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आयुर्वेदिक दवाई के ज़रिये त्रिपुरा के आदिवासी करते हैं निमोनिया का इलाज

फोटो साभार- ALM

फोटो साभार- ALM

एडिटर्स नोट: यह आर्टिकल केवल जानकारी के लिए है। यह किसी भी प्रकार का उपचार सुझाने की कोशिश नहीं है। यह आदिवासियों की पारंपारिक वनस्पति पर आधारित अनुभव है। कृपया आप इसका इस्तेमाल किसी डॉक्टर को पूछे बगैर ना करें।


भारत के उत्तर-पूर्वांचल में त्रिपुरा नाम का एक छोटा सा राज्य है। इस राज्य के आदिवासी जंगलों के पेड़-पौधों को अपने हाथों से मिलाकर निमोनिया की दवा बनाते हैं। ये लोग सदियों से इस दवा को बनाते आ रहे हैं।

आज भी त्रिपुरा में इस दवा को बनाकर इसका सेवन किया जाता है। भारत में आदिवासी समुदाय द्वारा किए जाने वाले आयुर्वेद पर आधारित औषधीय प्रयोग में से यह एक है।

दवा बनाने के लिए सामग्री। फोटो साभार- जोएल देब बर्मा

निमोनिया को ठीक करने की दवाई बनाने के लिए सात प्रकार की जड़ी-बूटियों का प्रयोग होता है। इस आदिवासी समुदाय द्वारा बोली जाने वाली भाषा कोकबोरोक के अनुसार इनके ये नाम हैं-

  1. समसोता {Samsota)
  2. गोयम बवलई (Goyam Bawlai)
  3. मुईमासिंग बवलई (Muimasing Bawlai)
  4. तुलसी बवलाई (Tulsi Bwlai)
  5. मुईमासिंग बॉबर (Muimasing Bober)
  6. शेषना यरवंग (Seshna Yarwng)
  7. हचिंग (Haching) 

यहां के लोगों का कहना है कि ये सब जड़ी-बूटियां बड़े-बड़े शहरों में नहीं पाई जाती हैं। अधिकतर पेड़-पौधे जिनसे ये जड़ी-बूटियां और फूल-पत्ते वगैरह लिए जाते हैं, त्रिपुरा में ही देखने को मिलते हैं ।

इन सामग्रियों को तकरीबन 20 से 30 मिनट तक ऐसे ही मिक्स करना बहुत ही अच्छा है। जितना अधिक समय सब मिलाकर पीसा जाए, उतना ही अधिक दवा के कारगर होने की सम्भावना बढ़ती है।

इन पत्तों को पीसकर मिलाने के बाद गोल-गोल टिकिया बनाई जाती है। इन टिकियों को धूप में रखकर सुखाया जाता है और सूखने के बाद इस औषधीय गोली को खा सकते हैं।  

प्राकृतिक उपचार, सुरक्षित उपचार

निमोनिया की दवाई बनाने के लिए इस पत्ते का मिश्रण तैयार कर धूप में सुखाया जाता है। फोटो साभार- जोएल देब बर्मा

त्रिपुरा की आदिवासी जनता का मानना है कि निमोनिया होने पर बड़े-बड़े शहर के लोग आयुर्वेदिक दवाइयां नहीं खाते हैं। जब अंग्रेज़ी दवाइयां ठीक से असर नहीं करती हैं तब उनको अस्पताल  में भर्ती कराया जाता है।

अस्पताल में डॉक्टर इंजेक्शन या और भारी मात्रा में दवाई देते हैं। कई बार इनसे ना सिर्फ निमोनिया और भी बढ़ जाता है, बल्कि दवाई के अन्य दुष्प्रभावों का भी खतरा भी रहता है।

त्रिपुरा के आदिवासी लोगों का कहना है कि आज तक आधुनिक चिकित्सा पद्धति में निमोनिया की बिना साइड इफेक्ट्स वाली दवाई बनी ही नहीं है। ऐसे में आदिवासियों द्वारा जड़ी-बूटियां और पत्ते एकत्र कर हाथ से बनाई गई ये आयुर्वेदिक दवाइयां  निमोनिया का एक सुरक्षित एवं अचूक उपाय हो सकती हैं।

दवाई के सेवन के दौरान क्या-क्या सावधानियां बरतें? 

यहां के आदिवासियों का मानना है कि अंग्रेज़ी दवाई की तरह इस आयुर्वेदिक दवाई को पानी के साथ बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए। इस गोली को मुंह में ऐसे ही डालकर चबाकर खाना ही अच्छा रहता है और नियमित ऐसा करने से निमोनिया रोगी जल्दी ही ठीक हो जाता है।

यह भी कहा जाता हैं कि निमोनिया से पीड़ित व्यक्ति द्वारा इस दवाई के सेवन करते समय मुर्गी खाना बहुत ही हानिकारक है। ऐसा करने पर पीड़ित व्यक्ति मर भी सकता है। 

बड़े-बड़े शहरों के लोग त्रिपुरा आकर यह आयुर्वेदिक दवा खरीदकर ले जाते हैं। त्रिपुरा के बाज़ारों में एक गोली का मूल्य केवल 10 रुपये है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इसको खाने से बहुत सारे लोगों का निमोनिया ठीक हो गया है और उनकी जान बच गई है।

पाठकों से भी निवेदन है कि कृपया त्रिपुरा के आदिवासी लोगों के हाथों से बने निमोनिया के इस रामबाण इलाज के बारे में अधिक-से-अधिक लोगों को बताएं।


लेखक के बारे में: जोएल देब बर्मा त्रिपुरा के निवासी हैं। वह अभी ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहे हैं। इन्हें गाने और घूमने के शौक के अलावा लोगों की मदद करना अच्छा लगता है। वह आगे जाकर वकालत की पढ़ाई कर वकील बनना चाहते हैं।

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