दुनियाभर में कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामलों के सामने आने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ ने इसे अंतरराष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दिया है।
दुनियाभर में इसका बड़ा प्रभाव देखा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय हवाई यातायात पर काफी हद तक रोक लगी हुई है। बहुत सी कंपनियों में प्रोडक्शन लगभग बंद हो चुके हैं।
शेयर बाज़ार पर भी दिख रहा है कोरोना का असर
स्वाभाविक तौर पर इन सब चीज़ों का असर शेयर बाज़ार पर भी दिखाई दे रहा है। इस हफ्ते मुंबई शेयर बाज़ार 9.24% तक लुढ़क गया जिसके चलते इन्वेस्टर्स को 15 लाख करोड़ रुपए का घाटा हो गया।
गौरतलब है कि सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनियाभर में यही ट्रेंड देखने को मिल रहा है। अमेरिकी शेयर बाज़ार मुश्किलों में नज़र आ रहा है। यूरोप, शंघाई, हांगकांग और टोक्यो में भी लगभग यही स्थिति बरकरार है।
इस सप्ताह की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत लगभग 30 फ़ीसदी कम हो गई। जिसके चलते इस पर निर्भर रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और ओएनजीसी के शेयर में बड़ी मात्रा में कमी दर्ज़ की गई।
यस बैंक के संकट के बाद भारतीय बैंकिंग सेक्टर पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। इसके बाद विदेशी निवेशकों ने बचावात्मक रुख अपनाया है। विदेशी संस्थाओं ने अपने शेयर्स बेचने पर ज़्यादा ज़ोर दिया है।
कोरोना की वजह से संकट और भी गहराया
भारतीय शेयर बाज़ार यस बैंक और कच्चे तेल की कम दामों से पहले ही परेशान था। कोरोना की वजह से दुनियाभर में कारोबार में कमी दर्ज़ की जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का उत्पादन पूरी तरह ठप हो गया है।
दुनियाभर में ज़्यादातर इलेक्ट्रॉनिक सामान चीन से आने वाली रॉ मटेरियल के आधार पर बनाया जाता है। चीन में अभी फिलहाल लॉक डाउन है जिसका असर शेयर बाज़ार पर देखा जा रहा हैं।
कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय यातायात पर प्रतिबंध लगे हुए हैं। अमेरिका ने यूरोप से आने वाले पर्यटकों पर रोक लगाई है।
मुंबई शेयर बाज़ार में अगर अतिरिक्त उछाल या फिर अतिरिक्त गिरावट होती है, तो ऐसे में शेयर मार्केट बंद किया जाता है। उसे सर्किट ब्रेकर कहते हैं। ऐसा तब होता है जब पिछले दिनों के मुकाबले शेयर्स 10 से 20% गिर जाते हैं या फिर उछलते हैं।
लोअर सर्किट क्या है?
ऐसा तब होता है जब निवेश बाज़ार में शेयर्स के भाव बुरी तरह से लुढ़क जाते हैं। ऐसी स्थिति में भारी कीमत से कम कीमत पर शेयर्स बेचने पर रोक लगा दी जाती है। इसका असर यह होता है कि बाज़ार और नीचे नहीं आता है।
अपर सर्किट क्या है?
शेयर बाज़ार जब उम्मीदों से भी ज़्यादा ऊपर जाता है, तो ऐसी स्थिति में हम शेयर की कीमत एक तय सीमा से ज़्यादा नहीं बढ़ा सकते हैं। शेयर बाज़ार में इसके चलते संतुलन बना रहता है।
इससे पहले 17 मई 2004 में सर्किट ब्रेकर लगाया गया था। तब अटल बिहारी वाजपेई चुनाव हार गए थे। 2006 और 2007 में भी एक एक बार उसका इस्तेमाल किया गया था। 2009 में दूसरी बार काँग्रेस सरकार आने पर अपर सर्किट लगाया गया था।
पहले से ही मंदी की मार झेल रही विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था को इससे ज़ोर का झटका लगने की संभावना है। भारत की अर्थव्यवस्था भी इस समय बुरे दौर से गुज़र रही है।
अगर इस स्थिति में 1% जीडीपी भी कम हो जाता है, तो काफी गहरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। आने वाले दिनों में देखना होगा कि भारत किस तरह से इस आर्थिक संकट से रास्ता निकालता है।