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“प्रशासनिक सेवा में जाने के मेरे अधूरे सपने की याद दिलाती है पंचायत वेब सीरीज़”

पंचायत

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खासकर उत्तर भारत के जिस परिवेश में मैं पला-बढ़ा हूं, वहां बारहवीं में प्रवेश के बाद बच्चों के दिमाग में आगे के कैरियर के लिए एक अभिलाषा पलने लगती है। यह अभिलाषा अधिकांश मामलों में दूसरे लोगों का अनुसरण करने में निहित होती है।

अधिकांश मामलों में बच्चे अपने कैरियर से ज़्यादा इस खुमार में चूर रहते हैं कि वे अब आगे की पढ़ाई बड़े शहरों जैसे प्रयागराज, कोटा, दिल्ली आदि जगहों पर करेंगे।

कैसे याद आए मुझे मेरे पुराने दिन

उदाहरण के तौर पर यदि मैं अपनी ही बात करूं तो पंचायत वेब सीरीज़ देखने के दौरान मुझे मेरे पुराने दिन याद आ गए। मेरे अधूरे सपने आंखों के सामने तैरने लगे।

घंटो बैठकर पढ़ाई करने के बावजूद प्रशासनिक सेवा में जाने से वंचित रहने और दूसरी नौकरी मिलने के बीच जो कश्मकश है, उसे मैंने पंचायत के ज़रिये फिर से देख लिया।

प्रशासनिक सेवा की तैयारी के बीच परिवार का दबाव

पंचायत वेब सीरीज़ का एक दृष्य। फोटो साभार- सोशल मीडिया

गर्मियों में इंटर की परीक्षा के बाद आप आसानी से अपने हमउम्रों के बीच बच्चों को यह कहते सुनेंगे कि अगले वर्ष मैं अपनी पढ़ाई फलां शहर में करूंगा। इनमें से लगभग उस समय सबका मौखिक और प्रारंभिक लक्ष्य प्रशासनिक सेवा में जाना होता है।

इनमें से कुछ इन शहरों में पहुंचते भी हैं और कुछ नहीं भी पहुचते हैं। पहुंचने वालों में अधिकांश गंभीर रूप से अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते भी हैं और कुछ सिर्फ रहने के लिए ही इन शहरों में रहते हैं।

गंभीर रूप से पढ़ने वालों में जिनका चयन अपने लक्ष्य से अलग और कुछ छोटे पदों पर हो जाता है, उनके लिए बड़ी समस्या यह पैदा होती है कि वे उस जॉब को करें या ना करें।

घर के बड़े बुजुर्ग यह कहते हुए सलाह देने लगते हैं कि जॉब की बहुत मारामारी है। जो जॉब मिली है उसे कर लो और उस पद पर रहते हुए बड़ी जॉब के लिए तैयारी करते रहो। बेचारा बड़े लक्ष्य लेकर चलने वाला ओ बच्चा अंततः उस जॉब को कर लेता है।

एकाग्रता और समर्पण की देनी होती है तिलांजली

अब उस बच्चे के जीवन में एक उलझन और कश्मकश शुरू होती है। दिन भर जॉब करते-करते अपने से बड़े अधिकारियों के आदेशों का पालन करते हुए वह बच्चा थका-मांदा अपने बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पढ़ाई करने की कोशिश करने लगता है।

ध्यान रखिएगा वो सिर्फ कोशिश ही करता है क्योंकि जॉब में रहते हुए वह एकाग्रता और समर्पण नहीं बना पाता है। उसके ज्ञान के खजाने में अब बहुत मुश्किल से ही नई जानकारी जुड़ पाती है। उसका ज्ञान उसी पुरानी जमा-पूंजी से भरा होता है जो उसने पहले अर्जित की होती है।

उस ज्ञान पूंजी के दम पर कुछ ही सफल हो पाते हैं। अधिकांश सिर्फ उलझन में जीते हैं। इस दौरान वे जीवन का आनन्द भी खोते रहते हैं। ‘पंचायत’  वेब सीरीज में इस मनोदशा को बहुत ही बेहतर ढंग से परोसा गया है।

अगर आपने भी अपने जीवन में गंभीर होकर प्रशासनिक सेवा में जाने का सपना देखा था और वर्तमान में आप लेखपाल, राजस्व निरीक्षक, पंचायत सचिव, अध्यापक आदि पदों पर रहते हुए उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कश्मकश कर रहे हैं या फिर चिड़चिड़ापन महसूस कर रहे हैं, तो ‘पंचायत’ वेब सीरीज ज़रूर देखिए। यह आपकी कहानी है।

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