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“केजरीवाल जी, दिल्ली दंगों में सड़कों पर निकलकर आपने शांति का पैगाम क्यों नहीं दिया?”

अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल

दिल्ली में जो भी हो रहा है, वह क्यों हो रहा है, यह विचारणीय है। आप चाहे किसी भी विचारधारा या पार्टी से संबंध रखते हों परन्तु यह आपके लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि हम दुनियां के सामने अपने देश की राजधानी की कैसी छवि प्रस्तुत कर रहे हैं?

जहां एक ओर दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत में वंदन और नृत्य समारोह का आयोजन हुआ, वहीं दूसरी तरफ राजधानी दिल्ली में दंगों की आग भड़क उठी। सड़को पर जगह-जगह खून के धब्बे हैं, हवाओ में आगजनी की वजह से उठता धुंआ है, चारो ओर त्राहिमाम है।

दिल्ली में हुई अराजकता के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

दिल्ली के मुख्यमंत्री फोटो साभार- अरविंद केजरीवाल ट्विटर अकाउंट

इसमें किसी भी एक पक्ष को निर्दोष नहीं बताया जा सकता है। यदि हम गौर करें तो पाएंगे कि इस उपद्रव और आगजनी में दोषी हर वर्ग है। गलती इसमें प्रदर्शनकारियों की भी है। उसके उपरांत उन प्रदर्शनकारियों के विरोध में आए लोगों की भी गलती है।

वहीं, दूसरी ओर केंद्र सरकार भी सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने में पूरी तरह असफल रही है। जिस तरह वीडियो सोशल मीडिया पर दिखाई दे रहे हैं, उस आधार पर दिल्ली पुलिस की कुछ गतिविधियां संदिग्ध लग रही हैं।

आखिर क्यों मौन हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, जो कि सूबे के मुखिया हैं, उन्होंने लोगों के मध्य जाकर किसी भी तरह की शांति की अपील नहीं की है। जबकि संज्ञान में आया है कि उनकी आम आदमी पार्टी के पार्षद के घर की छत से पेट्रोल बम बरामद किए गए हैं।

प्रदर्शनकारियों को CAA और NPR से क्या दिक्कत है, यह समझ से परे है। NRC का अभी तक कोई ड्राफ्ट बना नही है। असम में जो NRC लागू हुई है, वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के क्रम में है।

इस विषय पर जानकारी के अभाव में जो अराजकता फैलाई जा रही है, वह किसी दृष्टिकोण से देश हित में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही असंवैधानिक कह देना बेहद हास्यास्पद है।

भाजपा सरकार के घोषणपत्र में सम्मिलित रहे हैं CAA , NPR और NRC के मुद्दे

अमित शाह। फोटो साभार- सोशल मीडिया

एक विषय सोचनीय है कि उक्त मुद्दे भाजपा के घोषणापत्र में प्राथमिकता से थे, जिसके लिए लोगों ने भाजपा को इन मुद्दों के आधार पर वोट भी दिया और उसे सरकार के रूप में चुना भी।

समझ के परे है कि जिन मुद्दों पर लोगों ने भाजपा को मत दिया और वह सत्ता में आई, पुनः उन्हीं मुद्दों के लिए सरकार को CAA के समर्थन में मिस्ड कॉल कैंपेन निकालने की आवश्यकता क्यों पड़ गई? मिस्ड कॉल कैंपेन से अधिक आवश्यकता थी कि केंद्र सरकार सही तरह से जागरूकता अभियान चलाती और लोगों को CAA के संदर्भ में विस्तृत जानकारी प्रदान करती।

दिल्ली में हुई हिंसा में मृत लोग हमें मज़हबी क्यों लगते हैं?

दिल्ली में इतनी भयंकर हिंसा हुई और उससे भी दुखद बात यह है कि सब इसको अपने अपने नज़रिए से इसका खंडन कर रहे हैं। एक पक्ष को सिर्फ मुसलमानों की हत्या दिख रही है और एक पक्ष को सिर्फ हिंदुओं की। किस पक्ष ने पहले हमला किया और किसने जवाबी हमला किया, यह अभी तक ज्ञात नहीं हुआ है।

मगर यह अवश्य है कि यह सब अकस्मात नहीं हुआ है। इसके लिए अवश्य एक विस्तृत योजना बनाई गई होगी। सीएए के विरोध और समर्थन में हम इस क़दर अराजक हो गए है कि सड़कें युद्ध क्षेत्र में तब्दील हो गयी । गृह मंत्रालय सख़्ती से निपट नही पा रही है या ज्यादा सख़्ती करने से उसे हत्यारा होने का खिताब दे दिया जाता है ।

दिल्ली में हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस की भूमिका

दिल्ली हिंसा। फोटो साभार- सोशल मीडिया

इन सभी में से एक सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली तस्वीर सामने आती है। वो यह कि दिल्ली पुलिस पत्थरबाज़ों के साथ उनको इंस्ट्रक्शन देती दिख रही है। आखिर यह क्या था व क्यों था? यह बेहतर रूप से दिल्ली पुलिस ही बता सकती है। अभी तक इस विषय पर दिल्ली पुलिस की ओर से कोई बयान जारी नहीं किया गया है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मानना है कि जनता को उन पर विश्वास है और जनता उनसे खुश है। अतः उन्हें पुनः दिल्ली की गद्दी पर बिठाया है। अरविंद केजरीवाल इतनी सामर्थ्य नहीं जुटा पा रहे हैं कि वे स्वयं जनता के बीच जा सकें। उनकी पार्टी के पार्षद के आवास पर पेट्रोल बम का क्या काम था?

यह प्रश्न पूछना भी ज़रूरी है। यह सवाल भी उठता है कि उनके घर के नीचे व छत पर जो भीड़ थी, वह कौन थी? ऊपर से जो बम मारे जा रहे थे, उनके बारे में कहा जाता है कि वो आत्मरक्षा में उठाया गया कदम था। सोचनीय विषय है कि पार्षद को यह पूर्व से ही ज्ञात था कि हिंसा होगी। अतः उनके द्वारा विस्तृत तैयारी कर ली गई थी। यह जांच का विषय है।

समस्त राजनीतिक पार्टी स्वयं को “पॉलिटिकली करेक्ट” दिखाने में लगी हुई है लेकिन यह समय “पॉलिटिकली करेक्ट” नहीं, बल्कि “प्रैक्टिकली करेक्ट” होने का है। आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में रहते हैं और अगर आपको इसे बचाना है, तो एक बार निष्पक्ष होकर सोचना होगा। आपको सवाल करने होंगे। यही आपकी सबसे बड़ी ताकत है।

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