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“मुझे कोरोना के उपचार के तौर पर काली मिर्च खाने के लिए कहा गया”

फोटो साभार- Flickr

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चीन के वुहान शहर से फैला कोरोना वायरस बहुत बड़े वैश्विक संकट का रूप ले चुका है। इस वायरस के चपेट में लगभग पूरा विश्व है।

ताज़ा आंकड़ों के अनुसार इस वायरस से दुनिया में 13 लाख से अधिक लोग संक्रमित है और 75 हज़ार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके है मगर भारत के निवासी शायद इस वायरस की गंभीरता को नहीं समझ रहे है ।

कोरोना वायरस सतहों पर कितनी देर तक रह सकता है?

कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से या संक्रमित व्यक्ति द्वारा उपयोग की गई चीज़ों से फैलता है। इस वायरस को लकर तमाम तरह के शोध जारी हैं।

लेकिन कोरोना वायरस सतहों पर कितनी देर तक रह सकता है? इसका सटीक उत्तर हम नहीं जानते हैं मगर पर एक नए शोध में यह पाया गया कि वायरस हवा में 3 घंटे तक, तांबे पर 4 घंटे तक, कार्डबोर्ड पर 24 घंटे तक और प्लास्टिक और स्टेनलेस स्टील पर 72 घंटे तक बना रह सकता है।

भारत में भी पांव पसार चुका है कोरोना वायरस

भारत में भी ये वायरस अपने पांव पसार चुका है। भारत में यह वायरस अभी अपने अग्रिम स्टेज पर है जहां से इस पर काबू पाने की कोशिश की जा सकती है। अभी तक भारत में कोरोना वायरस से ग्रसित लोगों की संख्या लगभग 5194 है और इससे होने वाली मौतों की संख्या लगभग 149 है।

इस संख्या को काफी कम बताया जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योकि भारत में हॉस्पिटल अभी आवश्यक उपकरणों से लैस नहीं है जिसकी वजह से इस संक्रमण की जांच की गति बहुत धीमी है।

भारत को थर्ड स्टेज में जाने से रोकना होगा

सबसे चिंता का विषय है यह है कि अगर इसे इस स्टेज पर नहीं रोका गया तो भारत के पास इससे निपटने के साधन नहीं है। इटली जैसे वर्ल्ड क्लास के हेल्थ सिस्टम वाले देश में इस वायरस ने तकरीबन 17,127 जानें ले ली हैं।

तो भारत में जिस तरह की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं हैं उसके लिए यह बहुत बड़ा खतरा हो सकता है। परन्तु इससे बड़ा खतरा है भारत के लोगों में वैज्ञानिक सोच की कमी का होना है।

कोरोना वायरस से प्रभावित होते ही हमारा सबसे पहला काम था उससे निपटने की तैयारी करना मगर कुछ लोगों ने सबसे पहला काम यह फैलाने का किया कि भारतीय संस्कृति किस तरह से महान है जिसमें नमस्ते जैसी चीज़ें मौजूद हैं।

उसके साथ-साथ ही गाय के गोबर और मूत्र को इस रोग के उपचार के लिए प्रभावी बताया गया। जगह-जगह पर मूत्र और गोबर सेवन की पार्टियां हुईं, जिसमे बंगाल का एक व्यक्ति मूत्र पीने से बीमार भी हो गया।

कोरोना से बचाव के लिए ज़रूरी है सोशल डिस्टेंसिंग

चूंकि इस वायरस का लाइफ स्पैम काफी ज़्यादा है और यह संक्रमण से फैलता है। इसे रोकने का सबसे बेहतर तरीका था सोशल डिस्टेंसिंग यानी कि लोग अपने घरों में रहें और संक्रमण फैलने से रोकें। इसलिए राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग को अपनाने का आग्रह किया है।

उन्होंने साथी नागरिकों से रविवार 22 मार्च 2020 को सुबह 7:00 बजे से 9:00 बजे तक ‘जनता कर्फ्यू’ का पालन करने के लिए भी कहा और यह भी कहा कि देश के नागरिक उसी दिन 5 बजे ताली, शंख या थाली बजाकर डॉक्टरों और नर्सो को उनके कार्यों के लिए धन्यवाद करें।

आखिर हम सड़कों पर क्यों उतर आते हैं?

इस सम्बोधन के बाद से तमाम लोगों और समाचार पत्रों द्वारा इसे मास्टरस्ट्रोक बताया गया। कई जगहों पर यह रिपोर्ट थी कि ये वायरस 11 घंटे जीवित रहता है तो जनता कर्फ्यू के ज़रिये इसके चेन को तोड़ना सहज है, जो कि फैक्ट के अनुसार गलत है।

फिर कहा गया कि शंख और थाली की एक साथ ध्वनि सुनकर वायरस मर जाएगा। इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे जी ने कहा कि धूप सेंकने से सारे वायरस मार जाते हैं।

इन सभी से भी डरवाना वो नज़ारा था जब लोग 22 मार्च को शंख और थाली लेकर समूहों में निकल पड़े। लोगों ने ऐसा करके कम्युनिटी ट्रांसमिशन की धज्जियां उड़ा कर रख दी।

मोमबत्ती जलाने के लिए सड़कों पर उतरने की क्या ज़रूरत थी?

पुनः 5 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने फिर से अपने-अपने घरों में रहकर मोमबत्ती और दीया जलाने की अपील की। इस बार भी लोग मोमबत्ती और मशालें लेकर समूह में निकल गए।

कुछ लोगों ने पटाखे भी जलाए। लोग इस भयानक बीमारी और डरावने समय को उत्सव की तरह मना रहे थे। शिक्षित लोगों ने भी इसमें हिस्सा लिया और सबसे चौकाने वाली बात यह थी कि सरकार के लोगों से लेकर अधिकारीयों ने भी समूहों में थाली और शंख बजाया।

लोगों ने कुछ जगहों में रोक के बाद समूहों में नमाज़ भी पढ़ने की कोशिश की है। मेरे परिवार और रिश्तेदार रोज़ मुझे कोरोना की तमाम दवा बताते हैं जैसे काली मिर्च और कलौंजी मिलाकर खाने से कोरोना मर जाएगा। तमाम अफवाहों और अंधविश्वासों के बीच असल ज़रूरी चीज़ें दब जा रही हैं।

हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम अफवाहों को फैलने से रोकें

इन सभी घटनाओ और आपातकालीन स्थिति को ध्यान रखते हुए सभी से अपील है कि कृपया अफवाहों और अंधविश्वासो को फैलाने से रोकें। पूरी जानकारी लिए बगैर किसी सूचना को ना फैलाइए, क्योंकि यह जानलेवा हो सकती है।

इस बीच इस बात पर भी गौर करने की ज़रूरत है कि भारत में साइंटिफिक टेम्परामेंट को बढ़ाने के लिए अभी बहुत काम करना बाकी है।

समाज के शिक्षित वर्ग को अपनी ज़िम्मेदारी सूझ-बूझ के साथ निभानी चाहिए

बाकि हम सब यही उम्मीद करते हैं कि कम-से-कम शिक्षित लोग अपने आप को अंधविश्वास के चंगुल से मुक्त करें और वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाते हुए नैतिक और सांवैधानिक निभाएं।

किसी भी बात को बिना तथ्यों के ना मानें और ना ही किसी व्यक्ति को अंधभक्त की तरह अनुसरण करें। बाकि आशा करते हैं कि अलग-अलग रहकर हम साथ मिलकर इस वायरस का सामना करेंगे।


संदर्भ- इकोनॉमिक टाइम्स, scientificamerican.com

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