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“क्या पाकिस्तान की तर्ज़ पर भारत में भी टेली स्कूल की शुरुआत होनी चाहिए?”

teli school

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कोरोना संकट में जब पूरी दुनिया के स्कूल-कॉलेज कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए बंद हैं, तो वहीं कई देशों के शिक्षाविदों का ज़ोर ऑनलाइन शिक्षा मेथड को विकसित करने पर है। कई विकसित देशों ने इस पर काम करना शुरू भी कर दिया।

देशभर में लॉकडाउन से प्रभावित हो रही है स्टूडेंट्स की पढ़ाई

UNESCO के आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में बंदी के कारण कुल 32 करोड़ स्टूडेंट्स पर असर पड़ा है। ये आंकड़े प्राइमरी से लेकर पीजी तक के स्टूडेंट्स के हैं।

ऑनलाइन शिक्षा विकसित देशों में ज़रूर सफल हुई है लेकिन विकासशील देशों में ऑनलाइन पढ़ाई दो तिहाई आबादी के लिए हवा-हवाई परियोजना लगती है।

ऑनलाइन शिक्षण के साथ समस्या यह है कि बहुत से स्टूडेंट्स के पास इंटरनेट कनेक्शन तक नहीं है। जबकि अन्य लोगों की शिकायत यह है कि इंटरनेट की जो रफ्तार है, उससे ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ नहीं उठाया जा सकता है।

बहुत से स्टूडेंट्स के पास स्मार्टफोन, लैपटाप या डेस्कटॉप नहीं हैं। ब्रॉडबैंड इंटरनेट और मोबाइल डेटा की अपनी समस्याएं हैं लेकिन ये सारी समस्याएं टेलीविज़न के साथ नहीं हैं।

पाकिस्तान में शुरू हुआ टेली स्कूल चैनल

शिक्षा के तमाम हिस्सों में ना केवल स्कूल-कॉलेज बंद हैं, बल्कि परीक्षाओं को भी रद्द कर दिया गया है। इस बीच पाकिस्तान सरकार ने टेली स्कूल चैनल के नाम से एक नया टीवी चैनल स्थापित किया है।

यह एक शानदार पहल है, जिसका अनुसरण दूसरे देश भी कर सकते हैं। लॉकडाउन के समय में इस चैनल से पाकिस्तान के दूर-दराज के स्टूडेंट्स भी मदद ले रहे हैं।

इसको लेकर लोगों में काफी उत्साह है। लोग इसे बंद नहीं करने के बारे में सोच रहे हैं, क्योंकि पाकिस्तान की हुकूमत यह मानती है कि टेली स्कूल के ज़रिये शिक्षा के क्षेत्र में पाकिस्तान जैसे मुल्क की तस्वीर बदल सकती है। गौरतलब है कि पाकिस्तान में साक्षरता की दर मात्र 58 प्रतिशत है।

टीवी के ज़रिए घरों तक पहुंच रही है पाठ्य सामग्री

आज कोरोना महामारी के समय पाकिस्तान के बच्चे भी स्कूल से बाहर हैं। अनुमान है कि पाकिस्तान में करीब दो अरब स्टूडेंट्स अपने शिक्षण संस्थानों से बाहर हैं।

जब अधिकांश बच्चे घर पर रहने के लिए मजबूर हैं, तब टेली स्कूल बच्चों के घर में शैक्षिक सामग्री पहुंचाने जैसा है। यह टेली स्कूल चैनल कक्षा 1 से 12वीं तक शिक्षण सामग्री प्रदान करने की कोशिश कर रहा है।

लॉकडाउन के बाद भी चैनल चलते रहने की हो रही है मांग

इस चैनल की शुरुआत के बाद पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों से आवाज़ें उठ रही हैं कि महामारी खत्म हो जाने के बाद भी इसे खासकर दूर-दराज के क्षेत्रों के उन बच्चों के लिए जारी रखना चाहिए जिनके यहां स्कूल नहीं है।

बहुत से लोगों का मानना है कि मुल्क में शिक्षा की खराब हालत को देखते हुए यह चैनल गेमचेंजर साबित हो सकता है और भारी बदलाव ला सकता है।

भारत में पहले भी हो चुका है ऐसा प्रयोग

गौरतलब है कि भारत में 70 के दशक के मध्य में साइट परियोजना के तहत सामुदायिक टेलीविज़न की शुरुआत करके इस तरह का प्रयोग पहले किया जा चुका है। इसे उस दौर में बहुत लोकप्रिय और ज़रूरी बताया गया था।

होमो जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई जैसे प्रख्यात वैज्ञानिकों ने इसका ब्लू प्रिंट तैयार किया था और “विकास के लिए टेलिविजन” शीर्षक से एक परचा प्रस्तुत किया था।

यह परचा गरीब देशों में संचार योजना का वह दस्तावेज था जिसका इस्तेमाल गरीबी और पिछड़ेपन को दूर करने करने के लिए किया जाना था।

इसमें प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की पुरज़ोर वकालत की गई थी जिसको ‘साइट’ कहा गया। बाद के दिनों में टेलीविज़न का उद्देश्य मनोरंजन भर रह गया और शिक्षा का प्रसार जैसी अवधारणा पीछे छूट गई।

भारत में टेली स्कूल हो सकता है काफी प्रभावी

आज मौजूदा दौर में जब भारत जैसे देश में टेलीविज़न का प्रसार काफी अधिक है और अधिकांश घरों में टेलीविज़न मौजूद हैं। ऐसे में टेली स्कूल के माध्यम से बड़ी सफलता पाई जा सकती है।

ज़रूरत बस इतनी है कि कक्षा 1 से 12वीं तक यूट्यूब पर जो शिक्षण सामग्रियां उपलब्ध हैं, उनमें से गुणवत्ता के आधार पर पठनीय सामग्रियों का चयन करके निश्चित समय पर उसका प्रसारण दूरदर्शन के किसी चैनल पर कर दिया जाए।

चूंकि लॉकडाउन के कारण माता-पिता या अभिभावक भी घर पर ही मौजूद हैं, तो वे भी बच्चों के साथ मिलकर इस सेवा को सुधारने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

कोई नहीं जानता है कि पूरा देश इस असमंजस की स्थिति से कब उबरेगा, कुछ दिनों के बाद स्कूल-कॉलेजों में गर्मी की छुट्टियां आ जाएंगी, उसके बाद भी यह कहना मुश्किल है कि स्थिति समान्य हो जाएगी।

टेली स्कूल का इस्तेमाल भारत जैसे देश को कोरोना वायरस से निपटने के बाद करना है या नहीं, यह फिलहाल एक यक्ष प्रश्न बन सकता है।

मौजूदा वक्त में टेली स्कूल एक बेहतर विकल्प बन सकता है, जिसकी पहुंच अधिक लोगों तक होगी।  मुझे अपने बचपन का वह दौर याद आ रहा है जब रेडियो पर मैंने सोशल साइंस की क्लास सुनी थी और खुद को क्लास के हिसाब से अपडेट किया था।


संदर्भ- satyagrah, Quint

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