मैंने देखा है कि बचपन से ही लगभग हर किसी के ज़हन में यह ख्वाहिश होती है कि वो मॉडलिंग के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाएं, जिसके लिए वे प्रयास भी शुरू कर देते हैं। बहुतों के सपने साकार हो जाते हैं लेकिन उनमें से ही कुछ के सपने हमेशा के लिए सपने बन कर ही रह जाते हैं।
मेरा भी बचपन से सपना था कि मैं मॉडल बनूं। सिंगिंग और मॉडलिंग दोनों में ही बचपन से बेहद दिलचस्पी रही है। छोटी थी तब से ब्रांडेड कपड़ों के नए-नए ट्रेंड को फॉलो करने का शौक था।
जैसे ही पता चलता था कि शहर में कोई इवेंट होने जा रहा है, वैसे ही चेहरा खिल उठता था। लगता था यह शो मेरे लिए ही है। सुंदर थी तो सबसे ही कॉम्प्लिमेंट मिलते रहते थे।
सजना-संवरना ढेरों फोटो खिंचवाना बहुत पसंद था। लगता था एक दिन मैं भी बड़े पर्दे पर अपनी पहचान बनाऊंगी। फिर एक दिन कॉलेज में ब्यूटी कॉन्टेस्ट के लिए ऑडिशन चल रहे थे। वो ऑडिशन यूपी लेवेल का था, जिसमें हज़ारों प्रतिभागियों के बीच सिर्फ तीन खूबरसूरत चेहरों को खोजना था।
फर्स्ट विनर के लिए एक लाख की धनराशि का इनाम रखा गया था और एक शार्ट फिल्म में काम करने का मौका भी। साथ की सहेलियों ने बहुत मोटिवेट किया कि तू इसमें ज़रूर भाग लेना। शहर के हर कॉलेज में ऑडीशन चल रहे थे।
मगर कहीं ना कहीं मेरे मन में एक डर था, क्योंकि मुझे पता था कि मेरे पापा इसके लिए इजाज़त नहीं देंगे। फिर भी मैं खुद को रोक नहीं पाई और ऑडिशन देने पहुंच गयई। सब कुछ बहुत अच्छा रहा। अगले दिन कानपुर शहर से 16 शॉर्टलिस्टेड पार्टिसिपेंट के नामों की सूची अखबार में निकली। उसमें से एक नाम मेरा भी था।
पहली बार अपना नाम अखबार में देखकर खुशी का ठिकाना ना था। बस लग रहा था जो चाहा वो ख्वाब अब मेरी आंखों के सामने ही है, फिर लगा ये सब तो सही है लेकिन पापा से कैसे बताऊंगी? उनसे छिपा भी तो नहीं सकती थी। खैर, डरते-घबराते किसी तरह से पापा को सब बताया।
मगर जिसका डर था वही हुआ। पापा खुश होने के बजाए नाराज़ होने लगे। मैंने बताया अब अगला राउंड लखनऊ में होगा और वहीं पर फाइनल विजेता को चुना जाएगा। उन्होंने कहा, “बस यह तुम्हारा पहला और आखिरी ऑडिशन था। भूल जाओ कि तुम्हें लखनऊ जाना है। अब इस टॉपिक को यहीं खत्म कर दो तो बेहतर होगा, क्योंकि मैं तुम्हें इस क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए मंज़ूरी कभी नहीं दूंगा।”
उन्होंने कहा, “तुम्हें पता भी है क्या-क्या होता है मॉडल्स के साथ? अपना ज़मीर तक बेच देती हैं पैसों के लिए। तो बेहतर होगा अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और इन सब फालतू के कामों से दूर रहो।”
बस उस पल लगा कि हम लड़कियों को तो सपने देखने तक का अधिकार नहीं है। मैंने ना जाने क्या-क्या ख्वाब पाल लिए थे। मन में हज़ारों सवाल उठने लगे।
सब कुछ मानों छिन सा गया हो। अकेले कमरे में रोती रही। कुछ देर बाद मम्मी कमरे में आईं और समझाने लगीं,
बेटा तुम तो जानती हो कि तुम्हारे पापा पुराने ख्यालातों के हैं। उनको ये सब बिल्कुल भी पसंद नहीं है। तो सोच लो कि कभी तुमने मॉडल बनने का सपना देखा ही नहीं था और वैसे भी आजकल का ज़माना इतना खराब है कि मैं चाहते हुए भी तुझे इस करियर में नहीं जाने देना चाहती। कल को कुछ गलत हुआ तो दुनिया और समाज हम पर ही लांछन लगाएगा।
बस यही से मैंने खुद के लिए सपने देखना बंद कर दिया। बस जो जैसे चलता आ रहा था, वैसे ही चलता रहा। सिंगिंग और मॉडलिंग के सपने को भुलाने के लिए मैंने लिखना शुरू कर दिया, क्योंकि जीवन में आगे भी तो बढ़ना था। ऐसे एक सपने के टूटने से भला हार कैसे मान लेती।
पढ़ाई के साथ-साथ खाली समय में लिखना शुरू किया। MBA कंप्लीट होने के बाद बैंकिंग सेक्टर में नौकरी लग गई। वहां 9 से 5 वाला जीवन शुरू हो गया लेकिन आज भी जब कभी सोचती हूं कि काश मुझे भी एक मौका मिला होता, तो आज मैं अपने सपने को जी रही होती और आज किसी अलग ही मुकाम पर बैठी होती।
वो दिन था और आज का दिन है, ये दिल अब भी कोई सपना देखने से डरता है, क्योंकि मुझे मेरे सपने के ना पूरा होने का एहसास आज भी अंदर ही अंदर कहीं कचोटता है।
नोट: आंचल शुक्ला Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।