हमारे समाज में माहवारी या माहवारी स्वच्छता प्रबंधन की बातें आज भले ही ज़ोर-शोर से हो रही हैं मगर यही बातें कुछ साल पहले सभ्य समाज को चुभती थी, अश्लील बताते थे इन चीज़ों को।
आप बेशक मुझे सभ्य समाज का विरोधी कह देंगे मगर दिक्कत इस सभ्य समाज में भी नहीं है, माहवारी से जुड़ी आधी आबादी की समस्याओं को समझकर संवेदनशील हो पाने की उम्मीद हम इस पितृसत्तात्मक समाज से इसलिए भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इन्हें फिल्म पैडमैन देखने के बाद अंदाज़ा हो पाया कि परत-दर-परत स्थितियां कितनी जटिल हैं।
हमने थिएटर में बैठकर भरपूर तालियां बजाई, अक्षय कुमार के लिए तारीफों की झड़ी लग गई मगर माहवारी से जुड़े सोशल टैबूज़ को खत्म करने और एक बेहतर माहवारी स्वच्छता प्रबंधन की नीति तैयार करने में हम पूरी तरह से फेल हो गए।
ग्रामीण इलाकों में सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीनें लागने और गाँव-गाँव में जाकर नुक्कड़-नाटकों के ज़रिये माहवारी को लेकर महिलाओं और पुरुषों को जागरुक करने का बीड़ा सरकार और कुछ एनजीओ ने ज़रूर उठाया मगर उनमें सेक्स वर्कर कम्युनिटी के लिए हम यह तक नहीं समझ पाएं कि माहवारी के दौरान वे किन-किन चुनौतियों का सामना करती हैं?
राजस्थान के अजमेर की सुल्ताना, जो पेशे से एक सेक्स वर्कर हैं और ऑल इंडिया सेक्स वर्कर्स एसोसिएशन के साथ जुड़कर अपनी कम्युनिटी में माहवारी स्वच्छता प्रबंधन को लेकर महिलाओं में जागरूरकता अभियान चालती हैं।
सुल्ताना अजमेर में अपने दो बेटों और शारीरिक तौर पर अक्षम अपने पति के साथ रहकर सेक्स वर्क से अर्जित किए पैसों से गुज़ारा करती हैं। सुल्ताना ने अपनी बेटी की शादी कहीं दूर किसी सुदूर इलाके में की है ताकि बेटी के ससुरालवाले को यह ना पता लगे कि माँ सेक्स वर्कर है। खैर, सुल्ताना की बेटी कुछ साल पहले विधवा हो चुकी हैं। पति की मौत ब्रेन मलेरिया की वजह से हो गई।
माहवारी के दौरान 60000 रुपये तक का नुकसान उठाती हैं सुल्ताना
सुल्ताना बताती हैं, “माहवारी के दौरान हम सेक्स नहीं करते हैं। महीने में माहवारी के दौरान चार-पांच दिन हमारा धंधा बिल्कुल खत्म हो जाता है। जो ग्राहक सिर्फ मेरे होते हैं, यानी कि मुझे छोड़कर बाकी दिनों में कहीं नहीं जाते हैं, माहवारी के दिनों में उन्हें मना करने पर वे किसी और सेक्स वर्कर के पास चले जाते हैं और कभी वापस मेरे पास नहीं आते हैं।”
इस दौरान होने वाले आर्थिक नुकसान के बारे में सुल्ताना का कहना है कि महीने में 6 दिन माहवारी के दौरान 4-5 कस्टमर किसी और सेक्स वर्कर के पास चले जाते हैं। वह बताती हैं कि इस तरह से अगर साल की बात की जाए, तो एक साल में 60 कस्टमर हमें छोड़ देते हैं और वो भी सिर्फ इसलिए कि माहवारी के दौरान हम उन्हें सेक्स सर्विस नहीं दे पाते हैं।
वो कहती हैं,
ऐसे में एक कस्टमर मुझे 1000-1500 रुपये तक देता है और यदि 1000 के हिसाब से औसत निकालें, तो पाएंगे कि माहवारी के कारण साल में 60000 रुपये का नुकसान होता है।
सुल्ताना जागरुक हैं, जिस कारण माहवारी के दिनों में उन्हें कपड़े का प्रयोग नहीं करना पड़ता है मगर उनके समुदाय में दौलतबाग के पास महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। हालात ऐसे हैं कि महिलाएं एक कपड़े को कई दफा यूज़ करती हैं, जिससे उन्हें इंफेक्शन भी हो जाता है।
दौलतबाग की महिला सेक्स वर्कर्स को इसलिए भी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें 100-150 रुपये प्रति ग्राहक मिलते हैं, जिससे वे किसी तरह से पेटभर भोजन कर पाती हैं, सैनिटरी पैड खरीदना तो दूर की बात है।
ग्राहक गंदी-गंदी गालियां भी देते हैं
सुल्ताना कहती हैं, “हमें पहले से पता चल जाता है कि माहवारी आने वाली है और इस कारण हम इस दौरान अपने ग्राहकों से दूर रहते हैं। कई दफा हालात ऐसे हो जाते हैं कि हमें ग्राहक गंदी-गंदी गालियां देते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि ऐसी परिस्थिति में हम उनके साथ सेक्स करें।”
“मूड खराब कर दिया तुमने हमारा”, “इतनी दूर से आए थे”, “ऐसे थोड़े ही होता है” और “वक्त खराब कर दिया तुमने हमारा” जैसे शब्दों से माहवारी के दौरान अक्सर सुल्ताना का वास्ता पड़ता है।