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“हैदराबाद के बड़े अस्पतालों में कोविड-19 टेस्ट कराने गया मगर डॉक्टर ने टरका दिया”

अस्पताल में मरीज़

अस्पताल में मरीज़

देश में कोरोना वायरस से 7 लाेगाें की मौत हाे चुकी है। इस बीच एक्टिव पॉज़िटिव मामलों की संख्या 433 हो गई है। कुल संक्रमित लोगों में 393 भारतीय नागरिक और 40 विदेशी नागरिक शामिल हैं। 24 लोगों को इलाज के बाद घर भेज दिया गया है।

देश के ज़्यादातर राज्यों में स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। महाराष्ट्र, राजस्थान और दिल्ली सहित कई राज्यों में सिनेमाघरों को बंद कर दिया गया है। इस वायरस से पूरी दुनिया में 15307 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए संस्कृति मंत्रालय ने ताजमहल, आगरा किला, फतेहपुर सीकरी समेत देशभर के स्मारक, पुरातत्व स्थलों, संग्रहालयों को 31 मार्च तक बंद करने का आदेश जारी किया है। आइए जानते हैं कुछ असलियत।

सोशल डिस्टेंसिंग, जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन जैसे कदम पर्याप्त हैं?

भारत में कोरोना वायरस से निबटने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा कुछ ज़रूरी कदम उठाए गए हैं। जैसे सोशल डिस्टेंसिंग, जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन लेकिन क्या ये कदम पर्याप्त हैं?

इसका जबाब ना में है। हम ऐसा इस बिनाह पर कह रहे हैं क्योंकि दो ऐसी ज़रूरी चीज़ें हैं जिनका आम-ओ-खास सभी लोग प्रयोग करते हैं। पहला बैंक एटीम और दूसरा अस्पताल, जिनमें सरकारी और प्राइवेट दोनों ही अस्पताल शामिल हैं।

एटीएम की सैनिटाइज़िंग पर ध्यान देने की ज़रूरत

पहले एटीएम पर आते हैं। लोग अपनी ज़रूरत के पैसे यानी कैश निकालने जाते ही जाते हैं फिर भले ही हमारे पास डेबिट या क्रेडिट कार्ड्स, गूगल पे, फोन पे, भीम और पेटीएम जैसी सुविधाएं मौजूद क्यों ना हों, क्योंकि कुछ जगहों पर कैश की ज़रूरत पड़ती ही पड़ती है।

जैसे सब्ज़ी की दुकानों पर और अस्पतालों के कैश काउंटर पर कैश देना ही पड़ता है। ऐसी ज़्यादातर जगहों पर डेबिट या क्रेडिट कार्ड्स और ऑनलाइन पेमेंट मोड की सुविधा मौजूद नहीं होती है। ऐसे में लोगों को एटीएम के चक्कर लगाने पड़ते हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं है।

लेकिन बात है कोरोना वायरस से फैलने वाली कोविड19 बीमारी से सुरक्षा की। एटीएम में कैश निकालने तमाम लोग जाते हैं और कार्ड इंसर्ट करने वाली जगह और पिन डालने वाले पैनल को लोग एक के बाद एक लगातार छूते हैं।

उस वक़्त एटीएम में हाथ सैनिटाइज़ करने के लिए कोई सैनिटाइजर मौजूद नहीं होता है। तब यह कहा जा सकता है कि ऐसे में एटीएम कोरोना वायरस के वाहक हो सकते हैं और इसकी प्रबल संभावना भी है।

अस्पताल भी सैनिटाइज़र की व्यवस्था से अछूते

अपनी बारी के इंतज़ार में बैठे मरीज़। फोटो साभार- हिमांशु प्रियदर्शी

अब आते हैं अस्पतालों की हालत पर। अस्पतालों में हैंड सैनिटाइज़ करने की कोई सुविधा नहीं है। चाहे वो अस्पताल सरकारी हो या प्राइवेट। यह बात हम हवा में तीर चलकर नहीं कह रहे हैं, बल्कि अपनी आंखों देखी कह रहे हैं।

दरअसल. मुझे पिछले दिनों ज़ुखाम और खांसी हो गया। इस दौरान मैं डॉक्टर को दिखाने तेलंगाना के रंगारेड्डी ज़िले के वनस्थलीपुरम के एरिया हॉस्पिटल में गया जहां हर तरह के मरीज़ आ रहे थे। ऐसे में मरीज जहां भी बैठेगा तो सीट तो छुएगा ही। उसके बाद कोई दूसरा मरीज़ बैठेगा तो वह भी उसी पहले से छुई हुई सीट को छुएगा।

जब मैं हॉस्पिटल पहुंचा तो मरीज़ ऐसे ही आ रहे थे और खांसते-छींकते उनके हाथ इधर-उधर लग रहे थे लेकिन वहां सीटों को सैनिटाइज़ करने की कोई व्यवस्था नहीं थी। कई बार लाइन में लगे-लगे और आगे-पीछे होने के चक्कर मरीज़ों के हाथ आपस में टकरा भी जाते थे।

ऐसे में वहां आम लोगों यानी मरीज़ों के लिए हाथ साफ करने (सैनिटाइज़र) की कोई व्यवस्था होनी चाहिए थी। इन सबके बीच हॉस्पिटल में जहां-तहां गंदगी अलग ही कहानी कह रही थी।

इसके अगले दिन मैं आफिस गया तो वहां मुझे मास्क लगाए खांसते देखकर छुट्टी दे दी गई। मैं फौरन सुबह की शिफ्ट खत्म करके आने वालों के साथ वापस आ गया। आते हुए बस में मैनें सोचा कि कल चेकअप और कोविड-19 का टेस्ट करा ही लूं।

कोविड-19 के टेस्ट का कोई इंतज़ाम नहीं था

फोटो साभार- हिमांशु प्रियदर्शी

इसके लिए मैं शनिवार को वनस्थलीपुरम के EVYA नामक प्राइवेट और मल्टी स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल गया। अस्पताल में घुसते ही देखा मरीज़ों की भीड़ ज़्यादातर मास्क लगाए अपनी बारी आने के इंतज़ार में बैठी है या लाइनों में खड़ी है।

मैंने देखा कि किस तरह से दवा लेने की हड़बड़ी में एक-दूसरे से लोग टकराए जा रहे थे। उनके हाथों से हाथ भिड़ रहे थे और बांहें घिसट रही थीं। इस हड़बड़ी दौरान मेरा हाथ भी कइयों से छू गया।

पूरे दृश्य से हटकर एकदम मेरी चेतना जागी कि अरे इसी से तो बचना है। अब मैं लगा सैनिटाइज़र ढूंढने लेकिन वो होगा तब ना मिलेगा। खैर, भरपूर कोशिश की कि अब अपने हाथ अपने पूरे मुखमण्डल से दूर रखूं। इस अभियान में शायद कामयाब रहा और आगे की ओर कूच कर गया।

मैंने रिसेप्शन पर अपनी तकलीफ के बारे में बताकर आगे कहा कि सर मुझे कोविड19 का टेस्ट कराना है। यह सुनकर रिसेप्शन पर मौजूद लोगों ने एक-दूसरे की ओर ताका और कहा कि इसका टेस्ट यहां नहीं होता है। फिर मैंने पूछा तो फिर कहां से करवाऊं?

इस पर उन्होंने कहा कि यशोदा हॉस्पिटल में आप इसका टेस्ट करवा सकते हैं। मैंने तुरन्त गूगल मैप पर हॉस्पिटल को खोजा और मलकपेट के यशोदा हॉस्पिटल में पहुंच गया। यहां भी वही हालत ज़बरदस्त भीड़ और पहले दवा लेने की होड़ अलग। कुल मिलाकर उसे हड़बड़ी या भगदड़ की स्थिति कह सकते हैं।

अंदर पहुंचकर पहले रिसेप्शन फिर एमरजेंसी के डॉक्टर वर्मा से पूछा कि कोविड-19 का टेस्ट करवाना है। यह सुनकर यहां भी वही स्थिति। सब एक-दूसरे को ताकने लगे। उसके बाद डॉ. वर्मा ने कहा, “जी नहीं।”

उनके बगल वाले अलग कहने लगे कि वह तो यहां नहीं होता है। मैं फिर चक्कर में पड़ गया कि टेस्ट यहां नहीं होता है, वहां नहीं होता है तो फिर होता कहां है? फिर मैंने डॉ. से पूछ ही लिया कि सर फिर मैं इस टेस्ट को कहां से करवा सकता हूं? इस पर उन्होंने कहा कि गाँधी हॉस्पिटल से।

मैंनें सोचा कि गाँधी हॉस्पिटल कोई बड़ा प्राइवेट हॉस्पिटल होगा। गूगल पर खोजा तो वहां से 10 किलोमीटर और दूर था। मैंने सोचा जब यहां तक आ गया हूं तो वहां भी हो ही आते हैं। बस लेकर चल पड़ा गाँधी हॉस्पिटल की ओर।

पहुंचने पर देखा कि यह काफी बड़ा हॉस्पिटल है। गाँधी हॉस्पिटल तो है ही बगल में गाँधी मेडिकल कॉलेज भी है। यानी पढ़ने और मेडिकल प्रैक्टिस करने का पूरा इंतज़ाम। अंदर घुसने पर पता चला कि यह सरकारी हॉस्पिटल है लेकिन इसकी कद्र ज़्यादा है। मैं अंदर ही अंदर खुश हुआ कि जिस मकसद से आए वह यहां तो पूरा हो ही जाएगा।

जब मेरा नंबर आया

प्रतीकात्मक तस्वीव। फोटो साभार- सोशल मीडिया

खैर, मेरा नंबर आया। डॉक्टर को अपनी समस्या बताई सो उन्होंने पर्चे पर दवाई लिखकर दे दी। मैंने कहा कि डॉक्टर साहब मुझे कोविड-19 का टेस्ट करवाना है। इस पर उन्होंने कहा कि इतनी समस्या के लिए टेस्ट की कोई ज़रूरत नहीं है।

टेस्ट तो उन मरीज़ों का किया जाता है जिन्हें सांस लेने में दिक्कत हो। बुखार बहुत तेज़ हो और बीमारी से इतने लबरेज़ हों कि चल ही ना सकें।इस पर मैंने कहा कि सर मैं कई अस्पतालों के चक्कर लगाकर यहां आया हूं ताकि टेस्ट करवाकर निश्चिंत हो जाऊं।

इस पर उन्होंने कहा कि हमारे पास इतने संसाधन यानी टेस्ट किट नहीं हैं कि हर मरीज का टेस्ट किया जा सके। आप यह दवा खाइए फिर भी दिक्कत हो तो एक सप्ताह बाद दोबारा आइए।

इसके बाद मैंने उनसे कुछ और नहीं पूछा क्योंकि मेरे पीछे बाकी मरीज़ अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। फिर मैंने पर्चा उठाया, मेडिकल स्टोर से दवा खरीदी और बस पकड़कर 20 किलोमीटर का सफर तय करके वापस कमरे पर आ गया। इन सभी अस्पतालों में मरीजों के लिए सैनिटाइजर की कोई व्यवस्था नहीं थी।

चार अस्पतालों की यात्रा ने लचर स्वास्थ्य व्यवस्था से मुझे वाकिफ कराया

भारत इसलिए बिल्कुल खुश ना हो कि हमारे यहां कोरोना वायरस से प्रभावित मरीज़ों के केस कम हैं, क्योंकि मेरी चार अस्पतालों की यात्रा के दौरान पता चला कि अस्पतालों में कोविड-19 के टेस्ट करने की समुचित व्यवस्था नहीं है।

टेस्टिंग किट नहीं हैं और जहां यह सुविधा है वहां सभी मरीज़ों का टेस्ट नहीं किया जा रहा है। मरीज़ की क्रिटिकल कंडीशन होने पर ही टेस्ट किया जा रहा है। इसलिए हम इस नतीजे पर भी नहीं पहुंच सकते कि देश के बाकी अस्पतालों में कोविड-19 के टेस्ट किए जा रहे होंगे।

हमारे देश में कोविड-19 बीमारी से जूझने वाले मरीज़ों की तादाद कम है या यूं कहें कि हमारे सामने सही आंकड़ा ही नहीं है। शायद अलग-अलग अस्पतालों में मरीज़ों को इसी तरह से टरका दिया जाता होगा।

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