कांच के आइटमों और चूड़ियों के लिए विश्व विख्यात उत्तरी भारत के जनपद फिरोज़ाबाद में कई धार्मिक, आध्यात्मिक व ऐतिहासिक स्थल हैं।
‘वर्ल्ड हेरिटेज डे’ के अवसर पर आज हम आपको इस लेख के माध्यम से फिरोज़ाबाद शहर के कुछ धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों के बारे में बता रहे हैं।
वैष्णो देवी धाम
फिरोज़ाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर हाइवे के किनारे गाँव उसायनी में कटरा-जम्मू कश्मीर स्थित माँ वैष्णो देवी मंदिर की अनुकृति जैसा दिखने वाला एक भव्य देवी मंदिर है।
इसकी दीवारों पर बनाई गई देवियों की प्रतिमाएं और नक्काशी मंदिर की भव्यता में चार चांद लगा रही हैं। कम समय में ही वैष्णो देवी धाम की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।
सिर्फ फिरोजाबाद के ही नहीं, बल्कि आस-पास के ज़िलों से भी श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर में माँ वैष्णों देवी पिंडी रूप में विराजमान हैं। कटरा जम्मू कश्मीर में बने माता वैष्णों देवी मंदिर की भांति इस मंदिर में भी गुफा आकर्षण का केंद्र बिंदु है।
कब हुई थी मंदिर की स्थापना?
14 मार्च 2004 को नगर के प्रमुख उद्योगपतियों एवं गणमान्य नागरिकों ने इस मंदिर की नींव रखी थी। मंदिर का निर्माण धीरे-धीरे प्रारंभ हुआ। कमेटी के पदाधिकारियों द्वारा 11 फरवरी 2010 को वैष्णो देवी मंदिर जम्मू कटरा से अखण्ड ज्योति लाई गई थी।
16 फरवरी 2010 को सम्पूर्ण भारत वर्ष से आए विद्वानों द्वारा गाजे-बाजे के साथ वैष्णो देवी मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई। 87000 वर्ग फिट भूमि पर बने 141 फिट ऊंचे मंदिर के भवन में 17 देवी-देवताओं की स्थापना की गई है।
भव्य मन्दिर के ऊपर 501 फिट की गुफा का निर्माण कर उसमें माँ वैष्णो देवी की पिण्डी और 201 फिट में भैरो बाबा की गुफा का निर्माण ओड़िशा के कारीगरों द्वारा किया गया था।
यहां चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रों में हर वर्ष मेला लगता है, जहां हज़ारों की संख्या में अटूट श्रद्धा भाव के साथ दूर-दूर से श्रदालु माँ वैष्णो देवी की पिण्डी व भैरो बाबा के दर्शन, पूजा-अर्चना और प्रसाद वितरण के लिए आते हैं।
मनोकामना पूर्ण होने पर भक्तों द्वारा मंदिर में नेजा भी चढ़ाए जाते हैं। माँ के दर्शन के लिए सुभाष तिराहा फिरोज़ाबाद से वैष्णो देवी धाम के लिए रोडवेज़ बस के अतिरिक्त ऑटो और ई-रिक्शा से भी पहुंचा जा सकता है।
छदामीलाल जैन मंदिर
यहां से शहर के लिए निकलते हैं तो बस स्टैंड से पहले शहर के मुख्य सुभाष तिराहे पर एक भव्य जैन मंदिर है। जिसकी स्थापना स्वर्गीय सेठ छदामी लाल जैन ने की थी। यहां पर मंदिर के हॉल में भगवान महावीर जी की सुन्दर मूर्ति पदमासन की मुद्रा में स्थापित है।
इस सुन्दर और विशाल मंदिर में 2 मई 1976 को 45 फिट लंबी और 12 फिट चोड़ी भगवान बाहुबली स्वामी की मूर्ति स्थापित की गई है। मूर्ति का वजन कुल 130 टन है। यह उत्तरी भारत की पहली तथा देश की पांचवी बड़ी प्रतिमा है।
चंद्रप्रभु की भी सुन्दर प्रतिमा मंदिर में स्थापित है। सम्पूर्ण भारतवर्ष से हज़ारो की संख्या में जैन मतावलंबी महावीर दिगंबर जैन मंदिर के दर्शनार्थ आते हैं।
ख्वाजा फिरोज़ खान का मकबरा
जैन मंदिर से कुछ ही दूरी पर शहर की तरफ नगर निगम के सामने ख्वाजा फिरोज़ खान का मकबरा है। किवदंती है कि एक बार बादशाह अकबर के नवरत्न राजा टोडरमल वर्तमान फिरोज़ाबाद से होकर गुजर रहे थे।
मार्ग में लुटेरों ने उन्हें लूट लिया। वापस जाकर राजा टोडरमल ने बादशाह से शिकायत की और एक सिपहसालार फिरोज खान को लुटेरों के दमन के लिए तत्काल भेजा।
फिरोज़शाह ने इस स्थान पर सैनिक छावनी बना ली। फिरोजाबाद की स्थापना सम्राट अकबर के सेनापति ने सन् 1565 में की थी।
गुरुद्वारा साहिब
विवेकानंद चौराहे से लगभग 150 मीटर दूर एस. एन. मार्ग पर करीब 57 वर्ष से भी प्राचीन एक गुरुद्वारा है जिसकी स्थापना सरदार मूला सिंह, सरदार मल्ला सिंह, सरदार दीवान सिंह, सरदार गज्जन सिंह ने वर्ष 1957 से पहले की थी। वर्तमान में देख रेख राजेंद्र सिंह और हरवंश सिंह मल्होत्रा कर रहे हैं।
यहां सिक्ख धर्म के अनुयाई प्रतिदिन सुबह अमृत वेला में पांच वाणियों का पाठ, कीर्तन के साथ साथ अन्य समुदाय के धार्मिक ग्रंथों की तरह ही पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब के दर्शन कर प्यार और सत्कार से मत्था टेक गुरु का आशीर्वाद प्राप्त कर अच्छे दिन की शुरुआत करते हैं।
गुरुनानक जयन्ती और वैसाखी के विशेष अवसर पर प्रत्येक वर्ष प्रकाश उत्सव का आयोजन किया जाता है। गुरुद्वारे में भेदभाव व जातिवाद से हटकर सर्व समाज के व्यक्ति एक पंक्ति में बैठकर प्रसाद पाते हैं जिसे लंगर भी कहते हैं।
यमुना किनारे बसा गाँव चन्द्रवाड़
शहर फिरोजाबाद के रेलवे स्टेशन से लगभग पांच किलोमीटर दूर प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण के बीच धार्मिक आस्थाओं की नगरी फिरोजाबाद के ग्राम चंद्रवाड़ से शुरू करते हैं।
पर्यटन का सफर जहां कालिंदी के तट पर धार्मिक सदभाव का अनूठा समागम आने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करता है।
हजरत शाह सूफी साहब
(हजरत शाह सूफी साहब का मकबरा)
यहां से सबसे पहले चलते हैं यमुना किनारे बीहड़ क्षेत्र स्थित ग्राम सोफीपुर के पहाड़ पर जहां दशकों से मुसलमानो के आकर्षण का केन्द्र रही एक दरगाह है जिसे हजरत ख्वाजा सूफी हमीदउद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह उर्फ हजरत शाह सूफी साहब के नाम से जाना जाता है।
कहते हैं कि यहां एक दिव्यांग सूफी संत रहा करते थे जिनकी सेवाओं का स्वयं चंद्रवाड़ के दयालू राजा चन्द्रसेन विशेष ध्यान रखते थे। इन्हीं दिव्यांग सूफ़ी संत का मकबरा दरगाह के रूप में आज भी मौजूद है जहां हर साल उर्स मेला लगता हैं जिसमें दूर दूर से जायरीन आते हैं।
दरगाह से लगभग आधा किलोमीटर आगे चलते ही यमुना किनारे टीले वाले हनुमान का मंदिर है तो बायीं तरफ लगभग दो हजार वर्ष पुराना भव्य प्राचीन मारूति नंदन हनुमान मंदिर है जो मारूति नंदन हनुमान सोटे वाले बाबा के नाम से विख्यात है।
इसे पसीने वाले हनुमानजी के नाम से भी जाना जाता है। हनुमानजी संकटमोचन हैं, भक्त प्रवर हैं और ऋद्धि – सिद्धि के दाता हैं। यहां हनुमान जयंती पर विशेष मेला जुटता है। किवदंती है कि जो गुलाब के फूल, सात पान के पत्ते, बूंदी व इत्र अर्पण करता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती हैं।
प्राचीन तीर्थ श्री दिगम्बर जैन अतिशय
पसीने वाले हनुमानजी से थोड़ा आगे चलने पर चंद्रवाड़ का प्रसिद्ध किला और चूना व ककईया इंटो से बना लगभग आठ सौ वर्ष पुराना भव्य प्राचीन तीर्थ श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चंद्रवाड़ जैन मंदिर है जो, जैन धर्म के अनुयायियों की गहरी आस्था का केंद्र एवं तीर्थस्थल है।
चंद्रवाड़ का अपना इतिहास है। पहले यहां वैभवशाली राज्य था। खोदाई में अब तक कई प्रतिमाएं व प्राचीन सिक्के निकल चुके हैं। मंदिर का निर्माण मूर्ति और साहित्य प्रेमी राजा चन्द्रसेन ने कराया था।
जैन मंदिर चंद्रवाड़ में रखे अवशेष
आज इसमें प्राचीन जैन धर्म की मूर्तियां, कलाकृतियां, प्राचीन सिक्के और अन्य अवशेष देखने को मिलते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से जैन व अन्य समाज के लोग बड़ी आस्था के साथ यहां मूर्तियों और अवशेषों के दर्शन को प्रति माह आते रहते है।