महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध समाज को हमेशा से ही बेचैन करते आए हैं। इन अपराधों के पीछे पितृसत्तात्मक सोच ही बड़ी वजह है। इस सोच व आचरण के लोग महिलाओं के साथ दोयम दर्जे़ का बर्ताव करते हैं।
सवाल उठता है कि यह सोच आती कहां से है? तो सुनिए ऐसी सोंच की नींव घरों की चारदीवारी में ही पड़ती है। सोचिए ऐसे माहौल का बच्चों पर क्या असर पड़ता होगा? जब उनकी आखों के सामने घर की चारदीवारी में घर की धुरी यानी घर की महिला के साथ ऐसा होता है।
अत: महिलाओं पर ज़ुल्म करने वाला हर इंसान अपने घर से ही अपराध का यह सबक सीखते हैं। इन तथ्यों के लिए किसी सर्वेक्षण की ज़रूरत नहीं है।
बहरहाल, समय हो तो हालिया रिलीज़ ‘थप्पड़’ भी जाकर देख आएं, महिलाओं को लेकर घिनौने अपराध की तस्वीर साफ हो जाएगी।
अनुभव सिंहा के अनुभव ने एक के बाद एक ज्वलंत मुद्दों को पर्दे पर उतारा
अनुभव सिन्हा की हालिया रिलीज़ फिल्में लगातार समाज के ज्लंत मुद्दों को उठा रही हैं। हमें “मुल्क” एवं “आर्टिकल 15” जैसी फिल्में नहीं भूलनी चाहिए। अनुभव ने जवलंत मुद्दों पर समाज के समक्ष अपनी फिल्मों द्वारा आईना रखा।
“थप्पड़” इसी की नवीनतम कड़ी है। पति द्वारा पत्नी को थप्पड़ मारने और पत्नी की उस पर प्रतिक्रिया फिल्म की मुख्य कथा है।
पितृसत्ता की जटिल परतों को खोलकर रखती “थप्पड़”
सिर्फ यही नहीं, यहां किरदार और कहानियां पितृसत्ता के जटिल परतों को भी दिखा रहे हैं। पितृसत्ता में फंसे पारंपरिक समाज में लिंग के आधार पर भेदभाव होता रहा है। समाज की ऐसी संरचना में पुरुषों को श्रेष्ठ रखा जाता है।
अनुभव सिन्हा की “थप्पड़” ने इसी पुरुष विशेषाधिकार को चुनौती दी है। फिल्म घरेलू हिंसा जैसी सामाजिक कुरीति पर गहनता से चर्चा करती है। घरेलू हिंसा के आयामों को बखूबी समझाया गया है। सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है। इस लिहाज़ से थप्पड़ एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है।
थप्पड़ की कहानी
कहानी अमृता (तापसी पन्नू) और विक्रम (पावेल गुलाटी) की है, जो एक आदर्श जोड़े लगते हैं। विक्रम महत्वाकांक्षी है। उसके बहुत बड़े-बड़े सपने हैं और अमृता का सपना है कि विक्रम के सारे सपने पूरे हो जाएं। पति और उसका घर ही उसकी दुनिया है। वह एक आदर्श हाउसवाइफ बनना चाहती है।
वह अपनी ज़िंदगी से बहुत खुश है, क्योंकि उसका पति खुश है। विक्रम का प्रोमोशन होने वाला है और वह विदेश जा रहा है। इस खुशी में वह पार्टी रखता है। पार्टी में ऐसा कुछ होता है कि सभी के सामने विक्रम अमृता को थप्पड़ जड़ देता है।
दरअसल, वह उसे लड़ने से रोकने आई थी। इस घटनाक्रम से अमृता अंदर तक टूट जाती है। वह समझ जाती है कि थप्पड़ सिर्फ उसके गाल पर नहीं बल्कि उसके आत्मसम्मान पर पड़ा है।
लड़कियों को अपने साथ होने वाले बर्ताव को सहने की शिक्षा परिवारों में ही मिलती है। घर के माहौल को देखकर उनके ऊपर शुरू से घर की ज़िम्मेदारी आ जाती है। उनके सपनों व काबिलियत को किचन तक समेट दिया जाता है।
अभिनय और संवाद
फिल्म अभिनय के मामले में सशक्त है। सभी कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। अमृता का किरदार लंबे समय तक याद रखा जाएगा। कथा के संवाद महत्वपूर्ण किरदार की तरह उभर कर आते हैं।
तापसी के कैरियर मे “अमृता” का किरदार है। मुल्क के बाद अनुभव सिन्हा के साथ उनका यह दूसरा प्रोजेक्ट है।
तापसी के किरदार में स्त्री मन की कई परतों को देखा जा सकता है। नौकरानी का किरदार निभा रही गीतिका और वकील बनी माया का अभिनय अंदर तक छू जाता है। संवेदनशील पिता के किरदार में कुमुद मिश्रा असर छोड़ते हैं। थप्पड़ महिलाओं को आत्मसम्मान के साथ जीने का सबक देता है।
फिल्म “थप्पड़” महिलाओं को समर्पित
यह फिल्म महिलाओं से लेकर उनके सम्मान के अधिकारों को समर्पित है। महिला, जो परिवार के लिए सब कुछ दांव पर लगा देती है लेकिन उसे अपना हक कभी नहीं मिलता है।
फिल्म सवाल करती है क्यों अपनी खुशियों को मारकर परिवार का ज़िम्मा उठाने वाली महिलाओं को कभी सम्मान नहीं मिलता। फिल्म ने ऐसा विषय उठाया है, जो समाज में विमर्श जागृत करता है। फिल्म में थप्पड़ एक स्त्री के चेहरे पर मारा गया है लेकिन में वह समाज की पॉपुलर वैचारिकता पर थप्पड़ सा लगता है।