नवधनाढ्य, तथाकथित संभ्रांत लोग बेहद गैर-ज़िम्मेदार हो रहे हैं। वक्त-बेवक्त पार्टी करने वाले ये सनकी लोग अपनी कारस्तानियों से आज पूरे समाज को संकट में डाल रहे हैं। आधुनिकता की अंधाधुंध दौड़ में शामिल ये लोग सेलेब्रिटीज़ कहलाते हैं। इनके लिए कोरोना भी पिकनिक है।
कुछ नासमझ लोग इसके आसपास मज़मा लगाते हैं और इनके करीबी होने में अपनी शान समझते हैं। रसूखदार लोगों का नज़र-ए-इनायत पाने के लिए मध्यमवर्गीय लोग बेकरार रहते हैं और जहा्ं तक निम्नवर्गीय लोगों की बात है तो वे आदेशपाल हैं।
यानी कि जो खेतों में, सड़कों पर, जहां- तहां काम के बोझ से हलकान हैं। इन्हें तो मरने तक की फुर्सत नहीं है। जिंदगी का इनहेलर लेकर जिये जा रहे हैं।
कॉकटेल पार्टीज़ का जूठन खाने वाले ये मिडिलक्लासी मच्छर लोग बाअदब झुक-झुककर कुबड़े हो रहे हैं। उन्होंने अपनी मान-मर्यादा को ताक पर रख दिया है।
कनिका कपूर को पार्टी में जाने की क्या ज़रूरत थी?
एक कनिका कपूर कोरोना का विषाणु लेकर पूरे लखनऊ पर गाज़ बनकर गिर गई हैं। मंतरी से संतरी तक कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। कनिका लंदन से आती हैं।
वो जानती हैं कि वो कोरोना पॉज़िटिव हैं, फिर भी अपने को आइसोलेट नहीं करती हैं, बल्कि तुरंत रंगीन पार्टी करने में मशगूल हो जाती हैं।
तथाकथित इज़्जतदार, रसूखदार लोग उस तितली का पराग पाने दौड़ पड़ते हैं। उन पार्टीबाज़ों में से किसी ने भी कोरोना जैसे महामारी को रोकने का सरकारी निर्देशों का पालन नहीं किया।
हद तो तब हो गई जब स्वास्थ्य मंत्री ने भी महफिल में जाम टकराया। उसकी एक मादक मुस्कान पर स्खलित हुए लापरवाह लोग आज संक्रमित होकर समाज के लिए खतरा बने हुए हैं। ये विलासी लोग खुद डूबने के साथ-साथ दूसरों को भी लेकर डूबेंगे।
जनता कफ्यू का पालन कर ज़िम्मेदारी निभाने की ज़रूरत है
मैं किसी व्यक्ति, किसी सरकार और किसी विचारधारा का समर्थन नहीं कर रही हूं लेकिन हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि यह ‘जनता-कर्फ्यू’ अकेले हमारे प्रधानमंत्री के दिमाग की उपज नहीं है, बल्कि ये प्रधानमंत्री को एडवाइज़री है, उन काबिल डॉक्टर्स और ब्यूरोक्रेट्स की, जो आपसे और मुझसे ज़्यादा समझदार और ग्लोबल हैं।
हमारे-आपसे कहीं ज़्यादा वे विश्व के हर बदलते घटनाक्रम पर गहरी नज़र रखे हुए हैं। जो अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सीधे संपर्क में हैं। जिनके हाथ में डेढ़ करोड़ से भी ज़्यादा भारतीय नागरिकों की बागडोर और जिम्मेदारी है।
हमें ज्ञात नहीं कि इस वायरस की उम्र कितनी होती है लेकिन इतना तो पता चल ही चुका है कि यह किसी भी उम्र के व्यक्ति की जान ले सकने में सक्षम है।
यह तंज कसने का नहीं, बल्कि आपसी समर्थन, सहयोग और ज़िम्मेदारियां निभाने का समय है। कम-से-कम इस मुद्दे पर तो ज़रूर, क्योंकि यह किसी विशेष संप्रदाय या जाति का मुद्दा नहीं, बल्कि यह समस्त भारत के समूल नागरिकों के स्वास्थ्य हेतु उठाया गया एक कदम है।
जनता कफ्यू का विरोध करने वाले राजनीति कर रहे हैं
मुझे नही पता इस जनता कर्फ्यू का परिणाम क्या निकलेगा लेकिन यह भी तभी पता चल पाएगा ना जब हम इस कर्फ्यू पर अमल करेंगे। ज़्यादा-से-ज्यादा क्या होगा? यही ना कि जनता कर्फ्यू या तो इस मिथक को तोड़ेगा करेगा कि सोशल डिस्टेंस इसका प्रभाव कम कर सकता है या फिर कुछ हद तक इससे राहत मिलेगी या फिर ज़ीरो रिज़ल्ट की पुष्टि करेगा कि अभी और सोचने और करने की आवश्यकता है।
ऐसी विकट परिस्थिति में अगर जनता कर्फ्यू का यह आइडिया किसी को राजनीतिक या अपनी साख का विषय लगे, निश्चित रूप से इसे सदी की सबसे बड़ी त्रासदी का भी सूचक माना जाना चाहिए।
जनता कर्फ्यू समर्थक और विरोधी इसलिए आपस में भिड़ रहें हैं, क्योंकि उन्हें इस नाजुक मोड़ पर भी राजनीति कोरोना से अधिक गहन और स्वादिष्ट लग रही है लेकिन समझिए कि जनता कर्फ्यू आहट है उस राष्ट्रीय आपातकाल की, जो कभी भी देश पर लगाया जा सकता है।
सरकार चाहती तो डंडे और बंदूक के दम पर भी जनता कफ्यू लागू कर देती
यदि यह ज्ञात हो गया कि सोशल डिस्टेंस ने अपना काम बखूबी किया है और इसके रिज़ल्ट्स सकारात्मक निकले, तो यह ज़रूरी और आवश्यक कदम होना चाहिए। फिर भी सरकार का जनता से आह्वान है कि वे स्वेच्छा से स्वयं पर कर्फ्यू लगाएं। वरना सरकार चाहती तो यह कर्फ्यू डंडे और बंदूक के दम पर भी लगाया जा सकता था, जिसका सामना इस समय चीन और इटली की जनसंख्या कर रही है।
अत: यह आह्वान स्वागत योग्य है और यदि जनता इसका अनुपालन आगे भी समूल विवेक और सजगता से करती है, तो हम राष्ट्रीय आपातकाल से बच सकते हैं।
सरकार और प्रशासन में बैठे उच्च पदस्थ लोग भी यह अच्छी तरह जानते और समझते हैं कि भारत जैसे बड़े देश को सिर्फ एक घंटे के लिए बंद करना अर्थव्यस्था के तालों पर जंग लगा सकता है। फिर यह तो करीब 36 घंटे की बात है।
इतना बड़ा रिस्क एक सरकार तभी ले सकती है, जब उन्हें ज्ञात हो चुका है कि स्थितियां कभी भी महामारी का रूप ले सकती है और यह सच है ना कि डराने या अफवाह उड़ाने का मौजू!
अत: एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते इस समय समस्त पूर्वाग्रह और राजनीतिक स्वार्थ परे रखकर इस मुहिम को बल दें। अपना पूर्ण सहयोग और समर्थन दें।
कहीं तीसरे फेज़ में ना पहुंच जाए कोरोना का संक्रमण
याद रखिए, आप जीवित रहिएगा, तभी अपने धन, पद और सम्मान का उपभोग कर पाइएगा। वरना आज की तारीख का यह सबसे बड़ा परजीवी भारत जैसे एक महान सांस्कृतिक और विविधता से भरे देश की भूमि को एक बहुत बड़ी जनसंख्या से आइसोलटे कर जाएगा और इसके ज़िम्मेदार होंगे हम और आप।
अभी हम कोरोना के महामारी में दूसरे फेज़ में हैं मगर हम अभी से व्यवस्था बनाकर रखते तो बेहतर होगा। वैसे भारत में चीन से लोकसंख्या कम है मगर हमारे देश में चीन से ज़्यादा बेरोज़गारी और भूखमरी है। चीन में टेक्नोलॉजी का जितना विकास हुआ, उतना भारत में नहीं हुआ है।
इस देश में सबसे ज़्यादा धन मंदिरों में पड़ा है। उसका विनियोग देश हित में लगाया जा सकता है। उससे भारत के नागरिकों के लिए अच्छा अन्न-वस्त्र-शिक्षा-आरोग्य मिले, उसका प्रयास हो सकता है।
काश जनता कफ्यू पर बात और पहले होती!
इस महामारी से उबरने की घोषणा मोदी जी 15 दिन पहले यानी कि शुरुआत में ही कर देते, तो अच्छा होता। 22 मार्च को सिर्फ एक दिन जनता कर्फ्यू लगाने से बहुत ज़्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला है फिर भी इसका पालन किया जाना चाहिए़।
उम्मीद तो थी कि कोरोना के इस वैश्विक संकट पर हमारे देश के प्रधानमंत्री चीन जैसे नौ दिन में बना 1000 बेड वाला हॉस्पिटल बनाने या फिर सरकार द्वारा कुछ अन्य ठोस कदम उठाने की घोषणा करेंगे या सारे देश में अच्छी वैद्यकीय व्यवस्था को घोषित करते मगर ऐसा नहीं हुआ।
नरेंद्र मोदी जी से ज्यादा सकारात्मक और सरल भाषा में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जी ने महाराष्ट्र की जनता को समझाया। छत्रपति शिवाजी महाराज के युद्ध की याद भी दिलाई और कहा कि यह सकंट जात-पात और धर्म को नहीं मानता है, इसलिए हर किसी को इन सबसे ऊपर उठकर इस दिशा में सहयोग करना चाहिए। अत: सतर्क रहें, सुरक्षित रहें, घर के अंदर रहें, अपनों के साथ रहें, खुद को बचायें रखें और अन्य इंसानों को बचाने में सहयोग करें।