कोरोना वायरस के कारण इस समय देशव्यापी लॉकडाउन जारी है। हम सभी लोग अपने घरों में कैद हैं। देश की पूरी व्यवस्था में ताला बंद है और डेली कमाकर खाने वाले लोगों के सामने भुखमरी वाली नौबत आ गई है। अब तो मध्यम वर्ग के लोगों की परेशानियां भी बढ़ रही हैं।
इस विकट परिस्थिति में हमारे समाज के गरीब असहाय लोग किस तरीके से जीवन जी रहे हैं, इस बात को हम सभी जानते हैं। सरकार दावा कर रही है कि उन्हें भोजन-पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं मगर असलियत कुछ और ही बयां कर रहे हैं।
नरेला दिल्ली की झुग्गियों में भूखे-प्यासे सोने पर मजबूर प्रवासी मजदूर
आज मैंने दिल्ली के नरेला इंडस्ट्रियल एरिया के पास भोरगढ़ गाँव के गोलंबर के पास स्थित झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बिहार और यूपी के प्रवासी मज़दूरों से बात की। मजदूरों ने जिन दुखद स्थितियों का बखान किया, उन्हें शब्दों में लिख पाना संभव नहीं है क्योंकि सुनते मेरी आंकें आंसूओं से भर आईं।
मजदूरों का कहना था कि दिल्ली सरकार ने पास के स्कूल में भोजन का प्रबंध किया है जहां की व्यवस्था ठीक नहीं है। वहां जानवरों से भी बदतर भोजन देते हैं।
उन लोगों ने मुझे बताया कि यदि हमारे साथ कोई बच्चा होता है तो उसे भोजन नहीं दिया जाता है। लोग भूखे रहने पर मजबूर हैं क्योंकि काम- धंधा बंद हो गया है। सेठ और ठेकेदारों ने पैसा देना बंद कर दिया।
मैंने ज़्यादातर उन लोगों से बातचीत की जो परिवार के मुखिया हैं और उनका कहना था कि यहां पीने के पानी की भी व्यवस्था भी है। हम लोग गाँव वालों के पास जाकर पानी लाते हैं। उन लोगों से गालियां सुनकर हम कैसे पानी लाते हैं, यह हम ही जानते हैं। हम लोगों के पास ना तो पीने के लिए पानी है और ना ही खाने के लिए भोजन।
जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच रही हैं कल्याणकारी योजनाएं
केन्द्र और दिल्ली सरकार द्वारा चलाई जा रही राहत योजनाओं के बारे में पूछने पर महिलाओं ने बताया कि हमलोगों के पास ना तो राशन कार्ड है और ना ही गैस, बिजली या पानी कनेक्शन। बैंक खाता है लेकिन खाते मे कुछ नही आया है।
हमने इन महिलाओं से यह भी पूछा कि अभी तक आपके पास कोई सरकारी आदमी आया है? इनका कहना था कि कोई भी सरकारी व्यक्ति हमारे पास हमारा दुख-दर्द जानने नहीं आया है। हम लोग राशन की दुकान पर जाते हैं तो राशन वाला हमें गाली देकर भगा देता है।
प्रवासी मज़दूरों को मदद करने का सरकारों का दावा हवा-हवाई
पीएम मोदी के साथ-साथ दिल्ली की केजरीवाल सरकार की ताफीफ हमेशा होती है कि इन लोगों ने ये किया तो वो किया मगर ज़मीनी स्तर पर स्थितियां काभी दुखद हैं। जिन दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण विकट परिस्थितियों का बखान मज़दूरों ने किया है, उससे सरकारी दावों की पोल खुलती है।
सरकारों का दावा है कि प्रवासी मज़दूरों को रहने-खाने और स्वास्थ्य इत्यादि की पूरी व्यवस्था दिल्ली सरकार, भारत सरकार और बिहार सरकार द्वारा किया जा रहा है। मैं आपको बता दूं कि यह सब झूठ का पुलिंदा है। ग्राउंड पर किसी भी ज़रूरतमंद मज़दूरों को किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिल रही है।
करोना वायरस के भय के बावजूद गंदगी से भरे नालों के किनारे सोने पर मजबूर हैं प्रवासी मजदूर
नरेला की इस झुग्गी बस्ती में जब मैं प्रवेश किया तो लगा नहीं कि यहां पर इंसान रहते होंगे। बेरोज़गारी, अशिक्षा और भुखमरी ने इन प्रवासी मज़दूरों को गंदगी से भरे वातावरण में जीने पर मजबूर कर दिया है। जहां ना पानी-बिजली की सुविधा है और ना ही शौचालय की व्यवस्था है।
हमारे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि दिल्ली के हर गरीब के पास पानी-बिजली का कनेक्शन है तथा शौचालय की व्यवस्था है और दिल्ली संपूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त है मगर यह हकीकत सरकारों के उस दावे की पोल खोलती है और यह प्रमाणित करती है कि सरकार सिर्फ कागज़ों पर काम कर रही है।
सवाल यह है कि कोरोना संक्रमण के दौरान जब लगातार साफ-साफाई का ध्यन रखने के लिए कहा जाता है, ऐसे में इन झुग्गियों में रहने वाले लोग गंदगी में रहने पर मजबूर क्यों हैं? इनके लिए पानी-बिजली, शौचालय और साफ-सफाई की व्यवस्था क्यों नहीं है? क्या इसी तरह से हम करोना से जीतेंगे?
बिहार सरकार द्वारा प्रवासी मज़दूरों को 1000 रुपये देने का सच
बिहार सरकार अपने स्तर से बिहार के प्रवासी मज़दूरों को मदद करने का दावा कर रही है। उन्होंने एक एप्लीकेशन बनाया है जिसमें लोग आधार कार्ड बैंक अकाउंट और मोबाइल नम्बर डालकर अपना रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं ।
इस योजना का लाभ लेने के लिए सरकार की दो शर्तें हैं। पहला यह कि बैंक अकाउंट होना अनिवार्य है औऱ दूसरा आधार कार्ड बिहार का। अब तक इस योजना से 10 लाख से अधिक मजदूरों को लाभ मिला है। हमने बिहार सरकार के इस योजना के बारे मजदूरो से जब सवाल किया तो जानकारियां चौंकाने वाली थीं।
बिहार सरकार के योजना का लाभ तकनीकी लोगों तक ही सीमित तक सीमित
नोएडा एनसीआर में मज़दूरी करने वाले बिहार के मज़दूर मनीष कुमार का कहना है, “बहुत मुश्किल से आवेदन रजिस्टर हो पाता है। यह सॉफ्टवेयर इतना झंझटिया है कि साधारण आदमी इसको नहीं भर सकता है इसको भरने के लिए पेशेवर तकनीकी आदमी का होना ज़रूरी है।”
मज़दूरों के बयान के उपरांत बिहार सरकार की योजना के क्रियान्वयन पर कुछ सवाल उठ रहे हैं। मसलन, जिनके पास स्मार्टफोन नहीं है और जिनको तकनीकी ज्ञान नहीं है, वे इस योजना का लाभ कैसे लेंगे?
जो झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं, अशिक्षित हैं, गरीब हैं, मज़दूर हैं, उनको तो इस योजना के बारे मे जानकारी भी नहीं होगी फिर लाभ कैसे मिलेगा?
कोरोना संक्रमण के इस दौर में जिस तरह की विकट परिस्थितियों का सामना ये प्रवासी और दिहाड़ी मज़दूर कर रहे हैं, उन्हें ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को विनम्र निवेदन है कि इन गरीब, मज़दूरों को यदि आप सहायता करना चाहते हैं तो ग्राउंड लेवल पर सर्वेक्षण करके आंकड़ा एकत्रित कीजिए।