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“कोरोना से संबंधित जांच की आलोचना करने पर मुझे देशद्रोही बताया गया”

फोटो साभार- सोशल मीडिया

फोटो साभार- सोशल मीडिया

कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों की संख्या देश में 100 से अधिक हो गई है। जितना तेज़ी से यह वायरस लोगों में फैल रहा है, उससे कहीं तेज़ी से इसके संबंधित मैसेजेज़ और अफवाह सोशल मीडिया के ज़रिये फैल रही है।

2 दिनों से ऐसे ही एक स्कूली दोस्तों के व्हाट्सएप ग्रुप में लगातार कोरोना वायरस से बचने के उपाय भेजे जा रहे थे। इसी बीच मैंने भी कोरोना से रिलेटेड एक न्यूज़ आर्टिकल शेयर कर दिया जिसमें लिखा था कि कोरोना के मामले भारत में इसलिए भी कम हैं क्योंकि यहां इससे संबंधित जांच बहुत सीमित हैं।

एक प्रकार से यह सच ही है क्योंकि लगभग 3 महीने पहले इसके फैलने का पता लगने के बाद से अब तक केवल बड़े शहरों के चुनिंदा अस्पतालों में ही इसके लिए स्पेशल वॉर्ड बनाए गए हैं।

जैसे ही मैंने वह न्यूज़ आर्टिकल उन्हें भेजा, तानों और गुस्से की बारिश सी हो गई। गड़गड़ाहट इतनी थी कि अच्छे से अच्छा भी सहम जाए। जहां एक दोस्त ने मुझे “देशद्रोही” बताया, वहीं मेरी एक मित्र ने मुझे देश छोड़कर किसी और देश में जाने की बात भी कर दी।

क्यों दोस्तों ने मुझे देशद्रोही कहा

उनको दिक्कत यह थी कि क्यों मैं हर चीज़ में कमियां ढूंढ लेता हूं। उनको मैं कहना चाहूंगा कि बतौर नागरिक मुझे ऐसा लगता है कि मुझे ये कमियां ढूंढनी ही चाहिए और रही बात गुणगान करने की, तो उसके लिए नोएडा में मीडिया का पूरा गिरोह ही बैठा है।

मैं जानता था कि यह उनका दबा हुआ गुस्सा था जो आज मुझ पर फूट पड़ा और यह गुस्सा मेरे विचारों के कारण था जिसे फिलहाल मैं किसी के दबाव में बदलना नहीं चाहता हूं।

आपको बताना चाहूंगा कि मुझे देशद्रोही और देश छोड़ने की बात बोलने वाले अधिकतर साथी मुझे 18 से 20 सालों से जानते हैं। उस समय मैं चौथी-पांचवी क्लास में हुआ करता था। तब से हम लोग साथ में थे।

भारत पर कोरोना का क्या होगा असर

हमारी सरकारें भी सीएए, एनआरसी और एनपीआर को लागू करने में इतनी व्यस्त दिखी कि कोरोना के बारे में पहले से लोगों को ना जागरुक किया गया और ना ही कहीं पर कोई कैंप लगाए गए।

इटली जैसे विकसित देश में जब इस वायरस से इतनी बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हो गए हैं और वहां की सरकार भी इसके संक्रमण को रोकने में विफल सी लग रही है, तो भारत में आने वाले समय में इसका प्रभाव क्या रहेगा कहना मुश्किल है।

ऐसा हो सकता है कि भारत की जलवायु और तापमान इसके संक्रमण को रोकने में कुछ असरदार रहे मगर केवल इसके भरोसे ही बैठ जाना ठीक नहीं है। हमने देखा ही था हाल ही की बिहार की घटना जिसमें चमकी बुखार से 100 से भी ज़्यादा छोटे बच्चे मर गए।

महामारी झेलने के इंतज़ाम बेहद कमज़ोर

खैर, बच्चे गरीबों के थे। प्रधानमंत्री जी ने भी इसके प्रति संवेदना प्रकट करना ज़रूरी नहीं समझा होगा। जबकि शिखर धवन की उंगली की चोट उस वक्त ज़्यादा महत्वपूर्ण सी लग रही थी।

देश की स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में हम वैसे भी अच्छे से वाकिफ हैं। महामारी को झेलने के क्या इंतज़ाम हैं, इस पर हम क्या ही टिप्पणी कर सकते हैं।

खैर, आज मैं उनके लिए देशद्रोही हो गया हूं लेकिन विश्वास करिए एक बहुत ही डराने व हृदय छलनी करने वाली फीलिंग है। मैं बस उनसे यही कहूंगा, “दोस्तों, देश वह ही नहीं है जो आप समझते हैं, देश वह भी है जो मैं और मेरे जैसे लोग समझते हैं।” स्वस्थ रहिए, सतर्क रहिए और सचेत रहिए।

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