बीते दिनों जेएनयू प्रशासन द्वारा एक निर्णय लेते हुए सुबनसिर छात्रावास जाने वाली सड़क का नाम बदल दिया गया। इसका नाम वीडी सावरकर के नाम पर रख दिया गया।
वीडी सावरकर नाम तो आपने सुना ही होगा जो अक्सर ही चर्चा में रहता हैं। कथित राष्ट्रवादी इन्हें देशभक्त मानता हैं, तो वहीं कथित लिबरल्स इन्हें द्विराष्ट्र सिद्धांतवादी।
ठीक नहीं है सावरकर के विरोध का यह तरीका
खैर, जो भी हो लेकिन यह तो सच है कि वीडी सावरकर ने देश की आज़ादी के लिए काला पानी की सज़ा काटी है। तो अब जब सरकार उन्हें उनका सम्मान दे रही है फिर दिक्कत क्या है?
समस्या यह है कि कथित लिबरल्स यह मानने को तैयार ही नहीं होते हैं कि वीडी सावरकर एक सच्चे देशभक्त थे। जिनकी तारीफ खुद महात्मा गाँधी कई बार कर चुके हैं। जिसका उल्लेख कई पुस्तकों में मिलता है। हां, कुछ सियासी मुद्दे हैं जिन पर दोनों की राय अलग थी लेकिन दोनों का लक्ष्य एक ही था आज़ादी।
वही, मोहम्मद अली जिन्ना की भी यह तमन्ना थी लेकिन आगे चलकर वह अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग करने लगे। परिणाम स्वरुप सन् 1947 में विभाजन नाम की त्रासदी हुई, जिसमें असंख्य बेकसूर लोगों की जानें गई और एक नए राष्ट्र पाकिस्तान का उदय हुआ जो धर्म के आधार पर था।
फिर उत्पन्न हुई लोगों के मन में भ्रांतियां
विवादों का साया यूं तो जेएनयू के साथ हमेशा रहता है। फिर चाहे वह किस ऑफ लव प्रोटेस्ट हो या कथित नारेबाज़ी की बात हो लेकिन इस बार मुद्दा कुछ ज़्यादा ही गहराता जा रहा है।
दरअसल, कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा वीडी सावरकर मार्ग के बोर्ड पर कालिख पोत दिया गया तथा मोहम्मद अली जिन्ना मार्ग का नया पोस्टर चिपका दिया गया है। अगर ऐसा होता है तो यह जेएनयू की छवि पर दाग होगा।
लोगों के मन में जेएनयू के प्रति उत्पन्न हुई भ्रांतियां दूर होने के बजाय और बढ़ जाएंगी। इस बात को छात्रों के एक खास वर्ग को समझना चाहिए।