इसे विडंबना नहीं तो क्या कहा जाएगा कि जिस दिल्ली में भारत के दो सबसे शक्तिशाली लोग मौजूद थे, वह दिल्ली जल उठी। ये वे लोग हैं, जिन्होंने कभी जलते हुए गुजरात में सरकार का प्रतिनिधित्व किया था।
याद कीजिए 2002 का गुजरात दंगा। सोचिए, वैसी ही घटना कुछ वर्षों बाद राजधानी दिल्ली में घटित हुई। यह उनकी कैसी जागीरदारी है कि इंसानियत जलकर तब खाक हुई, जब भाईचारा सुर्ख अंगार में कोयला हो गया।
क्या दिल्ली हिंसा नाम का विस्फोट होने वाला था?
सोचिए किस गति से भाजपा और उसके सहयोगी संगठन यानी सशस्त्र गिरोह पुलिस की निष्क्रियता के साथ अगे बढ़े। तो सवाल उठना लाज़मी है कि दिल्ली हिंसा का आभास पहले से था? समझने की बात है कि भाजपा नेता कपिल मिश्रा घृणास्पद व्यक्ति के रूप में कब से दिखाई दिए। चुनाव के दौरान से ही लोगों को विवादित बयान दे देकर उकसाया और गायब हो गए।
कहने का तात्पर्य यह है कि रविवार से पहले ही दिल्ली हिंसा के लिए मैदान का निर्माण कर दिया गया था। इस बात पर चिंतन कीजिए ताकि देश के बाकी हिस्सों को यह दिन ना देखने पड़ें।
यह देखना वास्तव में हृदय विदारक है कि कैसे आधिकारिक तौर पर उदासीनता इतनी बुरी तरह से अनियंत्रित हो सकती है। ऐसा परिणाम कि निर्दोष लोगों की मृत्यु हो गई, वह भी तब जब उनके पास निपटने के लिए कानून-व्यवस्था थी।
क्या हममें से बहुत से लोग इस बात से पूरी तरह वाकिफ नहीं हैं कि गुजरात 2002 की हिंसा का खुलासा कैसे हुआ? हमारी नज़र भारत की राजधानी दिल्ली पर है। क्या किसी ने कभी सोचा होगा कि हिंसा से दिल्ली को थोड़ी सतर्कता से बचाया जा सकता था, क्योंकि, लोग लगातार सवाल पूछ रहे थे कि आखिर प्रशासन की सक्रीयता कौन सी इबारत लिख रही है? हमें मंथन करना होगा कि आखिर दिल्ली हिंसा का खलनायक कौन है?
CAA के 70 दिनों में दिल्ली ने खूब सही हिंसा
याद कीजिए प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में बर्बरता का कृत्य तब शुरू हुआ, जब सत्तारूढ़ औषधालय से संबद्ध छात्रसंघ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के गुंडों ने रात के अंधेरे में JNU परिसर में प्रवेश कर छात्रों को बेरहमी से पीटा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पुलिस सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध होने के बावजूद आज तक अपराधियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी।
कुछ यही हाल दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय का हुआ। विद्यार्थियों को बिना किसी अपराध के बेशर्मी से पीटा गया। फर्क बस इतना था कि यहां ABVP वाले नहीं थे, बल्कि पुलिस के लोग मौजूद थे। यहां भी सीसीटीवी फुटेज होने के बावजूद कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
दो दिनों के दंगे में दर्जनों हत्या और सैकड़ों घायल, कैसे सम्भव है? वह भी राजधानी स्थित सत्ता की नाक के नीचे। सत्तादल बड़े मज़े से खामोश बैठे हैं और बदतर हालात पर ज़ुबां बंद होठ सिले हुए। सीएम केजरीवाल ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कोई वास्तविक कदम नहीं उठाया है। ये वही व्यक्ति हैं, जो बात-बात पर धरने पर बैठ जाते थे।
क्या हिंदू क्या मुस्लिम, हर कोई दंगाइयों के निशाने पर था। वैसे हमेशा की तरह मुस्लिम समुदाय को विशेष रूप से निशाना बनाया गया। उनके आशियाने जलाए गए, बर्बरता का आलम यह था कि मॉब की बेरहमी के शिकार महिलाओं से लेकर बच्चे तक हुए।
इस बीच, दिल्ली पुलिस ने मूक दर्शक की भूमिका निभाई। इन हमलों के लिए सत्तारूढ़ भाजपा के सांसदों से लेकर नेताओं द्वारा उकसाए जाने वाले नारे लगाए गए। हिंदुओं को “राष्ट्रद्रोहियों” को गोली मारने के लिए उकसाया गया। राष्ट्रद्रोही कौन हैं? क्या वही जो भेदभावपूर्ण नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं?
आज सभी समुदायों के लोगों को संविधान की रक्षा करने के लिए एक साथ आना होगा। जो कानून के समक्ष असंतोष और समानता का अधिकार देता है और एक धर्मनिरपेक्ष राजनीति का भी आग्रह करता है। अन्यथा, और देर हुई तो राजधानी अराजकता में उतर जाएगी और हिंसा जीवन को नष्ट कर देगी।
हमारे देश का भाईचारा बना रहे। जय हिन्द