मासिक धर्म आज के समय में एक गंभीर समस्या है। समाज में इसे लोग माहवारी, एमसी, रजोधर्म, मेंस्ट्रुअल साईकल या फिर पीरियड्स के नाम से जानते हैं। आमतौर पर लड़कियों में पीरियड्स की शुरुआत 11 से 17 साल के बीच हो जाती है लेकिन आजकल के बदलते खान-पान की वजह से लड़कियों को पीरियड्स कम उम्र में भी होने लगा है।
ये बहुत ही ज़्यादा डराने वाले आंकड़े हैं। लोग माहवारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। इसलिए महिलाओं में सर्वाइकल एवं कैंसर जैसे रोगों की वृद्धि पाई जा रही है। 70 फीसदी महिलाएं रिप्रोडक्टिव ट्रेक्ट इंफेक्शन से पीड़ित हैं। यहां एक बात ध्यान देने वाली यह भी है कि माहवारी को नज़रअंदाज़ करने पर आपको ही इसके दुष्परिणाम से गुज़रना पड़ेगा।
आपसे ज़्यादा कोई और आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं सोच सकता है। इसलिए माहवारी को लेकर जागरूकता बहुत आवश्यक है। खुद ही नहीं, बल्कि आस-पड़ोस की महिलाओं को भी इसके प्रति जागरूक कीजिए। यह हर एक महिला के जीवन का सवाल है। इसलिए इसको हल्के में मत लीजिए।
पीरियड्स के दौरान लड़कियों को अपवित्र मानना
हमारे समाज में कुछ लोग अभी भी पीरियड्स के दौरान लड़कियों को अपवित्र मानते हैं। अचार मत छुओ, मंदिर में प्रवेश मत करो, बिस्तर पर मत बैठो फलाना-डिमकाना। वहीं, दूसरी ओर पीरियड्स के दौरान महिलाओं के साथ सेक्स करने में कोई प्रतिबंध नहीं होता है। आखिर यह दोहरा मापदंड क्यों?
लोगों को इस बात से अवगत करा दूं कि यह समय महिलाओं की उपेक्षा करने का नहीं है, बल्कि ऐसे समय में हमें उनके साथ रहकर प्रेम का भाव रखना चाहिए। महिलाओं के साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिए। ऐसे समय में उसे ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है।
क्यों शुरू हुआ स्कूलों में फ्री सैनिटरी पैड का वितरण
स्तिथि इतनी खराब है कि अधिकांश महिलाओं को माहवारी की जानकारी तब होती है, जब उनको माहवारी की शुरुआत होती है। मतलब इससे पहले उनको यह नहीं पता होता कि आखिर माहवारी किस चिड़िया का नाम है। माहवारी की शुरुआत होने के बाद अधिकतर महिलाएं स्कूल जाना बंद कर देती हैं और कुछ तो पढ़ाई भी बंद कर देती हैं। इसको देखते हुए ही सरकार ने स्कूलों में फ्री सैनिटरी पैड का वितरण शुरू किया।
लोगों की आवाज़ उठाने के बाद गर्भनिरोधक एवं कांडोम के बाद सरकार ने सैनिटरी पैड को भी टैक्स फ्री करने का निर्णय लिया। पैड ना खरीद पाने के पीछे इसकी लागत का भी बहुत बड़ा कारण है, जिसके कारण महिलाएं इसे आसानी से नहीं खरीद पाती हैं।
माहवारी के दौरान एक ही कपड़े को बार-बार धोकर उसे धूप में सुखाकर उसका प्रयोग दोबारा से करती हैं, जिसके कारण ही बीमारियां जन्म लेती हैं और महिलाएं अपने जीवन से खिलवाड़ को मजबूर होती हैं।
जिन क्षेत्रों में पर्याप्त साधन ना हों, वहां कैंपेन की ज़रूरत है
जहां पर्याप्त साधन ना हो, वहां जागरुकता के साथ महिलाओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड्स वितरित करने की ज़रूरत है। समय-समय पर सेमिनार्स के ज़रिये महिलाओं को जागरुक करना होगा। ताकि हर एक महिला को पीरियड्स से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध हो सके, क्योंकि जानकारी ना होने के कारण हज़ारों महिलाएं रोगों का शिकार हो जाती हैं। महिलाएं अभी भी पीरियड्स के बारे में बात करने में संकोच महसूस करती हैं। अत: जब तक खुलकर बात नहीं होगी, तब तक इससे होने वाली समस्याओं से पार पा पाना मुश्किल होगा।
हमें विद्यालयों, कोचिंग सेंटरों और डांस क्लासेज़ में जाकर महिलाओं के प्रति जागरुकता फैलानी चाहिए, जिससे उनके अंदर की हिचक को खत्म किया जा सके। कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां हमें हर एक महिला से सांझा करनी चाहिए, जैसे- कपड़े का प्रयोग नहीं करना चाहिए, हर तीन घंटे में पैड बदलना चाहिए, पैड को कागज़ में लपेटकर कूड़ेदान में ही डालना चाहिए, खुला पैड कभी भी नहीं फेंकना चाहिए। इससे नई-नई बीमारियां जन्म लेती हैं।
कुछ बातें जिन्हें ध्यान रखने की है ज़रूरत
- गर्म पानी से नहाना चाहिए।
- ठंडे खाद्य पदार्थों के सेवन से परहेज़ करना चाहिए।
- चीनी एवं नमक भी कम मात्रा में लेनी चाहिए।
- ऐसे समय में मदिरा के सेवन से परहेज़ करना चाहिए।
- हर दो से तीन घंटे में कुछ हल्का-फुल्का खाते रहना चाहिए।
- साबुत अनाज, फल और हरी सब्ज़ियों के सेवन को प्राथमिक।ता देनी चाहिए, ताकि अधिक कमज़ोरी महसूस ना हो।
अक्सर गाँवों और कस्बों में खाने-पीने के पर्याप्त साधन नहीं होते हैं। इसलिए महिलाओं के लिए आयरन एवं कैल्शियम की दवाएं एवं टॉनिक का वितरण कराना चाहिए, जिससे उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत हो और स्वास्थ्य भी ठीक रहे।
सरकार को भी कुछ अहम कदम उठाने चाहिए
संक्रमण से बचाव के लिए इंसीलेटर नामक मशीन उपलब्ध कराना चाहिए। इस मशीन में पैड डालने के बाद पैड जलकर राख हो जाता है, जिससे बीमारियों की रोकथाम में सहायता मिलती है।
शहरों में जहां बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल हैं, वहां सैनिटरी पैड की मशीन इंस्टॉल करानी चाहिए जिससे महिलाओं को ज़रूरत पड़ने पर पैड उपलब्ध कराया जा सके। इन छोटे-छोटे कदमों से महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।
महिलाओं को इस बात से अवगत कराना बहुत ज़रूरी है कि एक छोटे से खर्च से वे अपने जीवन को सुरक्षित कर सकती हैं। स्वस्थ रहने के लिए उनको इस बात को गंभीरता से लेना पड़ेगा। माहवारी के दौरान की गई लापरवाही ही कई बार महिलाओं में बांझपन एवं गंभीर रोगों का कारण बनता है। हर महिला को माहवारी के लिए जागरुक करना आवश्यक है।
अधिकांश गाँव की महिलाओं को जानकारी नहीं होती है और वे शर्म की वजह से इस विषय पर बात करने में भी झिझकती हैं। इस झिझक और डर को ही खत्म करने की आवश्यकता है।
जब खुलकर बात होगी तो समस्या का समाधान निकलेगा, जब समाधान निकलेगा तो इसके ज़रिये लाखों महिलाओं को स्वस्थ एवं पोषित जीवन मिलेगा। यह बात मत भूलिए कि एक पैड आपके जीवन के सारे पेन को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकता है।
खुद जागरुक रहिए और अपने आस-पास के लोगों को भी जागरुक रखिए। कुछ महिलाएं आज भी इसे अपवित्रता की संज्ञा मानती हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि माहवारी उनके जीवन को एक नई दिशा देती है, जिससे वे अपने जीवन में नए-नए मुकाम हासिल करती हैं। माहवारी के महत्व को समझिए। इसे नज़रअंदाज़ मत करिए।
नोट: आंचल शुक्ला Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।