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“अशफ़ाक उल्लाह खां, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रौशन सिंह की धरती है शाहजहांपुर”

शहीद अशफ़ाक उल्लाह खां, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रौशन सिंह

शहीद अशफ़ाक उल्लाह खां, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रौशन सिंह

इंडियन साइंस काँग्रेस के अधिवेशन में वर्ष 2012 में मुंबई जाना हुआ था। अधिवेशन का आयोजन मुंबई विश्वविद्यालय में हुआ। भारत देश के साथ-साथ पूरे विश्व से आए हुए वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं का वहां जमावाड़ा लगा था। मैं भी उन लोगों में से एक था, जिसे इस अधिवेशन में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ था। 

मैं कुछ साथियों के साथ दादर में रुका था। वे साथी विभिन्न प्रान्तों से आए थे। उनसे बातचीत अंग्रेज़ी भाषा में ही अधिकांशतः हुआ करती थी। वे हिंदी भाषा समझ लेते थे मगर बेहतर रूप से बोलने में कठिनाई होती थी। 

वार्तालाप के दौरान एक साथी ने पूछा, “आप कहां से हैं?”

” उत्तर प्रदेश से हूं।” मैंने कहा

पुनः उस साथी ने पूछा, “उत्तर प्रदेश में कहां से?”

मैंने कहा, “उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर से।”

“यह कहां पर पड़ता है?” उन्होंने पुनः पूछा।

शहीद अशफ़ाक उल्लाह खां, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रौशन सिंह

अगली बार मैंने अपना उत्तर विस्तार से देते हुए कहा कि मित्र मैं उस जगह से आया हूं जहां ठाकुर रौशन सिंह, अशफ़ाक उल्लाह खां और रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ है।

मैं उस शहीद नगरी से आया हूं जहां की मिट्टी में शहीदों की खुशबू आती है। मैंने उनसे कहा कि राजनीतिक क्रांति में काकोरी केस हो या फिर धार्मिक क्रांति में गौ माँ के लिए श्री परशुराम भगवान के परिवार का बलिदान। सभी में इस शहीद नगरी ने अपना नाम नेतृत्वकारी बनकर स्वर्णाक्षरों में लिखाया है।

वहीं सामाजिक क्रांति में भी स्काउट-गाइड को जन्म देकर इस नगरी का सिर गर्व से सदैव ऊंचा रहता है। भारत में स्काउट-गाइड के जनक श्रीराम वाजपेयी का जन्म व कर्मभूमि यही नगरी है।

इसके उपरांत उनको सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे। वो एक बेहतर शाहजहांपुर के बारे में जान चुके थे। 

शाहजहांपुर शहर स्वयं में इतिहास को समेटे हुए हैं। यहां बनाई गई हनुमान मूर्ति एशिया की सबसे बड़ी हनुमान मूर्ति है। जो कि राजस्थान के कारीगरों के द्वारा बनाई गई है।  

यदि आप शाहजहांपुर के इतिहास को और अधिक टटोलना चाहते हैं, तो आप श्याम बेनेगल कृत फिल्म ‘जुनून’ अवश्य देख सकते हैं। 1978 की अवॉर्ड प्राप्त फिल्म ‘जुनून’ उपन्यासकार रस्किन बांड के नोवल ‘Flight Of The Piegons’ पर आधारित है।

जिसमे शहर की सेंट मेरी चर्च पर 1857 में हुए विपल्लव को फिल्माया गया है। कहानी लेबोडोर परिवार की है, जिसमे नायिका रुथ लेबेडोर के पिता की हत्या उसकी आंखों के सामने हुई और उसने और उसकी माँ ने शहर के एक सेठ राम जयमल के यहां पनाह ली।

क्रांतिकारियों के नेता जावेद खान को इसकी भनक लग गई और उसने सेठ के घर धावा बोल दिया। जावेद ने रूथ को देखा और उसकी माँ के सामने जान के बदले रूथ से शादी का प्रस्ताव रखा।

रूथ की माँ ने कहा कि अगर अंग्रेज़ हार गए तो वह रूथ की शादी जावेद से कर देगी मगर एक अंग्रेज़ी टुकड़ी ने शहर में प्रवेश कर क्रांतिकारियों को परास्त कर दिया, जावेद खान इस लड़ाई में मारा गया, मरियम अपनी बेटी को लेकर इंग्लैंड लौट गईं। फिल्म शहर की संस्कृति और इतिहास को रेखांकित करती है,जो 1857 का शहर शाहजहांपुर था।

अभिनेता राजपाल यादव अभिनीत एक फिल्म का दृश्य।

बॉलीवुड में राजपाल यादव का बेजोड़ अभिनय भला कौन भूल सकता है। उनका जन्मस्थान भी शाहजहांपुर है। उनके अभिनय ने शाहजहांपुर को पूरे विश्व में ख्याति प्रदान की है।

“धूल के कण रक्त से धोये गये हैं

विश्व के संताप संजोये गये हैं,

पांव के बल मत चलो अपमान होगा

सर शहीदों के यहां बोये गये हैं।

शाहजहांपुर के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि देती राजबहादुर विकल जी की ये पंक्तियां उन्हें व शाहजहांपुर को अमरत्व प्रदान करती हैं।

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