मेरी दिल्ली ऐसी तो नहीं थी, कौन है जो इसे सुलगा रहा है? क्या वाकई में वे दिल्ली को जानते हैं कि कौन रहता है यहां। यहां हिंदू या मुसलमान नहीं, यहां तो दिल वाले रहते आए हैं।
इसलिए बरसों से दिल्ली को दिलवालों की दिल्ली कहा जाता है मगर 4 दिन से सुलग रही दिल्ली अब शायद दिलवालों की नहीं रहेगी, क्योंकि दिलवालों के दिल बड़े होते, हैं उनके हाथों में तमंचे नहीं ज़ुबां पर नमस्ते होते हैं।
दिलवालों की दिल्ली को ये कैसी नज़र लग गई?
मेरी दिल्ली को किसी की नज़र लग गई, तभी तो पिछले कुछ समय से जाफराबाद, गोकुलपुरी, कर्दमपुरी, करावल नगर और मौजपुर जैसी जगहों पर भड़कती हिंसा ने भयावह दंगे का रुप ले लिया।
इसमें हिंदू या मुस्लिम नहीं मर रहे, घुट-घुटकर मेरी दिल्ली मर रही है, क्योंकि दिल्ली कभी भी ऐसी नहीं रही जैसी आज है। यहां सियासत ज़रूर चलती आई है मगर धर्म की नहीं।
राजनीति ने दिल्ली को गर्म तंदूर बना दिया
कुछ नेताओं ने अपनी सियासत की रोटियां सेंकते हुए दिल्ली को जलाया है। उसमें जल रही है दिल्ली की मानवता। जबकि उन नेताओं के भाषणों ने दंगाईयों को भड़काकर घरों में आराम से अपने टेलीविज़नों के ज़रिए खुद के कारनामों को पूरा होते देखा।
बहरहाल, सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में दिल्ली के दामन पर ऐसा कलंक लगने की आशंका थी? ज़रा सोचिए जिस दिल्ली को देश का तिलक कहा जाता है, आज उसी दिल्ली के सीने में आग के शोले भड़क रहे हैं।
हम मानते हैं कि अगर घर में कोई भी मेहमान आता है तो उसकी मेहमान नवाज़ी करनी बेहद ज़रूरी होती है मगर घर में अगर आग लगी हो, तो उस आग को भी बुझाना पहला कर्तव्य है।
ऐसी ही आग पिछले 4 दिनों से दिल्ली के संवेदनशील इलाके जाफराबाद, मौजपुर व करावल नगर आदि में लगी हुई थी, जिसने केन्द्र सरकार से लेकर संघ शासित केन्द्र की सरकार व दिल्ली पुलिस की कमियों और नाकामयाबियों को जगजाहिर किया।
हिंसा क्यों भड़की?
बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के भड़काऊ बयान पर ही केवल दिल्ली नहीं सुलगी, दिल्ली सुलगी यहां पर रहने वाले बाशिंदों की सोच के चलते, जिनकी सोच में कही ना कहीं सौहार्द गायब हुआ और उसकी जगह हिंदू-मुस्लिम घर कर गया है।
देखते ही देखते जिसके कारण 42 जानें चली गईं। सोचिए सिर्फ और सिर्फ वहशी सोच के कारण कितने दिये बुझ गए उन्हीं के घरों के। रह गईं हमेशा-हमेशा के लिए उन घरों से जाने वालों की मुसकराहटें।
ऐसे ही एक घर की मुसकुराहट थी करावल नगर के अंकित शर्मा की, जो अपनी नौकरी से लौटते वक्त दंगाईयों की चपेट में आए और उन्हें इस कदर भयावह तरीके से दंगे की भेट चढ़ाया गया कि उनका परिवार ज़िंदगी भर नहीं भूल पाएगा कि दिल्ली में हुए दंगों ने उनके बेटे को किस तरह से छीन लिया।
भाईदूज से भी भाई की रक्षा नहीं हो सकी
वह बहन जो हर राखी पर अपने भाई की कलाई पर राखी इसलिए बांधती थी कि उसका भाई हर मुसीबत से उसे बचाए। आज दिल्ली हिंसा ने उस रक्षा के धागे रक्षा के नाम पर तब सवाल बन कर रह गए, जब भाईदूज द्वारा भाई की रक्षा के लिए आस्था का जो कवच भगवान से मांगती है, उसे भी झूठा होने पर मजबूर होना पड़ा।
भले ही उसका एक भाई अभी भी है मगर बहन के लिए उसका हर भाई कितना खास होता है, यह उस बहन को देखकर साफ अंदाज़ा लगाया जा सकता है, जिसने इस दंगे की हिंसा में अपने भाई को अपनी आंखों से दंगाईयों की भेंट चढ़ते देखा।
उसके सामने उसके भाई को खींचकर ले जाया गया और वह असहाय की तरह देखती रहीं और बस यही प्रार्थना कर रही थीं कि सलामत रहे उसका भाई मगर उसे क्या पता था कि आज उसकी राखी और भाई दूज भी उसके भाई को नहीं बचा पाएंगे।
मौत हर किसी को आती है और आएगी, यह अटल सत्य है। इतनी भयावह मौत देने वालों को देखकर शायद भगवान और खुदा भी धरती पर आ जाए तो कह दें कि ये मेरे बनाए इंसान नहीं हैं। वह सोचेंगे इंसानों को ही जला रहें हैं, मैंने तो इंसान बनाए थे, ये हैवान कैसे बन गए?