मन की बात का महत्व बहुत अधिक होता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब व्यक्ति मन से बोल रहा हो तो उसकी बात सीधा लोगों के मन तक पहुंच जाती है।
अगर मैं कहूं कि कोई 8. 3 करोड़ रुपये खर्च करके मन की बात कर रहा है, तो क्या आप मेरी बात पर यकीन करिएगा?
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी अपने लोगों के साथ मन की बात करते हैं। देश की जनता उनकी मन की बातों को सुनती भी है और उनके द्वारा कही गई बातों को अमल भी करने की कोशिश करती है।
आकाशवाणी के माध्यम से की जाती है ‘मन की बात’
आकाशवाणी के माध्यम से मन की बात का प्रसारण महीने के अंतिम रविवार को होता है। जिसका अलग-अलग भाषाओं में भी प्रसारण किया जाता है ताकि देश के हर नागरिक तक प्रधानमंत्री की मन की बात पहुंच सके।
लेकिन अब चर्चा इस बात की होने लग गई है कि ऐसे वक्त पर जब कोरोना वायरस के खिलाफ पूरा देश लड़ाई लड़ रहा हो, तो क्या मन की बात के एपिसोड्स को कुछ महीने के लिए रोका जा सकता है? ऐसा तो नहीं है कि मन की बात के लिए किसी माध्यम की ज़रूरत हो।
कोरोना आपदा के वक्त 8 करोड़ खर्च करके मन की बात कहना बुद्धिमत्ता नहीं है
अगर व्यक्ति मन की बात करना चाहता है तो आजकल माध्यमों की कमी नहीं है। यदि लोग सुनना चाहते हैं तो किसी भी माध्यम से की गई मन की बात लोगों के मन तक पहुंच ही जाएगी। उसके लिए आकाशवाणी के मन की बात की आवश्यकता नहीं है।
हाल ही में सूचना के अधिकार के माध्यम से आई सूचना के मुताबिक मन की बात के एक एपिसोड के लिए 8 करोड़ से ज़्यादा का खर्च आता है। इसमें मन की बात का प्रचार भी शामिल है।
महामारी के दौर में ‘मन की बात’ कार्यक्रम को स्थगित कर देना चाहिए था
ऐसा नहीं है कि इस खर्चे को करने से किसी को कोई फर्क पड़ता हो और ऐसा भी नहीं है कि देश के प्रधानमंत्री को देश की जनता के साथ मन की बात नहीं करनी चाहिए लेकिन क्या मन की बात के एपिसोड्स को कुछ महीने के लिए रोका जा सकता है? इस पर तो चर्चा की जा सकती है।
ऐसे वक्त में जब प्रधानमंत्री को सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर जनता जानती है और जो लोग नहीं जानते उनके लिए मीडिया बताता है कि प्रधानमंत्री ने क्या ट्वीट किया है और क्या कहा है तो क्या मन की बात के कुछ एपिसोड्स को रोककर यह पैसा प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में जमा नहीं करना चाहिए।
प्रधानमंत्री ट्वीट व एप्लिकेशन के माध्यम से भी ‘मन की बात’ कह सकते हैं
ऐसा तो नहीं है की प्रधानमंत्री जो ट्वीट के जरिये या नमो एप्लिकेशन के जरिये या फिर देश के नाम सन्देश के जरिये जो बात रखते हैं, वो उनकी मन की बात नहीं होती। लेकिन अगर फिर कुछ अलग मन की बात है जो कहना है तो वो भी मन की बात हैशटैग के साथ वो कह सकते हैं। जो मीडिया के माध्यम से देश की जनता तक पहुंच सकती है।
ज़रूरी है हम इस कोरोना आपदा के दौर में गैर जरूरी खर्चों से बचें
देश का हर नागरिक अपनी अपनी तरफ से देश के इस नाज़ुक माहौल में सहयोग कर रहा है। लोग अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार मदद भी कर रहे हैं लेकिन क्या देश के प्रधानमंत्री को भी इस तरह के खर्चे से बचना नहीं चाहिए?
डॉक्टर्स अपनी सैलरी छोड़ रहे हैं। अभिनेता अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा दान कर रहे हैं। अलग-अलग चैनल्स पर प्रोग्राम किए जा रहे हैं ताकि देश के मजदूरों और गरीबों तक खाना पहुंच सके।
आम आदमी अपनी बचत में से एक हिस्सा दान कर रहा है। तमाम सरकारी कर्मचारियों द्वारा एक दिन की सैलरी दान के तौर पर दी गई। इतना ही नहीं, एक साल तक उनकी हर महीने की सैलरी को काटने की खबरें आ रही हैं।
इस मुश्किल वक्त में देश ने कहा है कि हम सब एक हैं
इस मुश्किल वक्त में देश ने बताया कि लोग एक हैं और पूरी एकता के साथ लड़ाई लड़ रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री भी अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि देश जल्द-से-जल्द इस लड़ाई को हराए मगर क्या प्रचार में 8 करोड़ से ज़्यादा खर्च होने वाले मन की बात को कुछ महीने के लिए रोका नहीं जा सकता था?
क्या मन की बात में खर्च होने वाले पैसों को कोरोना वायरस की इस लड़ाई में बेहतर जगह पर उपयोग नहीं किया जा सकता था?
इस पर विचार तो करना चाहिए क्योंकि शायद भूखे पेट के लिए रोटी की आवश्यकता ज़्यादा है और मन की बात तो कुछ महीनों बाद भी की जा सकती है। तब तक प्रधानमंत्री के मन की बात को अलग माध्यम से भी सुना जा सकता है।