इरफान खान के निधन के बाद आज सुबह-सुबह ऋषि कपूर के निधन की खबर स्तब्ध करने वाली थी। विश्वास ही नहीं हो रहा था कि हम सबको इतना आनंदित करने वाले अभिनेता ऋषि की तपस्या टूट गई।
मन बहुत ही व्यथित था और बरबस ही ऋषि कपूर जी की फिल्मों के किरदार मन को झकझोरने लगे। फिल्मों में उनका चुलबुलापन भूलना मेरे लिए आसान नहीं होगा।
‘मेरा नाम जोकर’ में ऋषि कपूर ने यद्दपि एक लड़के के रूप में अपने फिल्मी कैरियर का आगाज़ किया था लेकिन अभी एक सितारे के रूप में उनका निखरना बाकी था। सन् 1970 में आई राज कपूर जी की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ असफलत रही थी।
कहा जाता है कि इस फिल्म की असफलता के बाद कपूर परिवार कर्ज़ से डूब गया था। इस फिल्म की असफलता के बाद उस दौर के बड़े नायकों नें राज कपूर की फिल्मों के साथ काम करने में असहजता महसूस की थी।
इन स्थितियों में मजबूरन राज कपूर साहब को अपने बेटे ऋषि कपूर को लॉन्च करना पड़ा। सन् 1973 में आई बॉबी फिल्म के माध्यम से ऋषि कपूर ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की।
बॉबी उस दौर की बड़ी हिट साबित हुई और संयोग से ही सही लेकिन फिल्मी जगत को एक बड़े सितारे की आगमन की आहट हो चुकी थी।
भारतीयों की प्रेम कहानी अक्सर फिल्मों के आधार पर कल्पित होती हैं। हम अक्सर फिल्मों को देखते समय उसकी नायक, नायिकाओ के स्थान पर स्वयं के युगल को रखकर अपनी कल्पना में ही प्रेम को चरम पर पंहुचने की हसीं ख्वाबों को देखते हैं।
एक बड़े घराने के लड़के का एक गरीब लड़की से प्यार की परिकल्पना देने में बॉबी ने बहुत सारे प्रेमियों के मन-मस्तिष्क में हलचल पैदा की।
बॉबी फिल्म के गाने ‘अंखियों को रहने दे अंखियों के आस-पास…..’ और ‘मैं शायर तो नहीं …..’ आज भी लोगों की ज़ुबान पर जमे हुए हैं। हम बॉबी फिल्म में ऋषि कपूर के अभिनय से उस दौर के नवयुवकों के प्रेम को फिल्माने वाली फिल्मों की शुरुआत मान सकते हैं।
बाद में सन् 1974 में बॉबी फिल्म में शानदार अभिनय के लिए ऋषि कपूर को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला।
बॉबी की सफलता के बाद ऋषि कपूर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जल्द ही उनका नाम फिल्म जगत के बड़े-बड़े सितारों में गिना जाने लगा। उन्होंने चांदनी, अमर-अकबर-एंथोनी, कर्ज़, हिना और दीवाना जैसी शानदार फिल्मों में अपने अभिनय से लोगों का मन मोह लिया।
हिना मूवी में याददाश्त खोने के बाद किया गया उनका अभिनय बरबस ही लोगो के दिलो-दिमाग में समा जाता हैं। फिल्म दीवाना में रवि का किरादार करते हुए अपनी प्रेमिका से दोबारा मिलने पर उनके हाव-भाव देखकर आप बरबस ही बोल पड़ेंगे, “वाह ऋषि जी आपने क्या अभिनय किया है।”
‘जब तक है जान’ फिल्म में उनके द्वारा बोला गया डायलॉग, “हर इश्क का एक वक्त होता है, वो हमारा वक्त नहीं था, पर इसका ये मतलब नहीं कि वो इश्क नहीं था।” खूब चर्चित हुआ था।
ऋषि कपूर की फिल्मों से जुड़ी बहुत सारी यादें हैं। हम सबके लिए भले ही अब वो इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन कभी चलती फिल्मों के सहारे तो कभी मानस पटल की यादों के सहारे वो हमें अपनी मौजूदगी का आभास दिलाते रहेंगे।
निश्चित ही ईश्वर उन्हें अपने शांति चरणों में स्थान देंगे। हम सबको इतना आनंदित करने के लिए शुक्रिया ऋषि जी, आप बहुत याद आएंगे।