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“मुझे डर है कि कोरोना संक्रमण भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त ना कर दे”

economic impact of covid 19

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कोरोना वायरस सम्पूर्ण विश्व में किसी आतंकवादी हमले से भी ज़्यादा घातक साबित हो रहा है। जिसका कुप्रभाव विश्वभर मे बड़ी ही तेज़ी से फैल रहा है।

यह महामारी है या कोई जैविक हथियार यह तो भविष्य ही बतलाएगा मगर तात्कालीन विश्व की स्थिति काफी दयनीय नज़र आ रही है।

विश्व की तमाम महाशक्तियां इसके सामने घुटने टेकती हुई दिखाई दे रही हैं। ना इस महामारी का कोई पुख्ता इलाज है और ना ही हमारे पास इसकी रोकथाम की कोई उचित युक्ति मौजूद है।

नोवल कोरोना या कोविड-19 वायरस चीन से होकर इटली पहुंचा फिर स्पेन, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, ईरान, होते हुए यह वायरस अब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश में मौत का तांडव मचा रहा है।

अर्थव्यवस्था पर संकट के काले बादल

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- ANI Twitter

यह चीनी वायरस हमारे महान देश हिंदुस्तान पर भी अपनी बुरी नज़र गड़ाए बैठा है। 24 मार्च 2020 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देर से ही सही मगर सम्पूर्ण भारत मे लॉकडाउन की घोषणा की गई। जिसके बल पर आज सम्पूर्ण भारत मे यह वायरस मद्धम गति से फैल रहा है।

मगर हमारा देश आर्थिक रूप से पहले ही कमज़ोर था और यह वायरस हमारी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर देगा। हमारे पास ना तो अस्पताल की उचित व्यवस्था है और ना ही हमारे डॉक्टरों के पास इस वायरस से लड़ने के उचित साधन उपलब्ध हैं।

अन्य विकसित देशों में जो हालात हैं, यदि वे हालात हमारे देश में हुए तो यह सोचकर ही रूह कांप जाती है। चीन को छोड़ अन्य देशों के मुकाबले हम उनसे जनसंख्या की दृष्टि से 4 या 5 गुना बड़े हैं। जिन देशों में यह वायरस अपने विकराल रूप में पहुंच चुका है, वे हमसे चिकित्सकीय व्यवस्था के आधार पर कई गुना आगे थे।

मगर सभी ने इस वायरस के सामने अपने घुटने टेक दिए हैं। भगवान ना करे अगर यह वायरस हमारे देश में अन्य देशों की तरह फैला तो स्थिति सोचने भर से हमारी रूह कांप जाएगी।

भारत की जनसंख्या का लगभग 70% हिस्सा गाँवों या कस्बों में निवास करता है। यहां का गरीब, अशिक्षित व्यक्ति कोरोना संक्रमण से पहले भूख से मर जाएगा।

क्या हम भविष्य में भी ऐसे तमाम वायरस से लड़ने के लिए तैयार हैं?

मेरा तमाम विश्व से एक सवाल है कि क्या हम भविष्य में भी ऐसे वायरस से लड़ने के लिए तैयार हैं? क्या भारत आने वाले वक्त में दोबारा किसी नए वायरस से लड़ने के लिए लॉकडाउन करने की आर्थिक शक्ति रख पाएगा?

21 दिनों के लॉकडाउन से भारत को 7 से 8 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है और अभी 3 मई तक लॉकडाउन ओर बढ़ाया गया है। मैं लॉकडाउन के खिलाफ नहीं हूं मगर कब तक हम भविष्य में ऐसे लॉकडाउन करने के लिए सक्षम हैं?

आखिर हमने संक्रमित लोगों को देश में आने ही क्यों दिया?

एयरपोर्ट में कोविड-19 की स्क्रीनिंग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

यदि सम्पूर्ण विश्व वक्त से पहले ही अपनी तमाम अंतरराष्ट्रीय उड़ानें चीन से रद्द कर देता और अपने-अपने मुल्कों के चंद नागरिकों को जो चीन या अन्य संक्रमित देश में नौकरी या पढ़ाई के लिए गए हुए थे, उन्हें अपने ही मुल्क में रखकर इलाज करता तो हालात इतने बुरे नहीं होते।

उन्हें तब तक अपने मुल्क में रखना था जब तक कि जांच रिपोर्ट में वे नेगेटिव ना पाए जाते। उन चंद लोगो की वजह से आज सम्पूर्ण विश्व ओर हमारा भारत इस वायरस से जूझ रहा है।

कुछ लोगो को मेरी बात से आपात्ति होगी कि क्यों हम हमारे देश के लोगो को ऐसी संकट भरी स्थिति में देश मे ना बुलाएं? क्यों उन्हें वहीं मरने के लिए छोड़ दिया जाए?

विदेश से आए संक्रमित व्यक्ति पर क्यों ना देशद्रोह व हत्या का मुकदमा चले?

क्या हमारे देश के नागरिक जो यहां रह रहे हैं उनकी जान की हिफाज़त करना हमारा कर्तव्य नही है? क्या वह व्यक्ति जिसने कभी अपने जीवन में विदेश यात्रा नहीं की या संक्रमण के वक्त उसने कोई भी विदेश यात्रा नहीं की है, उसे ऐसी विदेशी बीमारी से बीमार करवाकर उसकी जान से खिलवाड़ करना उचित होगा?

उस व्यक्ति के लिए ऐसी विदेशी बीमारी से मरना एक हत्या या दुर्घटना कहलाएगी क्योंकि उसे यह बीमारी ऐसे व्यक्ति ने फैलाई है, जो विदेश से बगैर इलाज करवाए वह बीमारी यहां लाया है। उसने देश में पहुंचकर 14 दिनों तक होम क्वारंटाइन का पालन ना करते हुए लापवाही बरती है।

ऐसे व्यक्ति पर देशद्रोह या हत्या का मुकदमा चलना चाहिए, क्योंकि उसकी इस गलती से पूरा भारत आज आपातकालीन स्थिति में आ चुका है।

समय रहते हम जाग जाते तो वर्तमान हालातों से हमें नहीं गुज़रना पड़ता

प्रधानमंत्राी नरेन्द्र मोदी, फोटो साभार- पीएम मोदी फेसबुक अकाउंट

सरकार द्वारा ऐसी विदेशी बीमारी से मृत व्यक्ति जिसका किसी विदेशी यात्रा का इतिहास नहीं रहा है, उसे दुघर्टना क्लेम आदि द्वारा क्षतिपूर्ति हेतु मुआवज़े की व्यवस्था रखनी चाहिए।

चंद विदेश में फंसे भारतीयों को देश मे लाकर 7 से 8 लाख करोड़ के आर्थिक नुकसान को सहना कहां की समझदारी है?

सर्वप्रथम दिल्ली में इटली से आए विदेशी नागरिक कोरोना पॉज़िटिव निकले थे। यदि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उनकी कोरोना संक्रमण की जांच हो जाती तो आज जो स्थिति है वह बिल्कुल नहीं होती।

स्क्रीनिंग के नाम पर सिर्फ बुखार मापा गया है, क्या प्रधानमंत्री इसे कहते हैं स्क्रीनिंग?

ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे यह साबित होता है कि विदेशी पर्यटक विदेश से बिना कोरोना संक्रमण का टेस्ट कराए भारत आए हैं। वे यहां आकर पॉज़िटिव निकले और अन्य लोगो को भी संक्रमित कर गए। प्रधानमंत्री  द्वारा लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ाया गया जो देश हित मे काफी सराहनीय कार्य है।

परन्तु प्रधानमंत्री का यह कथन कि ‘समस्त विदेश से आए व्यक्तियों की स्क्रीनिंग की गई थी’ काफी मज़ाकिया है, क्योंकि स्क्रीनिंग के नाम पर मात्र उनका बुखार देखा गया था और घर पर 14 दिन का क्वारंटाइन करने की लापरवाही भरी हिदायत दी गई थी जो किसी भी व्यक्ति ने नहीं मानी।

कब तक हम ऐसे लॉकडाउन करके देश के आर्थिक ढांचे को गिराते रहेंगे?

लॉकडाउन के दौरान बंद दुकानों की तस्वीर। फोटो साभार-

चलिए जो हुआ सो हुआ मगर भविष्य में कब तक हम ऐसे लॉकडाउन करके देश के आर्थिक ढांचे को गिराते रहेंगे? हमें ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

जिस प्रकार देश मे लॉकडाउन के पश्चात ‘जो जहां है वह वहीं रहे’ का नारा दिया गया था और संक्रमित लोगों को उनके मौजूदा शहर में ही इलाज कराया जा रहा है, वैसे ही अगर चीन में फंसे भारतीयों की कोरोना जांच करवाई जाती और पॉज़िटिव होने पर उनका चीन में ही इलाज किया जाता तो बेहतर होता।

उन व्यक्तियों की रिपोर्ट नेगेटिव आने पर भी उन्हें भारत बुलाकर घर की जगह सीधे अस्पताल में 14 दिन का क्वारंटाइन किया जाता तो शायद आज यह भयंकर त्रासदी देखने से हम बच जाते।

वायरस के साथ-साथ गरीब व्यक्ति भुखमरी और इलाज के अभाव में मर रहा है

क्या इस वायरस से अब देश का नागरिक नहीं मर रहा है? हज़ारों की संख्या में संक्रमित लोगों के आंकड़ों में बढ़ोतरी होने के साथ-साथ दिन प्रतिदिन मौत का आंकड़ा भी बढ़ रहा है।

ह्रदय घात, किडनी विकार, कैंसर जैसी अन्य बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति परेशान हो रहे हैं। उनका कहीं उचित इलाज नहीं हो रहा है। गर्भवती महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

विदेशी पर्यटकों व विदेश से आए भारतीय नागरिकों के प्रति यदि हमने सख्ती बरती होती तो हालात आज बेहतर होते।

सम्पूर्ण देश लॉकडाउन में उलझा हुआ है ओर यह सब सिर्फ और सिर्फ उन चंद विदेश में फंसे भारतीय नागरिकों या भारत में आए विदेशी पर्यटकों की वजह से हो रहा है, जिन्हें बिना जांच के देश में बुलाया गया।

जितनी कठोरता हम लॉकडाउन में दिखा रहे हैं, अगर उतनी कठोरता विदेश से आ रहे भारतीय नागरिकों या विदेशी पर्यटकों पर दिखा देते तो आज हम कोरोना से यह जंग कब की जीत चुके होते।

कोरोना संक्रमण के उदाहरण

कोरोना संक्रमण के बीच मास्क लगाकर घुमते लोग। फोटो साभार- सोशल मीडिया

एक ओर उदाहरण सुनिए, एक पुत्र विदेश यात्रा से लौटकर दिल्ली आया। वह कोरोना संक्रमित था। उसकी वजह से दिल्ली में ही रह रही उसकी माता को यह संक्रमण हुआ। उनकी मौत हो गई मगर वह पुत्र इलाज उपरांत बच गया।

अगर वक्त रहते उस व्यक्ति की जांच उसी देश में हो जाती जहां से वह आया था, उसी देश में उसका इलाज हो जाता तो ना तो उसकी माता की मृत्यु होती और ना ही वह व्यक्ति हमारे देश में आकर अन्य व्यक्तियों को संक्रमित करता।

इसी प्रकार एक व्यक्ति कभी विदेश यात्रा ना करने के बावजूद भी कोरोना संक्रमित पाया गया। अंततः उसकी मृत्यु हो गई, तो क्या यह उसके साथ न्याय हुआ? क्या गाँवों, कस्बों में कोरोना संक्रमण से मर रहे लोगों से आपको कोई संवेदना नहीं है? जो विदेश जाना तो दूर की बात अपने राज्य से बाहर तक नहीं गए हैं।

मेरी सम्पूर्ण विश्व के विदेश मंत्रालयों से अपील ओर सुझाव है कि विदेश यात्रा के समय स्पष्ट रूप से विदेश से आने-जाने वाले व्यक्तियों से एक शर्त रूपी बॉन्ड भरवाया जाए जैसे कि अस्पताल में इलाज के वक्त भरवाया जाता है।

उस बॉन्ड के ज़रिये लोगों से कहा जाए कि अगर आप विदेश गए हैं और वहां कोई महामारी फैल रही है जिसका हमारे देश मे कोई इलाज नहीं है, तो हम ऐसे व्यक्तियों का प्रवेश हमारे देश में तब तक वर्जित रखेंगे जब तक कि वे स्वस्थ्य ना हो जाएं।

उसके उपरांत देश मे प्रवेश के बाद भी उस व्यक्ति की उचित मेडिकल जांच हो और ज़रूरत पड़ने पर उसे अस्पताल में उचित समय के लिए रखा जाए।

ऐसी लाइलाज महामारी किसी आतंकवादी हमले से कम नहीं है

ऐसी लाइलाज महामारी किसी आतंकवादी हमले से कम नहीं है। जिस प्रकार हवाई अड्डों पर आतंकवादी गतिविधियों से सुरक्षा हेतु कड़ी जांच की जाती है या, उसी प्रकार किसी बीमारी के संक्रमित क्षेत्र से आ रहे व्यक्ति, चाहे वह देश का नागरिक हो या विदेशी नागरिक हो, उसकी भी कड़ी जांच की व्यवस्था आज के युग में अनिवार्य हो गई है।


संदर्भ- देशबंधु, TheWire, timesofindia, economictimes, economictimes (अर्थव्यवस्था वाले हिस्से के लिए)

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