सत्ता का हालिया चरित्र और इसका नंगा नाच बीते काफी वक्त से सबसे डरावनी तस्वीर है। एक ओर देश कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी से जूझ रहा है, तो वहीं दूसरी ओर सरकार इसे एक मौके की तरह भुना रही है।
मैं पहले भी कई दफा लिख चुका हूं कि इस सरकार से नफरत और साम्प्रदायिकता के अलावा कुछ भी और उम्मीद कर रहे हैं तो ये आपकी गलती है।
जनता के प्रतिरोध से बचना चाहती है सरकार
जहां एक तरफ संक्रमण के डर से कई देशों में अंडरट्रायल कैदियों को छोड़ा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर हमारे यहां जेल भरने का कारोबार शुरू हो चुका है।
हर उस व्यक्ति को एक-एक कर जेल में डाला जा रहा है, जिसे किसी और समय गिरफ्तार किया जाता तो सड़कों पर जनता का भारी प्रतिरोध झेलना पड़ सकता था।
इस सरकार का यही चरित्र है कि उसकी नज़र में जनता कहीं है ही नहीं! अपनी साम्प्रदायिकता और नफरत फैलाने के लिए समय-समय पर वो हर किसी का इस्तेमाल करती रही है।
उमर खालिद सहित तीन स्टूडेंट्स पर UAPA
दिल्ली पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़काने के आरोप में उमर खालिद सहित जामिया के 3 स्टूडेंट्स पर UAPA यानी कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून लगाया है।
इसके बाद खबर आई कि जामिया एलुमनाई एसोसिएशन के प्रेसिडेंट शिफा उर रहमान भी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इससे पहले जामिया में स्टूडेंट राजद के नेता मीरन हैदर और जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी की सफूरा जर्गर गिरफ्तार की जा चुकी हैं।
अब पुलिस इस मामले में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI), जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी (JCC), पिंजड़ा तोड़ और ऑल इंडिया स्टूडेन्ट्स ओसोसिएशन (AISA) के कई सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करने जा रही है।
जनसत्ता में छपी एक खबर के मुताबिक उनके रडार पर अभी जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय के कई मौजूदा एवं पूर्व स्टूडेंट्स शामिल हैं।
हाल में हुई है कई लोगों की गिरफ्तारी
इससे पहले JNU के स्टूडेंट शरजील इमाम के भाषण के एक अंश पर कार्रवाई करते हुए उस पर राजद्रोह का मुकदमा दायर कर गिरफ्तार किया गया था।
भीमा कोरेगाँव में हिंसा भड़काने के आरोप में मानवाधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा की गिरफ्तारी भी हो चुकी है।
पत्रकारों पर भी लगाया जा रहा है UAPA
सच दिखाने के ज़र्म में कश्मीर की पत्रकार मसरत जहरा और आशिक पीरजादा पर भी UAPA लगाया जा चुका है। गौर करने वाली बात ये है कि सरकार महामारी को भी इस कदर भुनाना चाहती है कि सड़कों पर कोई इसके खिलाफ अपना विरोध दर्ज़ न करा सके।
तमाम मुकदमे, गिरफ्तारियां और घटनाओं में जो देश की जनता के सामने सबसे ज़्यादा स्पष्ट है, वो है उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा।
दिल्ली पुलिस ने जामिया में चले शांतिपूर्ण एंटी सीएए प्रोटेस्ट को दिल्ली दंगे के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है। मैंने ये प्रॉटेस्ट और दंगे दोनों कवर किए हैं तो अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं कि दिल्ली पुलिस सरकार की गोद में बैठकर पूरे आवाम को गुमराह कर रही है।
दिल्ली में हुए हिंसा को तो मैं दंगा मानता भी नहीं। यह पूरी तरह से एक स्टेट स्पॉन्सर्ड टेररिज़म था जिसमें एक धर्म विशेष को पूरी तरह कुचल दिया जाना था।
क्या कहती है उमर की एफआईआर की कॉपी
मैं उमर खालिद की FIR कॉपी पढ़ रहा था जिसमें ऊपर की लिखी बातों पर गौर करना है, नीचे की बातें कितनी बेबुनियाद हो सकती हैं, इतनी समझ सब में है।
- उमर खालिद ने दो जगह भड़काऊ भाषण दिए।
- भाषण में उन्होंने देशभर के लोगों से ट्रंप के प्रस्तावित यात्रा के दिन सड़क पर उतरने को कहा।
- इसलिये ताकि अंतराष्ट्रीय मीडिया में यह प्रोपगैंडा फैलाया जा सके कि भारत में माइनॉरिटी के साथ अत्याचार हो रहा है।
- बड़ी संख्या में बूढ़े एवं बच्चों को दंगा भड़काने के लिए इकट्ठा किया गया।
FIR पढ़ते हुए लग रहा जैसे दर्ज़ करने कराने वाले की भर्ती सीधे नागपुर से हुई हो। इसमें प्रतिरोध की आवाज़ को भड़काऊ भाषण कहा जा रहा है।
पुलिस ट्रम्प की यात्रा और माइनॉरिटी पर अत्याचार के बारे में ऐसे लिख रही है जैसे कि उसके घर का कोई निजी मामला हो। माइनॉरिटी पर अत्याचार की बात करना प्रोपगैंडा है या सच्चाई ये पुलिस कब से तय करने लगी? जनता कब अपना प्रतिरोध दर्ज़ कराएगी ये दिल्ली पुलिस और मोदी जी तय करेंगे?
ट्रम्प को बुलाना न बुलाना उनका निजी फैसला हो सकता है लेकिन पूरा देश इसके लिए बाध्य नहीं है। संविधान द्वारा दिये गए लोकतांत्रिक अधिकारों में कहीं ये नहीं लिखा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति के आने दिन यह जनता से छीन लिए जाएंगे।
ऊपर की बातों को पढ़ने के बाद नीचे का कितना सही लगेगा वो आप तय करिए। नीचे का कोई भी तथ्य जनता के सामने रखे बगैर ट्रायल चलाया जाएगा। ऐसा था भी या नहीं ये कौन जानता है?
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगों का ज़िम्मेदार सिर्फ मुसलमानों को क्यों कहा जा रहा है?
आज भी अगर आप मौजपुर, जाफराबाद, शिवविहार या इंद्राविहार के इलाके में जाकर घूम लेंगे तो पता चल जाएगा कि दंगे कौन करवा रहा था?
मैं तीन दिनों तक वहां रिपॉर्टिग करने के बाद यह दावा कर सकता हूँ कि अस्सी से नब्बे फीसदी तक का नुकसान वहां के मुसलमानों का हुआ है।
आज उनकी हालत ऐसी हो गई है कि वो आने वाले दस सालों तक भी खुद को अपनी पुरानी स्थिति में नहीं ला सकते हैं। क्या दिल्ली पुलिस यह कहना चाहती है कि मुसलमानों ने ही अपने में एक-दूसरे का घर जला दिया या अपनों के कत्ल कर दिए?
मुसलमान तो इसके लिए अपने मोहल्ले के हिंदुओं को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे थे। बार-बार वो रिपोर्टिंग के दौरान यही बताते रहे कि ये बाहर से आये हुए लोग थे।
क्या दिल्ली पुलिस ये कहना चाहती है कि मोहल्लों के मुसलमानों ने ही एक-दूसरे का कत्ल कर दिया? जय श्री राम का नारा लगाते हुए वही अपनी दुकानें जला रहे थे?
राहत शिविर में जब कई एनजीओ काम कर रहे थे तो उनका कहना था कि आईपिल की सबसे ज़्यादा डिमांड है। तो क्या लोगों ने अपनी ही बहन-बेटियों के साथ बलात्कार कर दिया?
अगर दिल्ली पुलिस और सरकार यह कहती है तो अब इसमें कोई शक नहीं रह गया कि उनका चरित्र दंगाइयों और बलात्कारियों वाला ही है।
सरकार के खिलाफ बोलने वाले लोगों को क्यों किया जा रहा है परेशान?
अब बात इस मामले में स्टूडेंट्स एक्टिविस्टों पर एंटी टेरर कानून लगाने की है। मैं जामिया और जेएनयू के लगभग हर प्रोटेस्ट का साक्षी रहा हूं किसी न किसी तरीके से। जब नहीं जा पाता हूं तो फोन से जानकारी ले लेता हूं और अधिकतर बार खुद ही मौजूद रहा हूं।
सबसे स्पष्ट तो ये कि जिन लोगों पर राइटविंग का लगातार हमला रहा है, ये वो लोग हैं जो अपने आइडियाज़ के लिए लड़ते हैं। सरकार का चरण पखार कर पीना उनका काम नहीं है।
देश की अधिकांश जनता हमेशा सीएए-एनआरसी के खिलाफ दिखी और सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक अपना विरोध दर्ज कराती रही। जितनी संख्या में मुसलमान निकले उतनी ही संख्या में और भी धर्म के लोग भी निकले।
ये धर्म विशेष पर हमला तो था ही, लेकिन सरकार जिस नफ़रत का बीज बोती रही है उसकी ज़द में कल हर किसी को आना था तो ये लड़ाई संविधान बचाने की भी थी।
मुसलमानों के लिए ये यकीनन उनके अस्तित्व का सवाल था तो विरोध भी स्वाभाविक था और उन्हें इसका विरोध करने का भी भरपूर अधिकार है।
जब मीडिया को नॉर्थईस्ट के विरोध प्रदर्शनों की खबरें ना दिखाने का सरकार ने दिया आदेश
इससे पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी कर कहा था कि कोई भी मीडिया नॉर्थईस्ट की कोई भी खबर न दिखाए। सरकार की नज़र में दिखाई जाने वाली दमन की वो सच्चाई एंटी नेशनल खबरें होतीं।
नॉर्थईस्ट में NRC लागू होने के साथ ही जामिया और देशभर में प्रदर्शन हुए। जामिया बड़े स्तर पर इसके नेतृत्व में दिखी तो दिल्ली पुलिस ने लाइब्रेरी तक में स्टूडेंट्स को घुसकर मारा।
पुलिस ने यूनिवर्सिटी कैंपस तक में घुसकर छर्रे और गोलियां दागी। आप इसकी पूरी डिटेल प्रशांत भूषण के इन्वेस्टिगेशन “द नाइट ऑफ द ब्रोकन ग्लास” में देख-पढ़ सकते हैं।
मतलब जितना बुरा उनके साथ किया जा सकता था सबकुछ किया गया। फिर इसका कोई मतलब ही नहीं बनता था कि हमेशा से प्रतिरोध की आवाज़ बुलंद करता जामिया बिना न्याय लिए छोड़ देता।
हर दिन उन्होंने प्रदर्शन किया जहां कोई न कोई राष्ट्रभक्त आकर बम मार गया तो किसी ने गोली भी चला दी। क्या आपको इस बात की खबर है कि उनके साथ आगे क्या हुआ? क्या उनपर कोई UAPA लगा?
प्रदर्शन के प्रमुख चेहरों को बनाया जा रहा है निशाना
अलजज़ीरा ने एक रिपोर्ट किया है कि सफूरा अपनी प्रेग्नेंसी के तीसरे स्टेज में हैं। प्रॉटेस्ट्स के दौरान अक्सर हम आमने-सामने हुए और एक दो बार बातचीत हुई।
सफूरा से बात करके सबसे पहले जो छवि उभरती है वो एक समझदार और गंभीर महिला की। सफूरा वो थीं जो प्रॉटेस्ट के दौरान एडमिनिस्ट्रेशन से लेकर पुलिस के आला अधिकारियों तक से भी लगातार बातचीत करती रहती थीं।
मतलब प्रॉटेस्ट ऑर्गनाइज़ करना और अपनी अंडस्टैंडिंग को लेकर इतनी क्लियर कि लोगों को मोबिलाइज़ करने में उनकी अहम भागीदारी होती थी। कहा जा सकता है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन के जरिये प्रतिरोध दर्ज कराना एक आर्ट है तो सफूरा उसकी आर्टिस्ट थीं।
दिल्ली पुलिस अभी तक साक्ष्य के साथ कुछ भी मीडिया के सामने प्रस्तुत नहीं कर पाई है। बस वो प्रदर्शन के कुछ सशक्त चेहरों को चुन-चुनकर उठा ले रही है। मतलब फियरलेस वॉइस ऑफ डिसेंट उनकी नज़र में गैरकानूनी गतिविधि है।
क्या हुआ प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा के बयानों का?
दिल्ली पुलिस मुकदमे की यह खबर देते हुए अपनी पीठ थपथपाती हुई नज़र आई और ट्वीट कर लिखा दिल्ली पुलिस शांति, सेवा एवं न्याय के लिए हमेशा तत्पर।
इसके जवाब में कई ट्वीट्स ये भी पूछते नज़र आए कि फिर कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा की गिरफ्तारी कब होगी? JNU में घुसकर स्टूडेंट्स पर हमला करने वाली कोमल शर्मा की तस्वीर से भी उस ट्वीट का रिप्लाय भर गया लेकिन जवाब नहीं आया।
आप खुद सोचिये कि इनपर UAPA लगने से पहले कभी भी उमर खालिद के किसी भी भाषण के किसी भी अंश की चर्चा रही कि यह देश में दंगा भड़का सकता है? अब ज़रा नज़र डालिए प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा के बयानों पर-
प्रवेश वर्मा- “शाहीनबाग में लाखों लोग जमा होते हैं। दिल्ली के लोगों को सोचना होगा और फैसला करना होगा। वो आपके घरों में घुसेंगे, आपकी बहन-बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे, उनका कत्ल कर देंगे। आज ही वक्त है, कल मोदी जी और अमित शाह आपको बचाने नहीं आ पाएंगे।”
अनुराग ठाकुर- “देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को….”
कपिल मिश्रा- “अगले तीन दिनों के अंदर सड़क खाली हो जानी चाहिए नहीं तो फिर हम आपकी भी नहीं सुनेंगे (दिल्ली पुलिस की तरफ़ इशारा करते हुए)”
जामिया और शाहीनबाग पर हमला किसने किया?
दिल्ली पुलिस की इन पर एक भी FIR दर्ज करने की हिम्मत नहीं हुई। जबकि इनके कहे का प्रभाव कभी जामिया के स्टूडेंट्स पर, तो कभी शाहीनबाग पर हर दूसरे-तीसरे दिखना शुरू हो गया था। ऑफ़रिकॉर्ड तो कई नेता कहते रहे हैं कि अपनी सरकार होने का यही तो फायदा है।
किसी ने कहा कि हमारे संगठन के 20 बरस का लौंडा अगर एसपी को दो थप्पड़ मार दे तो कारवाई आगे एसपी पर होगी उस लड़के पर नहीं।
बिल्कुल लचर हो चुका है सिस्टम
जिस लोकतंत्र को आप सबसे महान बताकर फूले नहीं समाते अब वो इतना नीचे जा चुका है कि एक खेमे के लोग बिल्कुल आश्वस्त हैं कि वो आपके साथ कुछ भी करेंगे तो ये सिस्टम उन्हें बचा लेगा।
सिस्टम को उन्होंने पांव की जूती बना दी है। अब तो देश का सर्वोच्च न्यायालय भी पनाह मांग रहा है तो बताने की ज़रूरत नहीं कि आप किस दौर में जी रहे हैं। सबकुछ बिल्कुल सीधा, सरल और स्पष्ट है।
प्रतिरोध की आवाज़ को कुचलने के इस दौर में मुझे सबसे ज़्यादा जो बात डरा रही है वो ये खबर कि पुलिस का अगला निशाना डीयू और जेएनयू के कई मौजूदा एवं वर्तमान स्टूडेंट्स हो सकते हैं।
लेकिन एक दंगाई सरकार इन्हें ही दंगाई घोषित करने पर तुली हुई है। सरकार इनकी आवाज़ को विद्वेष फैलाने और दंगा भड़काने के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रही है।
सरकार दंगे में दर्जनों लोगों को दिनदहाड़े मौत के घाट उतार देने वाले हिन्दूवादी संगठनों पर एक शब्द भी नहीं कह रही है।
जैसे खुलकर कह रही हो कि आपकी भाषणों, आपकी टिप्पणियों ने उनकी भावनाओं को आहत किया है, तो उन्हें इस बात का पूरा अधिकार है कि वो आपके साथ किसी भी हद तक जाकर कुछ भी कर सकते हैं।
आलोचना क्यों नहीं बर्दाश्त कर पा रही है मौजूदा सरकार?
विदेशों में इंटरव्यू देते हुए प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं,
मैं चाहता हूं कि सरकार की पूरी तरह से, हर तरह से आलोचना की जाए। आलोचना सरकार को मजबूत और तैयार रखती है। अगर कोई मेरी आलोचना करता है तो मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं। मुझे इसके बारे में बुरा नहीं लगता है।
लेकिन सच्चाई क्या है? आप अच्छे तरीके से देख पा रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र में आज ये दौर सरकार की आलोचना करने के लिहाज से सबसे ज़्यादा डरावना है।
जब आप इस सरकार की आलोचना करते हैं तो आप पर राजद्रोह और आतंकी गतिविधियों के रोकने के लिए बनाए गए कानून के तहत मुकदमा हो जाता है। ज़्यादा तो तब हो जाता है कि हमले भी आप पर होते हैं, और बाद में हमलावर भी आप ही को साबित कर दिया जाता है।
इस सरकार ने साबित कर दिया है कि जो सबसे ज़्यादा क्रूर दिखता है, वही सबसे ज़्यादा कायर होता है। लेकिन हर दौर के अपने हालात होते हैं जहां अपने-अपने तरीके से लोगों ने लड़ाई लड़ी है और लड़कर लड़ाइयां जीती भी हैं।
जिनका सूरज अस्त नहीं होता था उन्हें भी कभी देश छोड़कर भागना पड़ा है। ऐसे दौर में भी जो प्रतिरोध की आवाज़ बुलंद किये हुए हैं, उनके लिए आमिर अज़ीज़ भाई ने ऐसे आने वाले हर दौर के लिए प्रासंगिक पंक्तियां लिख ही दी है,
“हमीं पे हमला करके, हमीं को हमलावर बताना
सब याद रखा जाएगा
जब कभी भी जिक्र आएगा जहां में दौर-ए-बुज़दिली का
तुम्हारा काम याद रखा जाएगा
जब कभी भी जिक्र आएगा जहां में तौर-ए-ज़िन्दगी का
हमारा नाम याद रखा जाएगा
सब याद रखा जाएगा, सब कुछ याद रखा जाएगा!”