Site icon Youth Ki Awaaz

विल्हेम रीच ने बताया था कि कैसे फासीवादी ताकतें कामगारों के शोषण करती है

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

‘विल्हेम रीच’ ये मनोविज्ञान जगत का ऐसे नाम हैं जिन्हें ‘The Psychoanalyst As Revolutionary’ कहा जाता है। वर्तमान समय में इनके द्वारा लिखित उपन्यास ‘The Mass Psychology of Fascism’ का ज़िक्र बेहद ज़रूरी है।

इस पुस्तक में विल्हेम रीच ने यह बताया है कि समाज में फासीवाद कैसे फैलाया जाता है। लोगों को सम्मोहित कर उनका झुंड में रूपान्तरण किस प्रकार किया जाता है। मनोविज्ञान के जगत में सिग्मंड फ्रायड बाद विल्हेम रीच का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है।

विल्हेम रीच कौन थे?

अपने करियर के दौरान विल्हेम रीच ने अलग-अलग क्षेत्रों में काम किया। जैसे- पुनः चिकित्सा, मनोचिकित्सा एवं सामाजिक मनोचिकित्सा।

हालांकि यह सच है कि विल्हेम रीच ने वास्तविकता के साथ पूरी तरह से जीत हासिल नहीं की है लेकिन यह भी सच है कि इन क्षेत्रों में उनका योगदान असमान्य है।

मनोचिकित्सात्मक अभ्यास में विल्हेम रीच का विश्लेषण

फोटो साभार- सोशल मीडिया
विल्हेम रीच।

मनोचिकित्सात्मक अभ्यास में उनका नवाचार- अर्थात चरित्र विश्लेषण की उनकी पद्धति-आधुनिक मनोचिकित्सा तकनीक का एक अभिन्न अंग बन गई है।

विल्हेम रीच एक क्रांतिकारी भी है। वास्तव में वो एक मनोविश्लेषणवादी तो थे ही लेकिन समाज और राजनीतिक विचारों को प्रतिपादित करने के लिए भी प्रसिद्ध थे। चरित्र विश्लेषण की पद्धति, संभोग सिद्धांत और सामाजिक एवं राजनीतिक सिद्धांत उनका महत्वपूर्ण पक्ष है।

विल्हेम रीच ने कार्ल मार्क्स को पढ़ने का संकल्प लिया

इस दौरान कार्ल मार्क्स का नाम इतनी बार सामने आया कि विल्हेम रीच ने खुद के लिए मार्क्स को पढ़ने का फैसला किया। उन्होने निश्चय किया कि वो मार्क्स की रचनाओं को उसी उत्सुकता और एकल मन से पढ़ेगे जैसे उन्होंने कुछ साल पहले सिग्मंड फ्रायड को पढ़ा था।

इसी दौरान विल्हेम रीच 1924 में सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुए और पार्टी के एक बहुत सक्रिय सदस्य बन गए। उन्होंने मुख्य रूप से भर्ती और शिक्षा में काम किया। वह पार्टी द्वारा अपने राजनीतिक मंच के साथ-साथ मानवतावादी सुधारों के बारे में अधिक चिंतित थे।

मज़दूर वर्ग के शोषण के विरुद्ध मज़बूत आवाज़ उठाई थी विल्हेम रीच ने

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- राजकमल पंडित

लेकिन जब विल्हेम रीच ने मार्क्सवादी आधार को स्वीकार किया कि मध्यम वर्ग के मालिकों और प्रबंधकों द्वारा मज़दूर वर्ग का शोषण किया गया, तो उन्होंने लोगों में एक क्रांतिकारी भावना का पता लगाया।

मार्क्स द्वारा अनुमानित जनता का विद्रोह थमने का नाम नहीं ले रहा था। इस बिंदु पर विल्हेम रीच को यह प्रतीत हुआ कि ना तो मार्क्सियन और ना ही फ्रायडियन  सिद्धांत कारगर है। वास्तव में उनका यह मत था कि मार्क्स के पास पास पर्याप्त मनोविज्ञान का अभाव था जबकि फ्रायड के पास पर्याप्त समाजशास्त्र का अभाव था।

विल्हेम रीच के विचार

विल्हेम रीच ने बिना अधिक विलंब किए यूरोप के परिपेक्ष्य में इन दोनों असफलता के सिद्धान्त को एकीकृत करने के लिए कई तरह के प्रयास किए। उन्होंने तब महसूस किया कि दो सिद्धांतों को एक साथ जोड़ना पर्याप्त नहीं हैं और कुछ नया होना चाहिए। जो कि दो प्रणालियों को एकीकृत करेगा और साथ ही साथ इस समय के सामाजिक और राजनैतिक वास्तविकताओं की व्याख्या करेगा।

इन विचारों के कारण ही विल्हेम रीच द्वारा समाधान के रूप में  “The Mass Psychology of Fascism” (1933) को प्रस्तुत किया गया।

विल्हेम रीच और वर्तमान राजनीति का तुलनात्मक रूप

विल्हेम रीच का स्मरण इसलिए हो रहा है क्योंकि वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष में इनको पढ़ना कितना युक्तिसंगत प्रतीत होता है। जिस प्रकार हिटलर और मुसोलिनी के समय में इटली और जर्मनी मे घटनाएं हुईं, उसी प्रकार वर्तमान भारत में चल रहा है।

जब शासक लोगों की समस्याओं और प्रश्नों का निराकरण करने के लिए सक्षम नहीं होते हैं, लोगों की समस्याओं पर वैज्ञानिक पद्धति से समाधान देने में कमज़ोर होते हैं, तो वे अपनी कमियां अथवा नाकामियां छुपाने के लिए नई-नई युक्तियां खोजते हैं फिर वे उऩ युक्तियों को आम जन के सामने रखते हैं।

जनता को भ्रमित करने वाले कार्य आखिर कब तक किए जाते रहेंगे?

शासको द्वारा यह इसलिए किया जाता है ताकि लोगों को यह आभास हो कि समस्याओं के समाधान के लिए शासक कुछ कर रहे हैं। इन सभी का क्या परिणाम होगा अथवा शासक जिस राष्ट्र का नेतृत्व कर रहे होते हैं उस पर क्या असर होगा, इसका वे विचार तक नहीं करते।

उन्हें केवल यह चिंता होती है कि उनका नेतृत्व और सम्मोहन कैसे टिका रहे। विल्हेम रीच ने यह बताया है कि फासीवादी सोच के ज़रिये समाज और राष्ट्र का निर्माण कैसे होता है।

कोरोना संक्रमण से कितने लोगों की मृत्यु हो चुकी है मगर चिंताजनक बात तो यह है कि इतने लोगों की मौत के बाद भी लोगों द्वारा पटाखे फोड़े जाना नया फासीवाद नहीं तो और क्या है!


संदर्भ- nytimes, bibliotecapleyades.net

Exit mobile version