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हुमायूं के मकबरे की खूबियां जो इसे बनाती हैं बेहद अनूठी

हुमायूं का मकबरा

हुमायूं का मकबरा

दिल्ली, नाम तो सुना होगा मगर जब दिल्ली का नाम आता है तो मन या कानों में जो शब्द गुंजते हैं, वे इस प्रकार हैं- राजनीति का केन्द्र, मिली जुली संस्कृति और भीड़-भाड चाकाचौंध आदि। इन सबके बीच जो छूट जाता है, वो है इतिहास की यादों का गढ़, दिल्ली।

मेरे माँ-पापा बचपन से हमें बताते थे कि लगभग हर इतिहास की साक्षी दिल्ली कई बार बनी और उजड़ी! यहां तक कि माहाभारत काल में पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ भी दिल्ली ही मानी जाती है।

खैर, आज इतनी भारी बातों का दिन नही है। आज बात करते हैं अपनी यादों के झरोखे से दिल्ली की किसी खूबसूरत धरोहार के बारे में। शुरू से ही मुझे सड़कों के किनारे लगे पट्टी चिन्ह जिन पर आस-पास वाली जगहों की जानकारी होती है, वह पढ़ने का बड़ा शौक है।

भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में अपने शहर को महसूस करने का यह मेरे लिए सुकून भरा पल है। कई बार घूमने की योजना जो हमेशा इच्छा ही बनी रहती है। ये बोर्ड बड़े काम भी आते हैं। वो कहते हैं ना, “दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्‍याल अच्‍छा है।” फिलहाल ख्यालों से वापस चलते हैं वास्त्विकता पर!

हुमायूं का मकबरा। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज बात करते हैं दिल्ली में बने हुमायूं के मकबरे की! लगभग 7-8 साल तक रोज़ इंडिया गेट से गुज़रते वक्त हुमायूं टॉम्ब के साईन बोर्ड को पढ़ना मेरी आदत सी हो गई थी। दिमाग संधिविच्छेद करता हुमायूं का मकबरा और किस्सा खत्म!

इसके ज़रिये ना जाने कितने ही सफर को हमने तय किया है। मेरे काम करने की जगह पर एक जर्मन इंटर्न आई जिसे मेरी ही तरह घूमने का बड़ा शौक था। उसकी फेसबुक प्रोफाइल पर घूमने-फिरने की तस्वीरें देखना और बातें करना मेरी दिनचर्या का एक हिस्सा बन गया।

एक दिन सुबह-सुबह उसकी फेसबुक प्रोफाइल पर बेहद खूबसूरत और मनमोहक कला के नज़ारों से रुबरु हुई ज़िन्हे देख बस दिल से निकला वाह कहा है यह? और यह था हुमायूं के मकबरे से मेरा पहला परिचय! तब तक मेरी कल्पना में भी यह नही था कि ये मेरी अपनी दिल्ली के बिचोबीच खड़ी धरोहर है!

इस पहले परिचय में ही सुबह की मध्धम रौशनी में छनती मनमोहाक तस्वीरें मेरे ज़हन में बस गईं! जब पता चला कि यह वही जगह है जिससे मैं साइन बोर्ड के ज़रिये रोज़ मिला करती थी, यकीन मानो बड़ा ठगा सा लगा मगर कोफ्त होती भी किससे, खुद की बेख्याली से?

खैर, देर आए दुरुस्त आए मगर अमल करते हुए हमने तुरंत अपने घुम्मकड़ साथियों को अपने परिचय कथा से लेकर जाने की इच्छा तक का इज़हार कर दिया! शायद ज़रूरी ना लगे मगर बता दूं कि घूमने का असली मज़ा साथियों के साथ ही आता है।

तो हो गई हमारी तीन की तिगड़ी मिशन हुमायूं टॉम्ब को तैयार! क्योंकि मकबरा रोज़ सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक खुलता है। हमने रविवार के रोज़ निज़ामुद्दिन पश्चिम बस स्टेशन पर मिलने की योजना बनाई। अब निज़ामुद्दिन इसलिए क्योंकि यह मकबरा निज़ामुद्दिन दरगाह के पास है।

हुमायूं का मकबरा। फोटो साभार- सोशल मीडिया

जोश में टिप-टॉप तैयार होकर हम तीनों निकल पड़े लाल पत्थर से बने भारत के बेजोड़ नमूने को देखने। कुछ इधर-उधर घूमने के बाद हम एक खूबसुरत किलेनुमा जगह पर पहुंचे जो काफी खामोश थी। कला के नज़रिये से काफी खूबसूरत मगर बेकद्री का शिकार धरोहार मुझे वैसे भी समझ नहीं आता क्योंकि भारत में ऐसे धरोहार बेशुमार हैंं।

खैर, काफी समय बिताने के बाद पता चला कि ये हुमायूं का मकबरा नहीं, बल्कि अकबर के 9 रत्नों में से एक महान कवि खाने खाना का मकबरा है, जो निज़ामुद्दिन पूर्व की तरफ गुरुद्वारा दमदमा साहिब के पास है। दोनों ही जगह देखने लायक हैं। मौका और समय मिले तो ज़रूर जाइए।

वैसे तो हम तीनों ऐसे कारनामें करते रहते हैं मगर उस छोटे शब्द ने हमें हुमायूं के मकबरे तक तुरंत पहुंचने के लिए और उत्साहित कर दिया। दोस्तों अगर आप यह पढ़ने के बाद वहां जाने की योजना बनाएं तो पास के इस खामोश सुकून भरे मकबरे भी ज़रूर जाएं।

पूछते-पाछते और अपने ही कारनामे पर हंस्ते हम पहुंचे  हुमायूं के मकबरे को देखने! बड़े से रास्ते को पार करते, टिकट की लम्बी लाइन के बीच वो लाल गर्दन उठाये मकबरा जिसने मकबरे से जुड़ी हमारी सारी सोच को धत्ता लगा दिया था! हमसे जैसे पूछ रहा था कैसा लग रहा हूं मैं?

फोटो साभार- सोशल मीडिया

लाइन देखकर एक तरफ बेसब्री चढ़ रही थी, तो वहीं दूसरी तरफ अब तक इस खूबसूरत धरोहर का पता तक ना होने की चिढ़! हमने टिकट लिया जो 15 साल के बच्चो के लिए नि:शुल्क है, भारतीय नागरिको के लिए 35 रुपये प्रति व्यक्ति और विदेशी नागरिकों के लिए रुपये 550! टिकट हाथ में लिए सुरक्षा जांच करा हम पहुंच चुके थे प्रथम मुगल शासक बाबर के पुत्र हुमायूं के मकबरे में।

लगभग 30 एकड़ में फैले इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूं का मकबरा है। जहां हुमायूं के साथ उनकी बेगम हमीदा बानो और पोते दारा शिकोह और अन्य खास परिजनों की कब्र हैं। केवल क्षेत्रफल की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अन्य कई खुबियां भी इसे अनूठा बनाती हैं।

भारत वर्ष में यह एकमात्र कारीगिरी का नमुना है जहां इतने बड़े पैमाने पर लाल बलुआ पत्थरों को तराशा और इस्तेमाल किया गया हो। जिससे निगाह हटती ही नहीं! इसके अलावा अंदर कई अनोखे आकर्षण के केन्द्र हैं जिनमे से कुछ का ज़िक्र लाज़मी है।

अंदर आते ही सबसे पहले दिखता है चारबाग शैली का उद्यान जो ना केवल उच्च श्रेणी की ज्यामिती का उदाहरण है, बल्कि अति मनमोहक भी है। यह पूरे दक्षिण एशिया में अद्भुत मकबरे में बने बाग का पहला उदाहरण है! यह ना केवल खूबसूरती में इस्लामिक विश्वास जन्नत के बाग का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि सटीक भागों में बंटे पथ और नालिकाओं द्वारा सुन्दरता और विज्ञान को भी दर्शाते हुए हैरान करता है, देखेंगे तो याद ज़रूर करेंगे।

हुमायूं का मकबरा। फोटो साभार- सोशल मीडिया

इसके अलावा कई और आकर्षण भी हैं, जैसे 12 दरवाज़ों वाली “बारादारी” और “स्नान को हमाम” जहां ठंडी हवाएं बहती हैं। मकबरे के परिसर में ही शाही नाई का खूबसूरत वर्गाकार मकबरा है जो “नाई का गुम्बद” नाम से मशहुर है। परिसर के बाहर बना है “नीला बुर्ज” नामक मकबरा। इसका यह नाम इसके गुम्बद के ऊपर लगी नीली ग्लेज़्ड टाइलों के कारण पड़ा है।

यह मकबरा अकबर के दरबारी बैरम खां के पुत्र अब्दुल रहीम खानेखाना द्वारा अपने सेवक मियां फहीम के लिए बनवाया गया था। यह मकबरा अपने स्थापत्य में अनूठा है। यह बाहर से अष्टकोणीय है जबकि अंदर से वर्गाकार है।

इसकी छत अपने समय के प्रचलित दोहरे गुम्बद से अलग गर्दनदार गुम्बद और अंदर हुए प्लास्टर पर बहुत ही सुंदर चित्रकारी व पच्चीकारी के कारण विशेष उल्लेखनीय है।

अफसरवाला मकबरा, लाल बलुआ पत्थर से बनी मस्जिद, खूबसूरत बारापुला नाम का पुल जिसका निर्माण जहांगीर के दरबार के एक किन्नर ने करवाया था, छोटे-बड़े कई अन्य मकबरे जिनमें एक ध्वस्त ऐतिहासिक मकबरा भी शामिल है। ऐसी कई ऐतिहासिक निशानियां इस एक जगह देखने को मिलती हैं।

ऐतिहासिक दृष्टि से तो नहीं मगर एक घुम्मकड़ नज़रिये से मैंने इतनी विरासत एक जगह कहीं नहीं देखी है। जहां ना केवल शाही चकाचौंध, बल्कि शाही आन-बान को बनाए रखने वाले सेवक, सेवक के सेवक, नाई, किन्नर, नवाब, अफसरों तक को पूरी जगह और मान सम्मान दिया गया हो।

यकिनन यही समावेश और सम्मान भारत के इतिहास में मुगलों को अलग स्थान दिलाता है। वैसे मकबरे परिसर के मेरे खास पसंदीदा हिस्से का ज़िक्र अभी बाकी है। वह है मकबरे और चारबाग को तीनों ओर से घेरने वाली ऊंची चारदीवारी। इन चारदीवारी पर चढ़कर सटे हुए वर्षों पुराने अनोखे पेड़ों को देखना और मस्ती करने का मज़ा ही कुछ और है।

लगता है बातें खत्म नहीं होंगी। चलिए अब अनेक धरोहरों को समेटे मकबरे के परिचय को यहां विराम देती हूं। अगर आपकी उत्सुकता जागी या आपको इतिहास से रूबरू होते हुए अच्छी तस्वीरें क्लिक करने का शौक है, तो ज़रूर देखें दिल्ली के दिल में बसा #हुमायूंकामकबरा!

जितना आप अपने शहर, देश व दुनिया की धरोहरों को जानते हैं, अपने शहर और लोगों के उतने ही करीब होते जाते हैं! फिलहाल अपनी व्यक्तिगत यादों के साथ ‘वर्ल्ड हेरिटेज डे’ की आप सभी को शुभकामनाएं और शुक्रिया।

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