गाँव के जीवन के बारे में देश के अन्य लोगों को काम ही जानकारी होती है। गाँव में प्रतिदिन ऐसी घटनाएँ होती है, जिसके बारे में अधिकांश लोग सोचते भी नहीं है। ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी कठिन और समस्याओं से भरी होती है। बाहर से पता नहीं लगया जा सकता जब तक हम उनके बीच रहे ना जैसे देखे की खेती में ही कितने कठिनाई है।
अगर खेती के बारे में बात की जाएँ, तो उसकी अपनी कठिनाइयाँ होती है। उदाहरण के तौर पे अगर किसी की खेती है, लेकिन खेत जोतने के लिए बैल नहीं है, तो खेती ही नहीं हो सकती। बैल किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
गाँव में हर घर में गाय का पालन होता है, जो हल जोतने लायक बछड़ा देती है। यह बछड़ा आगे चलकर बैल बनता है, जिसे खेतों में हल जोतने लायक बनाया जाता है। जब बछड़ा तीन से चार साल का होता है और उसके ऊपरी जबड़े पर चार दांत आ जाते हैं, उसे छोरवा दिया जाता है (वृषण को हटाया जाता है)।
इस प्रक्रिया में सुबह जल्दी किया जाता है। बैल छोरने के लिए सबसे पहले ऐसे लोगों को बुलाया जाता है, जो बैल छोरने की कला में निपूर्ण हो, ताकि किसी भी प्रकार की गलती की कोई गुंजाईश ना हो और यह काम सफलता पूर्वक किया जा सके। इसमें 5-6 लोगों की और हलदी कोसम (डोरी गाँव में पाए जाने वाले तेल) की ज़रूरत होती है।
सबसे पहले बैल को रस्सी के सहारे जमीन पर गिराया जाता है।आदिवासी बड़े-बड़े बैल भी एक रस्सी के सहारे आसानी से गिरा सकते है। अच्छी तरह से बैल के चोरों पैरों को बांध दिया जाता है। एक लकड़ी भी उसके गले में दबा दी जाती है, क्योंकि बैल की ताकत उसकी गर्दन में होती है। जब लकड़ी डालते है, तो यह ताकत नही लगा पाता। दो लकड़ी का बना हुआ एक चिमटा भी इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होता है, जिसमें बैल के अंडकोष को दबाया जाता है, ताकी वह अंदर में ही टूट जाए। इस काम को बड़ी सावधानी से किया जाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में घाव होने की, बीमारी होने की भी सम्भावना होती है।
यह बार- बार करने से बैल बहुत दर्द से कराहने लगता है, लेकिन किसान करे तो करे क्या, हल भी चलानी है, फसल भी उत्पन्न करना है। अगर किसान ऐसा नहीं करेंगे, तो खेती नहीं होगी और उनके बच्चे भूखे रह जायेंगे। जब बैल के अंडकोष को तोड़ा जाता हैं, वह नपुंसक हो जाता है। इसके साथ यह बहुत मोटाताजा और तंदुरुस्त भी हो जाता है, जो हल चलाने, खेती करने में सहायक होता है।
अगर गाँव में किसी भी बैल को अगर नहीं छोरवाया जाता, तो गाँव में वह सांड़ बन के घुमने लगता है, जो किसी भी काम का नहीं। बैल छोरवाने के लिए लोग दो बैलों के 300रु लेते है। बैल छोरवाने के बाद यह सावधानी रखी जाती है की बैल को अकेले में बांधा जाए, चरने के लिए नहीं जाने दें और सूखे, साफ-सुथरी जमीन पर बिठाया जाए। उसकी अच्छी तरह से देख-रेख की जाती है।
लेखक के बारे में- राकेश नागदेव छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करते हैं। यह खुद की दुकान भी चलाते हैं। इन्हें लोगों के साथ मिलजुल कर रहना पसंद है और यह लोगों को अपने काम और कार्य से खुश करना चाहते हैं। इन्हें गाने का और जंगलों में प्रकृति के बीच समय बिताने का बहुत शौक है।