्यूज़िक सुनती हूं। हाल ही में यह गाना सुना, “इन दिनों, दिल मेरा, मुझसे है कह रहा, तू ख्वाब सजा, तू जी ले ज़रा, है तुझे भी इजाज़त, करले तू भी मोहब्बत…” और इसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि मैंने खुद को समाज की धारणाओं में कैद कर लिया है। मुझे इनको तोड़कर बाहर आना है, बहुत समय लग गया यह समझने में कि मैं भी प्यार कर सकती हूं, मैं भी प्यार के काबिल हूं।

प्यार, कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है। पहला क्रश, पहला किस्स, पहला टच, प्यार हो जाना, प्यार का खत्म होना और फिर से प्यार होना। दुनिया की सबसे बेहतर फीलिंग। जब तुम्हारा क्रश तुम्हें मैसेज करे, उससे प्यारी बात और कोई हो सकती है भला? और यह जानना कि वो भी तुमको पसंद करता है, किसी जादू से कम नहीं होता। और जब तुम्हारे दोस्त तुमको तुम्हारे क्रश के नाम से चिढ़ाते हैं, तो उसका अलग ही मज़ा होता है ना? मुझे अपने लिए भी यही सब चाहिए था, लोग क्या कहेंगे, उससे मुझे कोई मतलब नहीं था।

मुझे इस कंफ्यूजन से बाहर निकलना था और यह करने का एक ही रास्ता था। जो भी मैंने अब तक सुना-सीखा था, वो सब भूलना  होगा। ये करने में काफी समय और कोशिश लगी, पर ये नामुमकिन नहीं था। मुझे एक-एक करके उन सारे भ्रमों से बाहर निकलना था तो अब, जब भी कोई मुझे ज्ञान देने लगता, तो मैं पलट कर सवाल करने लगती। लोग बोलते थे कि प्यार का भरोसा नहीं कर सकते, पर मैं सोचती थी, यह बात तो सब पर लागू होती होगी न, किसी को चाहे विकलांगता हो या न हो? लोग बोलते थे कि प्यार में दिल टूटता है, ज़िंदगी उथलपुथल हो जाती है। पर क्या प्यार हर एक को हमेशा बस खुशी ही देता है?

मैंने इसके बारे में चुपचाप, बहुत सोचा और कई लोगों से बातचीत की। विकलांग और सामन्य लोगों, दोनों से। और यह जाना कि प्यार की कभी भी एक परिभाषा नहीं रही है, ना रहेगी। ऐसा नहीं है कि कोई एक खास वर्ग ही प्यार के काबिल है। प्यार सबके लिए है, सबको प्यार करने का मौका मिलता है और उससे बाहर आने का भी। गणित में मेरा हाथ थोड़ा तंग है, पर इतना समझती हूं कि प्रोबैब्लिटी के अनुसार भी, तुमको भी प्यार हो सकता है और मुझको भी।

मुझे मालूम है कि जिन लोगों को विकलांगता है, उन्हें कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ता है, पर हर रिश्ते में कुछ तो एडजस्टमेंट और अलग अलग चाहतें होती ही हैं, ना?

हमें सदियों से सीखाया गया है कि जिन्हें कोई विकलांगता होती है, वो जीवन के हर पहलू में असमर्थ होते हैं, इस सोच को मिटाना मुश्किल है। और एक महिला, जो विकलांगता के साथ ज़िंदगी जी रही है, उसके लिए तो यह और भी मुश्किल होता है। क्योंकि फिर तो लोगों की नज़र आपके ऊपर और भी गढ़ी रहती है और आप उनकी सीमित सोच के और अभी शिकार हो जाते हैं। तुम कैसे प्यार कर सकती हो? तुमसे कौन प्यार करेगा? तुम औरत हो और विकलांग भी, तुम प्यार नहीं कर सकती।

जब प्यार को कोई फर्क नहीं पड़ता, तो हम क्यों फ़िक्र करें? प्यार क्या होता है, बार बार उसकी परिभाषा बनाना बंद कर देना चाहिए।  प्यार किसके लिए है या नहीं, इस बात को लेकर किसी भी खास वर्ग को निशाना बनाना बंद कर देना चाहिए। प्यार करने के और फिर उससे निकलने के नियम बनाना बंद कर देने चाहिए। प्यार प्यार है, उसे प्यार ही रहने दो।


सृष्टि पाण्डेय

अनुवाद : प्राचिर कुमार

सृष्टि पाण्डेय, बीस साल की हैं और LSR से साइकोलॉजी पढ़ रही हैं, उन्हें घूमना इतना पसंद है कि आप उन्हें शहर में, किसी भी समय , किसी भी दिन, घूमते हुए पा सकते हैं।

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