पीरियड्स के दौरान महिलाएं जिस्मानी लिहाज़ से जिस दर्द के अनुभव को जीती हैं, उसका एहसास भी नहीं किया जा सकता है। बात जिस्मानी पीड़ा से गुज़रने तक की नहीं, बल्कि मानसिक पीड़ा सहन करने की भी है। जिस्मानी पीड़ा तो कुदरत की देन है लेकिन मानसिक पीड़ा सगे संबंधी देते हैं।
कुछ महिलाओं के अनुभव
47 वर्षीय भंवरीबाई (बदला हुआ नाम) पिछले 2 साल से काफी तनावपूर्ण स्थिति का सामना कर रही हैं। वह खुद में अपने स्त्रीयोचित गुणों की कमी पा रही हैं।
उन्हें खुद के औरत होने का एहसास तक नहीं हो पा रहा है। उनकी माहवारी अब नियमित नहीं है। रजोनिवृति (मेनोपोज़) करीब है और उन्हें बहुत डर सता रहा है कि क्या अब वो कभी अपने औरत होने के एहसास को जी पाएंगी?
पानेर जो कि उदयपुर में स्थित है वहां की रहने वाली 40 साल की लालीदेवी (बदला हुआ नाम) की भी यही स्थिति है। पिछले साल बहुत ज़्यादा माहवारी का खून और बदबूदार सफेद पानी आने के कारण उदयपुर अस्पताल में उसका ऑपरेशन हुआ और उसकी बच्चेदानी (गर्भाशय) निकाल दी गई।
कुछ महीने बाद छाती और पेट में तेज़ दर्द होने, अचानक बहुत ज़्यादा मूड बदलने, हद से ज़्यादा तनाव और घबराहट, चिड़चिड़ापन आदि परेशानियों से दो चार हैं। उन्हें रात-रातभर नींद नहीं आती, अचानक से बहुत तेज़ गुस्सा आता है और बैचेनी महसूस होती है।
कैलाशी की उम्र 42 साल है। वो इन दिनों बार-बार मूड बदलने से परेशान हैं। शुरुआत में उन्हें यह सामान्य लगा मगर अब यह खतरनाक ढंग से बढ़ता जा रहा है।
उनके अजीब से व्यवहार के चलते पति ने उन्हें कई बार मारा-पीटा और एक दिन नरेगा मज़दूरी पर नहीं जाने की स्थिति में उन्हें रात भर घर के बाहर सोने पर मजबूर भी किया गया।
यह अकेली भंवरी बाई, कैलाशी या लालीदेवी की कहानी नहीं है। यह हर उस महिला की कहानी है, जो अब मेनोपॉज या रजोनिवृति के करीब हैं।
महिलाओं में रजोनिवृति का समय नज़दीक आते आते मानसिक तनाव का स्तर खतरनाक ढंग से बढ़ता जा रहा है। इससे उनकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में तनाव बढ़ता है जिसका सीधा असर परिवारिक संबंधों पर आता है।
भूख ना लगना, खुद को कमतर आंकना, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से तालमेल नहीं बिठा पाना, खुद को औरत नहीं मानना, तेज़ दर्द, अनिद्रा आदि परेशानियों से गुज़रकर ज़िन्दगी को काटते रहना।
यह चौंकाने वाली स्थिति सामने आई “Youth Ki Awaaz” द्वारा आयोजित Periodपाठ फेलोशिप से जुड़े कार्यक्रम के तहत गोगुन्दा क्षेत्र की 112 ग्रामीण महिलाओं के साथ हुई फोकस ग्रुप की बातचीत से।
40-55 साल की महिलाओं में रजोनिवृति से जुड़ी समस्याओं के साथ-साथ यौन और माहवारी सम्बंधित संक्रमण बहुत आम है। महिलाएं तेज़ जलन, लाल चकत्ते होना, सफेद पानी का स्राव, माहवारी के दौरान बहुत अधिक खून का बहना, गर्भाशय में गांठ, योनि के अंदरूनी हिस्से में संक्रमण या घाव का बहुत आम होना।
सबसे आम है परदे की बीमारी
सर्वे में यह भी सामने आया कि दो तिहाई से अधिक महिलाएं इस उम्र के दौरान किसी ना किसी परेशानी से ज़रूर गुज़री हैं। महिलाएं आम तौर पर इस प्रकार के संक्रमण को छुपाती है या नज़रअंदाज़ कर देती हैं।
जब रोग की स्थिति भयावह होती है तब संक्रमण को रोकने के लिए चिकित्सकों को कई बार गर्भाशय को बाहर निकालना पड़ता है। महिलाओं ने स्वीकार किया कि इसका सीधा असर उनके पारिवारिक जीवन पर पड़ता है।
वे सामान्य सी मुसीबतों का सामना करने में घबरा उठती हैं। बहुत छोटी-छोटी बात पर चिड़चिड़ापन महसूस करती हैं। खुद को कमतर आंकती हैं, उन्हें आराम करने की इच्छा होती है मगर शरीर के अन्दर उठ रहे विभिन्न दर्द के चलते वे आराम भी नहीं कर पाती हैं।
यहां सबसे बड़ी बात यह है कि इस बारे में वे किसी को बता भी नहीं पाती हैं। कोई उन्हें समझता नहीं, कई बार मामला इस हद पर पहुंच जाता है कि घर के पुरुषों द्वारा वे हिंसा का भी सामना करती हैं।
महिला चिकित्सक के नहीं होने से महिलाएं नहीं जाती हैं अस्पताल
गोगुन्दा में बातचीत के दौरान अधिकांश महिलाओं ने इलाज के लिए उदयपुर जाना स्वीकार किया। गोगुन्दा में स्त्री रोग विशेषज्ञ का पद लम्बे समय से रिक्त होने के कारण इस तरह की परेशानी होने पर महिलाएं सरकारी अस्पताल नहीं जाती हैं।
इसके बजाय वे 50 किलोमीटर दूर उदयपुर के सरकारी या निजी अस्पताल जाना पसंद करती हैं। उदयपुर तक पहुंचते पहुंचते कई बार इतनी देर हो चुकी होती है कि गर्भाशय को निकालने के अलावा विकल्प नहीं बचता है।
हॉर्मोनल बैलेंस बहुत आवश्यक: महिला रोग विशेषज्ञ
महिला रोग विशेषज्ञ के अनुसार गर्भाशय और अंडाशय से जुड़े कई हार्मोन महिला को स्त्रीत्व का अहसास दिलाते हैं। रजोनिवृति के दौरान यह हार्मोन धीरे धीरे अपना प्रभाव छोड़ने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप कई बार महिलाएं अपने स्त्रीत्व को कम होता महसूस करती हैं।
कुछ महिलाओं को ऊपर से हार्मोन की दवाएं भी दी जाती हैं। चिकित्सक इसका विशेष ख्याल भी रखते हैं किन्तु कई बार महिलाएं अपनी दवाइयां समय पर नहीं लेतीं या उन्हें नियमित नहीं रखतीं।
महिलाओं के बीच “परदे की बीमारी” पर अध्ययन कर रहे ओम ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में गोगुन्दा के अलग अलग गांवों में 10-15 महिलाओं के समूहों के साथ विषय आधारित चर्चा की गयी।
इस दौरान विशेष तौर पर केवल उन महिलाओं को आमंत्रित किया गया, जिनकी रजोनिवृति (मेनोपॉज ) हो चुकी है अथवा वे इसके करीब है। इस चर्चा में कुल 112 महिलाएं शामिल हुईं।
किसने क्या कहा?
“रजोनिवृति महिला-जीवन का एक सच है। इसे स्वीकार करना हर महिला के लिए ज़रूरी है। इस से जुड़ी शारीरिक और मांसिक परेशानियों को छुपान से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जो कई बार बहुत बड़ा रूप ले लेता है। उम्र के इस पड़ाव में कई बार तनाव के चलते रिश्तों में भी विपरीत प्रभाव देखा गया है।”
-डॉ. गायत्री तिवारी (विभागाध्यक्ष, मानव विकास एवं परिवार अध्ययन, गृह विज्ञान महाविद्यालय, उदयपुर)
“अगर गोगुन्दा में ही महिला चिकित्सक की व्यवस्था प्रशासन कर दे तो महिलाओं के लिए उदयपुर तक की दौड़ खत्म हो जाएगी। महिला परिवार की धुरी है पर यह भी सच है कि परिवार ही इस धुरी की सेहत का ख्याल नहीं रखता।”
-अम्बावीबाई (स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता, गोगुन्दा)
“इस फोकस ग्रुप चर्चा में सामने आये तथ्यों के बाद यह स्पष्ट है कि रजोनिवृति के समय विभिन्न संक्रमण और अन्य कारणों से महिलाओं की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। महिलाएं जहां अपनी कोख खो रही हैं, वहीं उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। प्रशासन को तत्काल गोगुन्दा में एक महिला स्त्री रोग विशेषज्ञ की नियुक्ति करनी चाहिए।”
-ओम उर्फ मनु (कार्यक्रम प्रबंधक, जतन संस्थान, उदयपुर)