आज कमोबेश मुख्यधारा की मीडिया और अखबारों में यह खबर सुर्खियां बटोर रही हैं कि महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करना गैर ज़मानती अपराध घोषित किया गया है।
कोरोना महामारी के दौरान यह एक अच्छी खबर है, क्योंकि पूरे देश में स्वास्थ्यकर्मियों की टीम पर लगातार हो रहे हमले अफसोसजनक हैं जिसके लिए नागरिक समाज कटघरे में है।
इसके पहले भी स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले को लेकर डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मियों की मांग होती रही है कि उनको संवैधानिक सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए।
इससे पहले महामारी के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने वाले व्यक्तियों पर एन.एस.ए. के तहत कार्रवाई करने की घोषणा भी हो चुकी है और प्रशासन इस पर कार्रवाई कर रही है।
तीस दिन में जांच पूरी कर चार्जशीट दायर करनी होगी
अब नए अध्यादेश में तीस दिन में जांच पूरीकर चार्जशीट दायर करनी होगी। सालभर में सुनवाई पूरी करनी होगी और पचास हज़ार से दो लाख रुपया जुर्माना तक लग सकता है।
इन अपराधों में तीन महीने से पांच साल तक सज़ा का प्रावधान है और गंभीर चोट आने पर छह महीने से सात साल तक सज़ा की बात कही गई है।
कोरोना वायरस संकट के बीच स्वास्थ्यकर्मियों पर हो रहे हमलों को देखते हुए केंद्र सरकार आनन-फानन में अध्यादेश लाई तो ज़रूर लेकिन ज़रूरी बात शामिल करना भूल गई।
इंसानियत को शर्मसार करने वाली बढ़ती घटनाएं
नए प्रावधान मौजूदा वक्त में कितने प्रभावी होंगे यह आने वाले समय में पता चलेगा मगर इन प्रावधानों में एक महत्वपूर्ण बिंदू पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया?
आज जिस तरीके से शव ले रही एंबुलेंस पर पथराव हो रहे हैं और कोरोना संक्रमित मरीज़ों का इलाज करने वाले डॉक्टरों की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार का विरोध हो रहा है, ज़ाहिर तौर पर नीति निर्माताओं को इस पर विचार करना होगा।
जिस देश में डॉक्टर्स को भगवान समझा जा रहा हो, वहां लॉकडाउन में मृत डॉक्टर का अंतिम संस्कार नहीं होने देना इंसानियत को शर्मसार करने की घटना है। यह घटना कोरोना मृत व्यक्तियों के साथ भी हो रही है जो पूरी मानवता पर कलंक है।
डॉक्टर का शव कब्रिस्तान में दफनाए जाने का विरोध
हलिया घटना चैन्नई की है जहां लोग डॉक्टर का शव कब्रिस्तान में दफनाने का विरोध कर रहे थे। किसी तरह मृत डॉक्टरों के सहयोगी ने आधी रात के अंधेरे में अपने मृत डॉक्टर को अंतिम विदाई दी।
55 साल के न्यूरो सर्जन डॉक्टर साइमन हरक्यूलिस में कोरोना का संक्रमण पाए जाने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। उन्हें हार्ट अटैक आया जिसके कारण उनकी मौत हो गई।
इनकी एम्बुलेंस चेन्नई स्थित अन्ना नगर जा रही थी जहां इनका सामना भीड़ से हुआ जिसने इनका विरोध किया और नहीं मानने पर इनके ऊपर पत्थर और लाठियों से हमला किया।
इसके पहले आंध्र प्रदेश के नेल्लोर के एक डॉक्टर की निजी अस्पताल में मौत हुई थी। जब उनके शव को शमशान घाट ले जाया गया तो स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया।
कुछ इसी तरह की स्थिति कहीं-कहीं पर कोरोना के कारण हुई मौत के बाद सम्बंधित लाशों के साथ भी देखने को मिली।
दिल्ली में कोरोना से मरने वाली महिला का अंतिम संस्कार करने से जब निगमबोध घाट पर इंकार कर दिया गया, तब राज्य सरकारों ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की, जिसका पालन हो रहा है लेकिन समाज का छिटपुट विरोध अभी जारी है।
क्या यह ज़रूरी नहीं है कि इस स्थिति में सरकार कोरोना के कारण मृत व्यक्ति और कोरोना संक्रमित डॉक्टरों की मौत के बाद, उनके अंतिम संस्कार को लेकर भी एक अधिसूचना या संदेश जनता को जारी करे। गौरतलब है कि इस सम्बंध में WHO पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर चुका है।
जनता के बीच यह भावना विकसित करने की ज़रूरत है कि कोई भी रोगी या डॉक्टर उसी समाज का हिस्सा है, जिस समाज के लोग कोरोना संक्रमित होने के बाद उनका विरोध करते हैं।
किसी के रोगी मात्र हो जाने से उसका नागरिक अधिकार क्षीण नहीं हो जाता, वह भी उस वक्त में जब वह अपना सब कुछ छोड़कर इस दुनिया से जा चुका है। कोई भी समाज किसी भी व्यक्ति से उसका अंतिम अधिकार कैसे छीन सकता है?
संदर्भ- NDTV, NewsMinute, पत्रिका, आज तक, OneIndia