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राजस्थान: कोरोना के खिलाफ जंग में कैसे दिन-रात सेवाएं दे रही हैं आशा वर्कर्स

आशा वर्कर

आशा वर्कर

कोरोना संकट से निपटने के लिए पूरा देश एकजुट हो चुका है। सभी नागरिक अपने अपने स्तर पर इस महामारी से लड़ने का प्रयास कर रहे हैं। आम जनता जहां लॉकडाउन का पालन करते हुए स्वयं को घरों तक सीमित रखे हुए हैं, तो वहीं स्वास्थ्यकर्मी और प्रशासन भी एक योद्धा की तरह इस संकट को दूर करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

कोरोना मरीज़ों की लगातार बढ़ती संख्या के बावजूद देशभर के स्वास्थ्यकर्मी जान जोखिम में डालकर मरीज़ों का इलाज करने में जुटे हुए हैं। देश के रेगिस्तानी इलाका राजस्थान में भी कोरोना एक गंभीर संकट बनता जा रहा है। बावजूद इसके मेडिकल टीम के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्त्ता तक अपना फर्ज़ बखूबी निभा रही हैं।

ग्रामीणों की मदद में जुटी हैं आशा कार्यकर्ता

बाड़मेर ज़िले की पाटोदी पंचायत समिति के ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रही आशा स्वास्थ्य वर्कर कोरोना को हराने में समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जुटी हुई हैं। एक तरफ जहां लोग कोरोना के कहर से चिंतित हैं और अभाव से उत्पन्न कष्टों को झेलते हुए घरों की सीमाओं में बंधे हैं, वहीं दूसरी ओर आशा कार्यकर्त्ता अपने हुनर, ज्ञान और क्षमता के अनुसार लोगों की मदद करने में जुटी हुई हैं।

जननी एवं शिशु सुरक्षा की सेवाएं घर-घर पहुंचाने तथा मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने में स्वास्थ्य विभाग और समुदाय के बीच मज़बूत कड़ी का काम करने वाली आशा वर्कर्स कोरोना उन्मूलन की जंग में भी दिन-रात सेवाएं दे रही हैं।

पाटोदी पंचायत समिति के गाँवों में संस्थागत प्रसव और टीकाकरण, परिवार नियोजन, किशोरी स्वास्थ्य संबंधित राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मिली उपलब्धियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली आशा वर्कर अतिरिक्त सेवाएं देने के लिए स्वप्रेरणा से जुट गई हैं।

बाहर से आने वाले लोगों पर आशा कार्यकर्ताओं की होती हैं पैनी नज़र

इस दौरान वे गाँव के एक-एक परिवार पर नज़र रखती हैं। बाहर से आने वाले व्यक्तियों का सर्वे कर विभाग को अवगत कराने, नागरिकों को स्वास्थ्य संबंधित मुश्किलें आने पर उपचार के लिए अस्पताल तक पहुंचाने की व्यवस्था करवाने, लगातार साबुन से हाथ धोने और बचाव के लिए व्यक्ति से व्यक्ति केे बीच दूरी बनाए रखने के लिए लोगों को जागरूक करने जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दे रही हैं।

लॉकडाउन जैसी स्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों में मज़दूरी पर टिके जीवन में इस समय कई प्रकार के संकट उत्पन्न हुए हैं। खासतौर पर राशन, सब्ज़ियां, दूध, फल आदि की पहुंच कम होने का असर महिलाओं और बच्चों की सेहत पर पड़ सकता है। विशेषकर यह समय गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए सबसे मुश्किल घड़ी है।

कुपोषण के खिलाफ भी लड़ रही हैं जंग

वहीं, दूसरी ओर पहले से कुपोषण के चक्र में फंसी महिलाओं और बच्चों के लिए भी कोरोना एक बड़ा संकट बनकर आया है। जिसके खिलाफ यह आशा कार्यकर्त्ता दिन-रात एक करते हुए अपने कार्यों को अंजाम दे रही हैं।

इनकी सेहत को बनाए रखने और कुपोषण से इन्हें बचाने के लिए आशा वर्कर इनके परिवारों को खान-पान की विशेष हिदायतें देकर कारोना की जंग में जीत हासिल करने के लिए अतिरिक्त कार्य कर रही हैं।

ग्रामीणों को मुफ्त में बांट रही हैं मास्क

इसके अलावा अपने पारिवारिक कार्यों से निवृत होकर दिनभर जागरुकता और सेवाएं देने के बाद बचे हुए अतिरिक्त समय में क्षेत्र की अधिकांश आशा वर्कर इन दिनों सिलाई मशीन एवं हाथ से सिलाई कर मास्क बनाकर समुदाय को निःशुल्क उपलब्ध करा रही हैं।

इस संबंध में पाटोदी के आशा सुपरवाइजर भगवान चंद परिहार ने बताया कि अधिकांश आशा कार्यकर्त्ता अपने सरकारी कार्यक्रमों की ज़िम्मेदारी निभाने के अलावा घर में सिलाई के लिए लाई गई मशीन का उपयोग कर स्वयं कपड़ा खरीदकर मास्क बना रही हैं तथा गाँव वालों को निःशुल्क वितरित कर रही हैं।

संसाधनों के अभाव में भी शिद्दत से कर रही हैं समाजसेवा

कुछ आशा वर्कर केे पास अपनी सिलाई मशीन नहीं है, ऐसे में वे हाथ से ही सिलाई कर मास्क बना रही हैं और लोगों को उपलब्ध करा रही हैं। उन्होंने बताया कि नवोड़ाबेरा की आशा कार्यकर्त्ता श्रीमती फातिमा, जिन्हें उत्कृष्ट सेवाएं देने के लिए ब्लाॅक स्तर पर सम्मानित किया गया था। आइए जानते हैं आशा कार्यकर्ताओं ने कितने मास्क बांटे?

मास्क बनाने का यह काम निरंतर जारी है। उन्होंने बताया कि बाड़मेर ज़िले में आशा स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा मास्क बनाकर वितरण किए जा रहे इस कार्य की केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी सराहना की है।

याद रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश के नाम अपने संबोधन में देशवासियों से संकट की इस घड़ी में ज़रूरतमंदों की मदद करने की लगातार अपील करते रहे हैं। अपने स्तर पर देसी मास्क बनाने और अधिक-से-अधिक लोगों को पहुंचाने पर ज़ोर देते रहे हैं।

मुश्किल की इस घड़ी में कोरोना को हराने में स्वास्थ्य टीम के साथ-साथ आशा वर्कर्स भी अपनी क्षमताओं केे अनुसार हर संभव प्रयास कर रही हैं। ऐसे में मौजूदा समय में ज़मीनी स्तर पर इनकी भूमिका बहुत अहम हो गई है। जिसे ये बखूबी अंजाम दे रही हैं।


नोट: इस लेख को YKA पब्लिशर चरखा फीचर्स के लिए बाड़मेर, राजस्थान के दिलीप बीदावत ने लिखा है।

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