एक कहावत है, “हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा।” यानी कि जो इंसान हिम्मत करता है, उसका साथ भगवान भी देता है, जिसे बखूबी कर्नाटक की 107 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला ने चरितार्थ कर दिखाया है।
ज्ञात हो कि साल 2019 में पद्मश्री अवॉर्ड की सूची में एक बुज़ुर्ग महिला का नाम शामिल था। जब वह महिला राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास पद्मश्री लेने पहुंची, तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन के सभी प्रोटोकॉल को तोड़कर राष्ट्रपति के माथा छूकर आशीर्वाद दिया।
तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह समेत अनेकों राजनेता मुस्कुराने लगे और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। जिसके बाद वह वीडियो वायरल हो गया। तब सभी लोगों का ध्यान उस बुज़ुर्ग महिला की ओर गया, जिसे लोग ‘वृक्ष माता’ के नाम से जानते हैं।
उनका पूरा नाम साल्लुमारदा थिम्मक्का है। उनके नाम में लगा हुआ साल्लुमारदा उपनाम में मिला हुआ है, जो कन्नड़ भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब ‘पेड़ों की कतार’ से होता है।
माँ बनने की उम्मीद में वृक्षों पर ममता न्यौछावर करने लगीं
थिम्मक्का भी अन्य महिलाओं की तरह एक घरेलू महिला थीं और पति के साथ साधारण जीवन व्यतीत कर रही थी। उम्र के चौथे दशक में पहुंचने के बाद उन्हें एक भी संतान नहीं हुई, जिसे लेकर वो काफी निराश रहने लगीं। वो खुदकुशी करने के बारे में भी सोचने लगी थीं। तभी उनके पति ने थिम्मक्का को वृक्ष लगाने के लिए प्रेरित किया, जिसके बाद वो वृक्ष लगाने लगीं।
वृक्ष को ही बच्चों की तरह पालन-पोषण करती थीं। यह सिलसिला वर्षों तक जारी रहा। प्रकृति के प्रति असीम प्रेम-भाव के कारण लोगों के बीच उनकी छवि समाज सेविका के तौर पर स्थापित हो गई।
बदले में उनके वृक्षों ने वातावरण को शुद्ध ऑक्सीजन और फल देना आरम्भ किया। तब वह एक पर्यावरणविद के रूप में उभरीं, जिससे कर्नाटक के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी उनके द्वारा किए गए कामों के कारण उनके नाम को लोग जानने लगे।
क्यों हैं महिलाओं की प्रेरणा स्रोत “वृक्ष माता”
थिम्मक्का वृक्ष को अपनी संतान की तरह देखभाल करती हैं, जिसके लिए हर कदम पर उनके पति थिम्मक्का उनको सहयोग करते थे। तभी सन 1991 में उनके पति का देहांत हो गया, जिसके बाद वो अकेले ही प्रकृति में अपना योगदान देती रही हैं।
वह मौसम के अनुकूल वृक्ष लगाने के साथ-साथ देश और दुनिया को पर्यावरण रक्षा का संदेश भी देती रही हैं। वह अब तक कर्नाटक के रामनगर ज़िले में हुलुकल और कुडूर के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों तरफ करीब 4 किलोमीटर की दूरी तक 8000 वृक्ष लगा चुकी हैं, जिसमें केवल बरगद के 400 वृक्ष हैं, जो अब विशाल वृक्ष बन चुके हैं। जिसके बाद से वो “वृक्ष माता” का नाम से प्रसिद्ध हो गईं।
सम्मान में मिले आवॉर्ड्स
“वृक्ष माता” को एक के बाद एक अवॉर्ड मिलते रहे लेकिन उनकी हस्ती के आगे सब बौने ही साबित होते रहे हैं। उन्हें मिलने वाले अवॉर्ड्स पर एक नज़र-
- 1995- नैशनल सिटिज़न्स अवॉर्ड
- 1997- इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड और वीरचक्र प्रशस्ति अवॉर्ड।
- 2006- कल्पवल्ली अवॉर्ड।
- 2010- गॉडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवॉर्ड।
- 2019- पद्मश्री अवॉर्ड।
स्कूल की किताबों में थिम्मक्का
स्कूली किताबों में पहुंच चुकीं थिमक्का को अब देश के भविष्य पढ़ेंगे और उन से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ेंगे। 90 के दशक में थिम्मक्का को उनके काम के लिए लोगों के बीच पहचान मिली। कर्नाटक के राज्य स्तरीय किताबों में उनकी प्रेरणादायक कहानी भी छप चुकी है, जिससे पढ़कर बच्चे पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं।
साल 2019 में बीबीसी ने ‘100 Most Influential Women 2019’ की सूची जारी की, जिसमें थिम्मक्का को भी स्थान मिला। वह इस सूची में सबसे बुज़ुर्ग महिला थीं।
थिम्मक्का कहती हैं,
दिल खुशी से भर जाता है जब मैं इन पेड़ों को देखती हूं, जिन्हें सात दशक पहले हमने लगाया था। मेरे पेड़ रूपी बच्चे पर्यावरण को संरक्षित करने में मेरी मदद कर रहे हैं। एक माँ को और क्या चाहिए।