Site icon Youth Ki Awaaz

मनरेगा का वेतन नहीं मिलने से रुक गया है छत्तीसगढ़ के इस गाँव का विकास

फोटो साभार- ALM

फोटो साभार- ALM

जब केरगाँव के श्री अंगेश्वर के खेत में मनरेगा के तहत भूमि सुधार का काम शुरू हुआ, तो वह काफी खुश थे। वह छत्तीसगढ़ के ज़िला गरियाबंद में रहते हैं। उनके खेत में मेढ़बंदी का काम चल रहा है।

मेड़बंदी में चारों तरफ से मेंड बनाया जाएगा। खेत में गोदी की गहराई 8 से 10 इंच की है। इससे उनके खेत की क्वालिटी में सुधार आएगी और अच्छी फसल होगी। 

मनरेगा यानी महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी एक्ट, 2005  की जब शुरुआत हुई थी, तब गाँववासी इसके लिए काफी उत्साहित थे। ग्रामीण गरीबी, बेरोज़गारी और शहरी पलायन को रोकने के लिए सरकार की यह बहुत अच्छी पहल थी। इसे साधारण भाषा में समझा जा सकता है कि हर परिवार को साल में 100 दिनों का काम और वेतन ज़रूर मिलता था।

देर वेतन के कारण मनरेगा में नहीं करते काम

गायारम के पुत्र अंगेश्वर के खेत में मेडबंदी का काम 16 दिसंबर को शुरू हुआ। योजना के अनुसार, काम के पारी के बाद लोगों को पैसे मिलेंगे। यहां मनरेगा में दर्ज़ 10 प्रतिशत लोग काम करने आएं।

आप सोचेंगे कि आखिर इतने कम लोग क्यों आए? मज़दूरों का कहना है कि पैसा लेट मिलता है। इसलिए केवल 10 प्रतिशत दर्ज़ लोग ही काम के लिए आए। बाकी लोग कोई और काम ढूंढ़ लेते हैं। 

कई बार तो पैसा मिलने में एक साल तक लग जाता है। वह कहते हैं, “मनरेगा का काम करने के बाद पैसा जल्दी नहीं मिलता है। इसलिए काम करने की इच्छा नहीं होती है। इस प्रकार मनरेगा का बेरोज़गारी और गरीबी को खत्म करने का जो मकसद था, वह नाकामयाब हो रहा है।

वेतन नहीं मिलने से गाँव का विकास नहीं हो रहा

खेत में सुधार काम।

मनरेगा की योजना के अनुसार, हर ग्राम पंचायत में रोज़गार गारंटी मिलेगी। तलाब, डबरी, कुआं, आवास, नहर निर्माण, पुलिया निर्माण, समतलीकरण, भूमि सुधार, मेड़बंदी आदि को भी मनरेगा ने रोज़गार गारंटी से जोड़ दिया है।

यानी गाँव और गाँववासियों के विकास के काम को गाँववासियों के रोज़गार से जोड़ा गया है लेकिन उन्हें समय पर वेतन नहीं मिलने के कारण उनमें मनरेगा में काम करने को लेकर कोई प्रेरणा नहीं होती है। इस कारण, गाँव और गाँववासीयों का विकास, दोनों बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।

सरकार ने वादा किया था कि 15 से 20 दिनों के अंदर वेतन का भुगतान हो जाएगा लेकिन गाँववासी सरकार से बहुत निराश हैं, क्योंकि उनका वेतन समय पर जमा नहीं हो रहा है। सरकार अपने वादे को पूरा नहीं कर रही है। अंगेश्वर के खेत में मनरेगा के तहत जितनी गहरी खुदाई करनी है, मज़दूर नहीं करते हैं। इस प्रकार गाँववासियों के विकास का काम ठीक से पूरा नहीं हो पाता है। 

ग्राम पंचायत में अपनी बात रखते हैं

मरेगा के तहत काम करते मजदूर।

रोज़गार गारंटी में रोज़गार सहायक के सर्वे की अहम भूमिका रहती है। रोज़गार सहायक की ज़िम्मेदारी होती है कि पूरे काम की देखरेख करे। रोज़गार सहायक के मदद के लिए मेंट नियुक्त किया जाता है, जो रोज़गार सहायक की अनुपस्थिति में उनका लगभग पूरा काम करने की ज़िम्मेदारी ले।

मनरेगा के तहत काम करते मज़दूर 100 दिन काम नहीं मिलने और वक्त पर वेतन ना दिए जाने के कारण बहुत परेशान हैं। ग्राम पंचायत के साथ आमसभा या ग्राम सभा की एक विशेष बैठक बुलाई गई थी, जिसमें लोग अपनी परेशानी और अधिकार की बात रख सके।

यहां के लोग मनरेगा के इस समस्या से परेशान हैं। इस विषय को बैठक का एजेंडा बनाया गया, ताकि उन्हें समय पर पैसे दिए जाए। अगर यहां गाँववासियों के आग्रह को स्वीकार किया गया, तो इस प्रस्ताव को आगे जनपद पंचायत द्वारा प्रस्तावित कार्य को स्वीकृति प्रदान किया जाएगा।

गाँववासियों ने रोज़गार गारंटी को ग्राम सभा का उद्देश्य बनाते हुए जनता तक रोज़गार और सही वेतन देने का आग्रह किया है। इसका प्रति दिन का वेतन 174 रुपये है। जो कि श्रम मिनिस्ट्री के निर्धारित 374 रुपये के आधे से भी कम है। 

काम के नियम

जॉब कार्ड।

इससे पहले कि गाँववासियों को काम दिया जा सके, उनके पास जॉब कार्ड होना चाहिए। जॉब कार्ड बनाने के लिए वे जिस ग्राम पंचायत में रहते हों, उस ग्राम पंचायत में आवेदन लगाना पड़ता है। इसके साथ ही आधार कार्ड और बैंक अकाउंट की ज़रूरत पड़ती है।

देश भर से रिपोर्ट आए हैं कि मनरेगा वेतन भुगतान को आधार और बैंक अकाउंट से लिंक करने के कारण बहुतों का भुगतान नहीं हो पा रहा है।

जॉब कार्ड।

जॉब कार्ड के बिना कोई भी रोज़गार गारंटी में काम नहीं कर पाएंगे। अर्थात इसके बिना काम ही नहीं मिलेगा। प्रत्येक जॉब कार्ड में डेढ़ सौ दिन का मानव दिवस होता है। डेढ़ सौ दिन पूरे हो जाने के बाद फिर 1 वर्ष का कार्य उसके लिए खत्म हो जाता है। फिर आने वाले वर्ष में वह व्यक्ति काम कर सकता है।

जिसके पास भी जॉब कार्ड है, वो काम की मांग कर सकता है। काम की मांग करने के लिए 1 सप्ताह पहले मांग पत्र भरने की ज़रूरत पड़ती है। मांग पत्र के अनुसार, पंचायत उन हितग्राहियों को काम देती है। इसके साथ ही मांग पत्र के अनुसार मास्टररोल जारी किया जाता है।

नियम के तहत कार्यस्थल में बैठने की सुविधा, पानी की सुविधा एवं मितानिन की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। जब सही प्रकार से वेतन भुगतान नहीं होता है, तो गाँववासी मनरेगा में काम नहीं करना चाहते।

इससे गाँव के विकास से जुड़े काम, जैसे नहर और सड़क बनाने का काम भी ठीक से नहीं होता है। केंद्र और राज्य सरकारों और सरकारी अफसरों को मनरेगा में इन खामियों पर जल्द ही ध्यान देकर सुधार करना होगा।


लेखक के बारे में- खगेश्वर मरकाम छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। यह समाज सेवा के साथ खेती-किसानी भी करते हैं। खगेश का लक्ष्य है शासन-प्रशासन के लाभ आदिवासियों तक पहुंचाना। वह शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

Exit mobile version