नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के मद्देनज़र असम में NRC के तहत गैर-मुस्लिम बाहर हुए। अब सोचने की बात यह है कि जब राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी की प्रक्रिया लागू होगी तब क्या हालात होंगे?
क्या मान लिया जाए कि NRC के तहत नागरिकता खो चुके गैर-मुस्लिमों को CAA के तहत नागरिकता देने का प्रावधान मिलेगा? अगर मिलेगा भी तो शर्त के साथ, क्योंकि CAA सिर्फ पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के प्रवासियों के लिए ही लागू होगा। तो फिर सवाल यह उठता है कि श्रीलंका के तमिलों का क्या होगा?
नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के अनुसार भारत में दिसंबर 2014 से पहले वैध या अवैध रूप से निवास करने वाले बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई और पारसी धर्म के लोगों को स्वत: नागरिकता देने का प्रावधान है। शर्त बस इतनी है कि उस व्यक्ति का संबंधित तीनों देशों में से एक में धर्म के आधार पर अत्याचार हुआ है।
CAA को लेकर मोदी सरकार का तर्क
CAA लागू करने के पीछे मोदी सरकार का तर्क है कि पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में गैर मुस्लिम लोगों पर धर्म के आधार पर घोर अत्याचार और उनका अपमान होता है। जिस कारण इन तीनों देशों के गैर-मुस्लिम अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं और जान-माल की रक्षा के लिए वे भारत में अवैध रूप से या फिर वैध रूप से प्रवेश करके शरण लेते हैं।
यानी सरकार उन तमाम गैर-मुस्लिम पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और अफगानिस्तानी मूल के लोग जो भारत में अवैध या वैध रूप से दिसंबर 2014 के पहले से निवास करते आरहे हैं उन्हें नागरिकता देने की पात्रता देती है। जो CAA के तहत नागरिकता हेतु भारत सरकार में आवेदन कर सकते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो संशोधन इन तीनों देशों के सताए गए अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने के लिए है।
पीड़ितों को धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य द्वारा संरक्षण देना चाहिए
मैं भारत सरकार के इस वक्तव्य से पूरी तरह सहमत हूं कि इन तीनों देशों में वहां के अल्पसंख्यकों अर्थात हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख और ईसाई के ऊपर अत्याचार होता है। उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है। बहन बेटियों के साथ दुराचार होता है। अतः एक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य होने के नाते भारत को उनका संरक्षण करना चाहिए।
CAA का लाभ म्यांमार, श्रीलंका, चाइना भूटान आदि के उत्पीड़ितों को क्यों नहीं?
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान, श्रीलंका में तमिल हिंदू, मुसलमान, ईसाई तो चाइना में हिंदू, मुसलमान, ईसाई और पाकिस्तान में अहमदिया मुसलामानों को भी धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता है।
अब सवाल ये उठता है कि मोदी सरकार ने एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के नाते इन सभी के बारे में चर्चा क्यों नहीं की। जो सरकार ने नहीं किया। यही कारण है कि CAA वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर असंवैधानिक और अमानवीय है।
क्या होंगे दस्तावेज़?
एनआरसी जब भी लागू होगा तो क्या एससी, एसटी, ओबीसी समाज के सभी लोगों से भारत के नागरिक होने का प्रमाण मांगा जाएगा?
- यदि हां, तो उसमें जो मुख्य दस्तावेज़ क्या मांगे जाएंगे?
- क्या ज़मीन के रजिस्ट्री पेपर, टैक्स के पेपर, वोटर लिस्ट में नाम, राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट इत्यादि शामिल होंगे?
- अब इन दस्तावेज़ों की कट ऑफ डेट सरकार एनआरसी लागू करने हेतु कब बताएगी?
- साहब यह सब सरकार के विवेक पर ही निर्भर करेगा।
क्या ऐसा होगा?
मान के चलिए कि 1971 जो असम में कट ऑफ डेट रखी गई थी वही पूरे देश में लागू की जाएगी। तब सभी लोगों को 1971 से पहले के ऊपर वर्णित दस्तावेज़ सरकार को दिखाने होंगे।
जो लोग दस्तावेज़ नहीं दिखा पाएंगे उनको माईग्रेंट यानी कि प्रवासी घोषित कर दिया जाएगा। इसके बाद गैर-मुस्लिमों को नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत प्रवासी बांग्लादेशी, पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी साबित होने के बाद नागरिकता दे दी जाएगी।
क्या सरकार SC, ST, OBC को CAA के तहत नागरिकता देने के बाद आरक्षण का लाभ देगी?
यहां पर यह सवाल उठता है कि दलित आदिवासी और ओबीसी समाज के लोग जो एनआरसी के दौरान अपना दस्तावेज़ नहीं प्रस्तुत कर पाएंगे उनके साथ क्या होगा?
- क्या उन्हें प्रवासी घोषित कर दिया जाएंगा?
- उसके बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम के आधार पर गैर मुस्लिम एससी, एसटी, ओबीसी को भारत की नागरिकता मिल जाएगी?
- तो क्या सरकार उन सभी को आरक्षण का लाभ देगी?
प्रवासी को SC, ST, OBC आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
एनआरसी के तहत बाहर हुए SC, ST, OBC जिनको नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के आधार पर भारत की नागरिकता मिलेगी उनको आरक्षण का लाभ मिलेगा या नहीं? यह बहुत बड़ा सवाल है क्योंकि इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट का 2009 और 2018 का जजमेंट है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण का लाभ प्रवासी लोगों को नहीं दिया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट देते हुए कहा था यदि कोई SC, ST, OBC बिहार से निकलकर महाराष्ट्र में जाकर निवास करता है तो उसको वहां आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। क्योंकि वह प्रवासी नागरिक है। प्रवासी नागरिक को आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
यहां गौर करने वाली बात है कि एनआरसी में जो शामिल नहीं होंगे वह नागरिक ही नहीं रहेंगे तो उनका स्वत: प्रवासी होना निश्चित है।
2018 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट से यह साफ है कि एक बार यदि कोई व्यक्ति प्रवासी साबित हो जाता है तो वह एससी एसटी ओबीसी आरक्षण का लाभ लेने की पात्रता खो बैठता है। या यूं कहें कि वह SC, ST, OBC की श्रेणी से बाहर हो जाता है चाहे उसकी जाति संबंधित राज्य के एससी एसटी ओबीसी की सूची में शामिल क्यों ना हो।
सरकार स्पष्ट करे कि CAA द्वारा नागरिक बनने वाले एससी, एसटी, ओबीसी को आरक्षण मिलेगा या नहीं?
सवाल बहुत हैं और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जब एनआरसी से बाहर हुए एससी, एसटी, ओबीसी के लोग नागरिकता संशोधन अधिनियम के द्वारा भारत के नागरिक बन जाएंगे तो उनको आरक्षण मिलेगा या नहीं?