घर में जब कोई हादसा होता है तो सबसे पहले हमारे दिमाग में वह इंसान आ जाता है जो लगता है हमारी मदद कर देगा। यह इंसान पिता, भाई, माँ, बहन, दोस्त या कोई पड़ोसी भी हो सकता है।
अगर इनमें से कोई आस-पास नहीं है तो हम खुद से जो कर सकते हैं, वो करते हैं। ऐसा ही होता है ना? हां ही कहेंगे आप भी।
कोरोना वायरस ने दैनिक जीवनशैली को बदलकर रख दिया है
विश्व के महाद्वीप में कोरोना वायरस ने किसी मूवी के विलन की तरह हमारी दैनिक जीवनशैली को बदलकर रख दिया है। सब कुछ रुकता जा रहा है। बस, रेल, हवाई जहाज सब धीरे-धीरे बंद होता जा रहा है। शॉपिंग मॉल, पब, क्लब, रेस्त्रां भी बंद हो रहे हैं। लोग घर से बाहर निकलने में डर रहे हैं।
हो सकता है आप जहां रहते हैं, वहां अभी तक कोई भी कोरोना पीड़ित ना हो। ऐसे में यह आपका सौभाग्य ही है। इसका मतलब यह नहीं है कि आप कहते घूमे और रौब जमाकर कहें, “अरे ऐसे ही है ये, किसी को कुछ नहीं हो रहा है। यह तो बस विदेशों में है, हमारे गाँव में थोड़ी आ जाएगा।”
आपदा से बचाव के लिए ज़रूरी है पूर्ण जानकारी जुटाकर लोगों को सतर्क करें
इस तरह की बातें करना इस वक्त बिल्कुल सही नहीं है। इसकी जगह आप एक-दूसरे को सतर्क करें। आपके पास इंटरनेट है तो WHO की वेबसाइट पर जाकर देखते रहिए कि क्या अपडेट है।
भारत सरकार की हर सरकारी वेबसाइट पर कोरोना वायरस से संबंधित जानकारी व लिंक उपलब्ध है, वहां जानकारी लेकर एक-दूसरे को सतर्क करें। ज़रूरत पड़ने पर 1075 हेल्पलाइन पर कॉल करें।
आपदा के वक्त हमारे लिए ज़रूरी होता है जानकारी जुटाना जिससे हमें पता चलता रहे कि हम क्या करें और क्या ना करें। जानकारी भी सही जुटाना ही फायदेमंद होगा।
आपने धमाल मूवी देखी हो या नहीं लेकिन प्राइवेट प्लेन लेकर गए असरानी वाला कॉमेडी सीन ज़रूर देखी होगी। वे जल्दबाज़ी में आधी-अधूरी बात सुनते हैं, जो बटन नहीं दबाना होता है,उनके द्वारा उसे ही दबा दिया जाता है।
घबराहट में ऐसा ही होता है कोई कुछ भी बोले हम मान लेते हैं या पूरी बात सुने बिना ही अपने मन से जो चाहें करने लग जाते हैं जिसका परिणाम बुरा हो सकता है। इसलिए सही तथा पूरी जानकारी रखना बहुत आवश्यक है।
इस वक्त हमारे पास सरकारी साधन जैसे आल इंडिया रेडियो, प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो, डी.डी. न्यूज़, डी,डी, नैशनल, जैसे साधन हैं। हो सकता है आप प्रधानमंत्री के कट्टर वाले विरोधी हों, यदि विरोधी हैं भी तो उन्होंने अगर कहा है घर में रहने के लिए तो उनकी बात मानिए। कुछ तो खुद से बचाव करने का सोचेंगे ही। मतलब ऐसी भी क्या दुश्मनी है कि खुद का ही नुकसान कर लो।
वोट तो दिया ही है और अगर नहीं भी दिया है तो इस वक्त राजनीतिक वैचारिक मतभेद अलग रखें। पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने वाले मुखिया पर भरोसा करें। इस वक्त के लिए यह सबसे ज़रूरी है जो आप कर सकते हैं।
अंध भक्त होकर नहीं सामान्य नागरिक की तरह भरोसा करें
अंध भक्त होकर नहीं, बल्कि सामान्य नागरिक की तरह भरोसा करें। आप कहेंगें क्यों? क्योंकि वो प्रधानमंत्री हैं इसलिए? तो नहीं, भरोसा इसलिए करिए क्योंकि उनके पास जानकारी जुटाने के साधन हैं।
उनके पास सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ ज़रूरत पड़ने पर एक आर्डर पर प्राइवेट अस्पताल भी सरकारी की तरह काम कर सकते हैं। वही हैं जो इस वक्त सारे संसाधन पर पकड़ रखने वाले हैं। उनको कोसने का बहुत समय है, कोसते रहिए लेकिन अभी सपोर्ट करिए भरोसा करिए।
इस वक्त सिर्फ सरकारी तंत्र ही काम आ रहा है और बहुत खराब स्थित में भी वही काम आएगा, गांठ बांध लीजिए यह बात। व्हाट्सएप और प्राइवेट टी वी चैनल को देखकर परेशान मत होइए।
अनावश्यक संग्रह की आवश्यकता नहीं है
मैं जहां रहता हूं आस-पास के लोग कह रहे हैं किसी से बात मत करो, खाने की चीज़ें लाकर घर रख लो, सैनिटाइजर, मास्क ले आओ आदि। सावधानी रखना अच्छी बात है लेकिन हद से ज़्यादा सावधानी रखना किसी दूसरे के लिए हानिकारक हो सकता है।
हो सकता है जो चीजें आप लाकर एकत्रित कर रहे हैं, उस वक्त किसी और को उसकी अधिक ज़रूरत है। जैसे- मास्क और सैनिटाइज़र बाज़ार में या तो मिल नहीं रहे या दोगुनी कीमत पर मिल रहे हैं।
इसका कारण यही है कि वेवजह ही हमने लेकर स्टॉक लगा रखा है। जिसे ज़रूरत है उस तक ये चीज़ें नहीं पहुच पा रही हैं। इसलिए उतनी ही चीज़ें लीजिए जितनी आवश्यक हैं। खाने की चीज़ें कम नहीं पड़ेंगी।
जब वर्ष 1971 में चीन से हुए युद्ध की यादें ताज़ा हो गईं
कोरोना वायरस के प्रकोप ने बुजुर्गो की आंखों के सामने चीन, पाकिस्तान के युद्ध व उनके समय आई किसी महामारी या आपदा की बुरी यादें तरोताज़ा कर दी हैं। अगर आपके आस-पास ऐसे बुज़ुर्ग हैं तो उनसे पूछिए कि उन्होंने कैसी स्थिति को देखा है। ज़रूरी है कि आप उनकी बात मानिए।
कल रात को मोदी जी का संदेश सुनने के बाद पापा बता रहे थे कि जब 1971 की लड़ाई चल रहा रही थी तब रात को हम सब डरे रहते थे। रात को सब अपने घरों के दिये बुझा देते थे। ताकि रौशनी देखकर ऊपर से बमबारी ना हो जाए।
घरों में रेत की बोरियां लगा रखी थी ताकि आग लगने की स्थित में तुरंत बुझा दिया जाए। ये अनुभव सीखने के लिए हैं कि आज की महामारी में हम खुद को कैसे तैयार रख सकते हैं।
अभी तक कोरोना वायरस की कोई दवा नहीं बनाई जा सकी है। भारत को वायरस के तीसरे चरण में पहुंचने से सिर्फ हम ही रोक सकते हैं। यह सिर्फ संभव हो सकता है सरकारी गाइडलाइन्स को पूरी तरह मानने से व एक-दूसरे को सही जानकारी देने से।
इस वक्त आपको घबराने की ज़रूरत नहीं है
इस वक्त आप अगर कुछ कर सकते हैं तो अपने आस-पास वालों को सही जानकारी दें ताकि वे घबराएं नहीं। यदि किसी मज़दूर का पैसा आपने नहीं दिया है तो भुगतान कर दें।
छोटे दुकानदार का अवशेष भुगतान कर दें ताकि वे अपनी ज़रूरत का सामन ले सकें। वे अपने गाँव से शहर तक बस, ट्रेन का किराया दे सकें।
फिर से कहूंगा कि सरकार पर भरोसा रखिए। बाकी ये मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है कि हाथ धोएं, लोगों से दूरी बनाये रखें क्योंकि ये आप बहुत दिन सुनकर बोर हो चुके हैं मगर यकीन मानिए यही एक दवा है इस वायरस की इसलिए कहना ज़रूरी भी है।
यदि आप समझदार हैं तो आप समझदारी दिखाएं
आप समझदार हैं और आप अपने हिसाब से चीज़ें कर सकते हैं। आप भी अपना एक बॉक्स बना लीजिए, इसमें आप रखिए कि आपको क्या पढ़ना है, कौन सी न्यूज़ देखनी है, किस वेबसाइट को देखना है, किससे जानकारी लेनी है, क्या खाना खाना है, कहां जाना है आदि।
तदोपरांत उसका पूरी सख्ती के साथ पालन करिए, इससे आप स्वयं व एक-दूसरे की मदद कर पाएंगे। जो कि सीधे तौर पर सरकार की ही मदद होगी।
देश को इस वक्त हमारे समर्थन की बेहद आवश्यकता है
देश को हमारे समर्थन की इस वक्त सबसे अधिक आवश्यकता है। इसलिए सरकार को सपोर्ट करिए। स्वयं में यह भरोसा रखिए जल्द ही सब ठीक होगा। अपने ज़िलाधिकारी, अपने मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री पर भरोसा रखिए। एक और सबसे बड़ी बता वो यह कि डॉक्टर पर पूरी तरह से विश्वास करिए, क्योंकि वे ही उम्मीद हैं।
इस वक्त आप उस कैटरपिलर की तरह खुद पर कर्फ्यू लगा लीजिए,जो खुद को बंद कर लेता है और एक समय बाद खूबसूरती से निकलता दिखाई देता है।
उसी तरह आप खुद पर कर्फ्यू लगाकर इस समय पढ़िए, खेलिए, बच्चों को समय दीजिए, बड़ों के साथ बैठिए। पूरा घर एक साथ बैठकर चर्चा कीजिए, एक-दूसरे से सीखिए, सिखाइए। यह समय खुद को संवारने का है।