जी हां, सही पढ़ा आपने ‘गंगा’ को ज़रूरत है। गंगा को ज़रूरत है उसकी असली संतान की, क्योंकि हम केवल गंगा मैया बोलकर ही रह जाते हैं। माँ और संतान होने मतलब आज हम भूल रहे हैं।
काली माता की आरती की एक लाइन याद आती है, “माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता” लेकिन क्या सच में यह नाता आज भी निर्मल है?
हमारी गंगा माँ आज अपनी निर्मलता खोती जा रही है। जब हम खुद अपने घर के पूजन की वे सामाग्रियां जो घर के लिए अनुपयोगी हैं या बेकार हैं, “गंगा” में बहा देते हैं।
गंगा को दूषित करने में हम स्वयं ज़िम्मेदार हैं
जब हम स्वयं ही हानिकारक कैमिकल आदि गंगा में छोड़ रहे हैं, जब हम ही गंगा किनारे कपड़े धोते हैं, डिटर्जेंट पाउडर आदि का इस्तेमाल करते हैं और दाह संस्कार के बाद वो राख गंगा में मिलाते हैं, तो हम यह सोच भी कैसे सकते हैं कि हमारी गंगा आज भी उतनी ही साफ है जितनी आज से 30 साल पहले थी।
खुद ही गंगा को दूषित करने के बाद यदि हम स्वच्छता को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करने लग जाएं तो यह बेइमानी है।
गौमुख (गंगोत्री) से लेकर प्रयागराज होते हुए इसका समंदुर में मिलना इतना आसान नहीं है। कई राज्य इसे अपने लाभानुसार अपनी मर्ज़ी से ढाल लेते हैं और हम भी तो कम नहीं हैं साहब, रही-सही कसर हम पूरी कर देते हैं।
अच्छा आप ही बताइए जिसे आप गंगा माँ कहते हैं, उसे गंदा कौन कर रहा है?
- भारत की 43% आबादी गंगा पर निर्भर करती है।
- भारत के 26% भूभाग को गंगा आच्छादित करती है।
- गंगा भारत के जल संसाधनों में 28% योगदान देती है।
- गंगा भारत के 57% कृषि भूमि को उपजाऊ बनाती है।
- गंगा में 143 मछली प्रजातियों का आवास है और फिर भी हम इसे गंदी करने में तुले हुए हैं।
गंगा में प्रदूषण के मुख्य कारण
- सीवेज प्रदूषण
- कृषि अपशिष्ट
- खुले में शौच
- धार्मिक अपशिष्ट
- अधूरे दाह-संस्कार
और यदि देखा जाए तो कुल मिलाकर ये सभी प्रदूषण हमारे द्वारा ही किए जा रहे हैं। अर्थात यह है कि यदि हम अपने पर काबू रखें तो गंगा साफ हो सकती है। केवल सरकार के ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट या फिर ‘स्वच्छ गंगा मिशन’ से तभी कुछ होगा जब जनभागीदारी होगी।
धार्मिक नज़रिए से देखें तो श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है, “धाराओं में, नदियों में मैं गंगा हूं।” इसका मतलब यह हुआ कि भगवान भी कहीं ना कहीं ‘गंगा’ को अपने से ऊपर मानते हैं।
हम आम लोगों को सामने आना होगा
भारत में कई सामाजिक संगठन ऐसे हैं, जो गंगा की स्वच्छता के लिए लगातार जागरूकता कार्यक्रम संचालित करते हैं। सरकार के युवा एवं खेल मंत्रालय के नेहरू युवा केंद्र गंगा की स्वच्छता बनाए रखने के लिए ग्रामों में बहुत ही कर्मठता से लोगों को जागरूक कर रहे हैं।
फिर भी हमें आगे आना होगा। अपने घर से शुरुआत करनी होगी, महात्मा गाँधी का कथन भी है, “पहले खुद वो बदलाव बनिए, जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।”
इस कथन से मैं कहना यह चाहता हूं कि यदि आप गंगा को स्वच्छ, निर्मल और अविरल देखना चाहते हैं, तो पहले खुद गंगा में गंदगी फैलाना छोड़िए।
गत दिनों मेरठ के एक युवा टीम सामाजिक संगठन ‘एनवायरमेंट क्लब’ ने भी गढ़मुक्तेश्वर, हापुड़ के ब्रजघाट जाकर गंगा के घाटों की सफाई की थी और वहां आए हुए श्रद्धालुओं को गंगा में स्वच्छता बनाए रखने के लिए जागरूक व प्रेरित किया था।
वहीं, क्लब के सह संस्थापक और सचिव प्रतीक शर्मा से बात करने पर उन्होंने कहा कि लोगों में जागरूकता तो आ रही है। सब इस बात को जानते हैं कि हमारी गंगा गंदी हो रही है फिर भी उस पर अमल नहीं करते हैं। इस समय ज़रूरत यह है कि लोग इस बात को समझकर उस पर अमल करना शुरू करें।
उन्होंने कहा कि गंगा घाट किनारे उन्हें खूब गंदगी मिली और ज़्यादातर कपड़े ही कपड़े थे। इसके अलावा फूल-मालाएं, भगवान की मूर्तियां और तस्वीरें आदि भी लोग गांगा में बहा देते हैं। उन्होंने कहा कि सफाई रखना हम सभी का दायित्व है और हमें इसका निर्वाहन बहुत अच्छे से करना चाहिए।
पदन खनीर जनित जन पावन
केशव धृतवामनरूप जय जगदीश हरे
महर्षि वाल्मीकि की रचना के रूप में प्रसिद्ध एक स्रोत ‘गंगाष्टक’ में कहा गया है कि भगवान विष्णु के चरणों से निकली हुई गंगा भगवान शंकर के मस्तक पर विचरती हुई हमें पवित्र करें।
इस लेख को पढ़ने के बाद हम सभी यह संकल्प करें कि अपनी गंगा को “गंगा मैया” को हम स्वच्छ रखेंगे और लोगों से भी ऐसा करने के लिए कहेंगे। कूड़ा- करकट और प्लास्टिक आदि गंगा में नहीं डालेंगे। गंगा हमारी माँ है, इस बात को समझते हुए संतान होने का कर्तव्य निभाएंगे।
संदर्भ- https://bit.ly/339XOME