एक नज़र में शाहजहांपुर
शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश का एक जिला है। इसका मुख्यालय भी शाहजहांपुर में ही है। यह एक ऐतिहासिक क्षेत्र है। इसकी पुष्टि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यहां पर उत्खनन में मिले सिक्कों, बर्तनों और कई अन्य वस्तुओं के सर्वेक्षण के बाद की है।
उत्तर वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय की वस्तुस्थिति तक इस जिले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हमेशा से चर्चा में रही है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1925 के काकोरी काण्ड और 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन तक में इस जिले की प्रमुख भूमिका रही है। इसे शहीदगढ़ या शहीदों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
शाहजहांपुर 27.35 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 79.37 डिग्री पूर्वी देशान्तर के बीच समुद्र तल से 194 मीटर (600 फुट) की ऊंचाई पर स्थित तथा दिल्ली-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गर्रा व खन्नौत नामक दो नदियों के संगम पर बसा है।
संघर्ष करती शहर की दो प्रमुख नदियां
शहर की दो प्रमुख नदियों गर्रा और खन्नौत की हालत बुरी हो चुकी है। गर्रा नदी की ओर से गुज़रते हुए नज़र जब नदी पर पड़ती है, तो उसकी बदतर होती जा रही स्थिति को देखकर मन चिंतित हो उठता है।
सोचने का विषय है कि जो नदियां हमारी पहचान है, वे लगातार अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं। एक परिवार की पहचान जैसे उनके पुरखों से होती है, ठीक उसी तरह किसी शहर की सभ्यता व संस्कृति को सहेजने और उसके विकास में नदियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
लेकिन इसे शाहजहांपुर शहर का दुर्भाग्य कहा जा सकता है कि जिन नदियों ने शहर की पहचान बनाई, वे नदियां आज स्वयं के अस्तित्व को बचाने की जद्दोज़हद में हैं।
बड़े-बुज़ुर्ग अक्सर कहा करते हैं कि जब आने वाली पीढ़ियां अपनी जिम्मेदारियों से किनारा कर लेती हैं, तो वे कुल का तो सर्वनाश करती ही हैं, साथ ही आने वाले भविष्य का भी संपूर्ण नाश कर देती हैं। नदियों को नष्ट किया जाना इसी ओर इशारा करता है।
प्रदूषण की आग में जलती गर्रा और खन्नौत नदी
जो नदी जिले के किसानों के लिए मंगलदायनी थी, आज वह सिकुड़ कर एक विकृत रूप ले चुकी है। आखिर इसके विनाश की मुख्य वजह क्या है? यदि इसकी तह में जाएं तो पाएंगे कि शाहजहांपुर में बढ़ते कल-कारखानों का प्रभाव नदियों के लिये ज़हर बनता जा रहा है।
शाहजहांपुर शहर के उपनगर रोज में रिलायंस थर्मल पॉवर प्लांट ने शहर की नदियों को बहुत अधिक दूषित किया है। प्लांट सिर्फ नदियों के लिए ही ज़हर नहीं बना है, बल्कि इसने शहर की आबो-हवा को भी प्रदूषित कर दिया है।
पिपरौला और जमौर क्षेत्र में स्थापित ‘कृभको श्याम फर्टिलाइजर’ और ‘के आर पेपर मिल’ ने भी नदियों के पानी को ज़हर बना दिया है। आलम यह है कि आप यदि इन क्षेत्रों के आस-पास से गुज़रेंगे तो एक क्षण के लिए भी आंखों को खोलने का साहस नहीं कर पाएंगे।
हवा में तैरते ये विषैलें कण आपको अंधा भी बना सकते हैं। यदि यह कण आपकी सांस की नली में चले जाएं तो आपको दमा का मरीज़ भी बना सकते हैं।
नदियों में गिरने वाले अपशिष्ट पदार्थों ने घोट दिया नदियों का दम
फैक्ट्रियों के घातक रसायनों से युक्त नदी के पानी से सिंचाई करने के कारण यहां के भूमि की उवर्रा शक्ति और फसल को काफी नुकसान पहुंच रहा है। फैक्ट्रियों से निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थ लगातार नदियों में गिरता है।
इन अपशिष्ट पदार्थों के शुद्धिकरण के लिए कोई प्लांट भी नहीं हैं और जो हैं भी वे सिर्फ कागज़ों में चलते दिखाई देते हैं। इन खेतों के अनाजों और सब्जियों को खाकर लोग कई रोगों के शिकार हो रहे हैं।
नदी की लहराती मस्ती को शहर की बढ़ती आबादी ने सीमाओं में बांध दिया है। इंसानी आबादी के बढ़ने की वजह से रेलवे स्टेशन के आगे, सुभाष नगर, ईदगाह, हद्दफ चौकी और ककरां मुहल्ला के पीछे बहने वाली गर्रा नदी अब बिल्कुल पतली हो चली है।
गर्रा नदी का इतिहास
शाहजहांपुर गजेटियर के अनुसार, मुगल बादशाह के सिपहसालार बहादुर खां दिल्ली से बिहार प्रांत हाथी खरीदने के लिए जा रहे थे। इधर से गुजरने पर बहादुर खां ने मल्लाह से नदी पार कराने का हुक्म दिया। इस पर मल्लाह ने साफ इंकार करते हुए कहा हम तो सिर्फ एक ही राजा, राजा दयाराम सिंह यादव को जानते हैं। अगर इतने ही बड़े राजा हो तो पुल बनवा लो। इस तरह बात-बात में नाविक के मुंह से निकली बात ने इस शहर का इतिहास ही बदल दिया। यह बात सन् 1600 के आसपास की है।
राजा दयाराम, राजा भोला सिंह महीपत यादव के सामंत थे। भोला सिंह का राज्य बदायूं, बरेली, पीलीभीत, शाहजहांपुर, फर्रुखाबाद तक फैला हुआ था। पुल निर्माण को बाद दयाराम और बहादुर खां के बीच कई संग्राम हुए। इसके बाद यहां मुगल साम्राज्य स्थापित हो गया। इस तरह नदी ने इस शहर के इतिहास को ही पलट दिया था।
गर्रा का वास्तविक नाम देवहूति है, जो कपिल मुनि की मां मानी जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि मां देवहूति की अत्यधिक तपस्या के कारण उनका शरीर गल-गल कर पानी बन गया।
बाद में इसे ही गर्रा नदी के नाम से जाना जाने लगा। गर्रा नदी पीलीभीत जिले की एक झील से निकली है। रौसर कोठी के पीछे गर्रा व खन्नौत नदियों का मिलन होता है।
सरकार उठा रही है कुछ कदम
प्रदेश की सरकार ने शहर की नदियों के लिए चिंता ज़ाहिर की है। शाहजहांपुर से विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने नदियों की सफाई कराए जाने व सीवर प्लांट लगाए जाने की बात कही है। वहीं शासन की ओर से गर्रा व खन्नौत नदियों पर रिवरफ्रंट बनाये जाने की घोषणा की गई है।
सरकार द्वारा उठाये जा रहे इन कदमों से नदियों को संजीवनी मिल सकती है। खैर, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा कि गर्रा और खन्नौत नदियों को वास्तविक न्याय मिल पाता है या नहीं।