दिल्ली में पिछले 3 दिनों से चल रहे दंगों में अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है और करीब 189 लोग घायल हैं। दंगे हों और दुकान, घर, वाहन व पूजा स्थल में आगजनी ना हो, तो दंगे फीके लगते हैं। इसलिए ये भी जल रहे हैं।
दंगों का दोषारोपण दोनों पक्ष एक-दूसरे पर कर रहे हैं। कोई पुलिस की अकर्मण्यता को दोषी ठहरा रहा है, तो कोई सरकार की अकर्मण्यता को। हम यही जानने का प्रयास करेंगे कि इन दंगो का दोषी कौन है?
बीजेपी नेताओं के बयान की ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
CAA व NRC का विरोध करने वाले करीब ढाई महीने से शाहीन बाग में प्रोटेस्ट कर रहे हैं। प्रोटेस्ट करना इनका मूल अधिकार है लेकिन उन आम लोगों को भी शांतिपूर्ण जीवन जीने का मूल अधिकार है, जिनको इनकी वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
इनके प्रोटेस्ट के चलते रोड ब्लॉक से लाखों लोगों को रोज़ाना परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यही काम जब इन्होंने जाफराबाद में करने का प्रयास किया तो लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। शरजील इमाम और वारिस पठान जैसे लोगों ने भी इस गुस्से को बढ़ाने में मदद ही की।
हिन्दू-मुस्लिम, हिंदुस्तान व पाकिस्तान, शाहीन बाग, देशभक्ति, आतंकवादी, जय श्री राम, जय बजरंग बली। ये ऐसे शब्द हैं, जो आपको पिछले कुछ महीनों से रोज़ाना ही सुनने को मिलते होंगे। दिल्ली का चुनाव BJP ने इन्हीं मुद्दों के मद्देनज़र लड़ा। BJP को सबसे ज़्यादा नुकसान अपनी नीतियों से नहीं, बल्कि कपिल मिश्रा व अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं से है।
ऐसे नेताओं की वजह से ही BJP ज़्यादा बदनाम है। ट्रंप के भारत दौरे की बहुत अच्छे से तैयारी की गई और इस दौरे से भारत को बहुत अपेक्षाएं थीं। अमेरिकी राष्ट्रपति का ऐसा स्वागत होगा, किसी ने भी नही सोचा था लेकिन धन्य हो कपिल मिश्रा जी, जिन्होंने वह सोचा जो किसी ने भी नहीं सोचा था और उस सोचने का नतीजा आप सबके सामने है और इस नतीजे ने आप सबको सोचने के लिए मजबूर कर दिया।
दंगों के लिए कितने ज़िम्मेदार होते हैं पुलिस
दंगो के समय पुलिस की ज़िम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। अगर दंगा फैलता है, तो हर कोई इसके लिए पुलिस को ज़िम्मेदार ठहराता है। विभूति नारायण राय ने अपनी किताब “सांप्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस” में कहा है,
सांप्रदायिक दंगों को प्रशासन की एक बड़ी असफलता के रूप में लिया जाना चाहिए। पुलिस में काम करने वाले लोग उसी समाज से आते हैं, जिसमें सांप्रदायिकता के विषाणु पनपते हैं, उनमें वे सब पूर्वग्रह, घृणा, संदेह और भय होते हैं, जो उनका समुदाय किसी दूसरे समुदाय के प्रति रखता है। पुलिस में भर्ती होने के बावजूद वे खुद को अपने ‘सहधार्मिकों’ के ‘हम’ में शामिल रखते हैं और दूसरे समुदाय को ‘वे’ मानते रहते हैं। अतः यह अंशतः सत्य है कि दंगों को फैलाने में पुलिस का योगदान होता है लेकिन यह पूर्णतः सत्य नहीं है।
पूर्व आईएएस अफसर और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर मानते हैं कि दंगे कभी अपने आप नहीं होते हैं। उनका कहना है, “मैं सामाजिक हिंसा का अध्ययन पिछले कई सालों से कर रहा हूं और यह बात पक्के तौर से कह सकता हूँ कि दंगे होते नहीं मगर करवाए जाते हैं। मैंने बतौर आईएएस कई दंगे देखे हैं। अगर दंगा कुछ घंटों से ज़्यादा चले तो मान लें कि वह प्रशासन की सहमति से चल रहा है।”
कहा जाता है कि पुलिस और मीडिया उसी की होती है, जिसकी सरकार होती है। अतः पुलिस वही करती है जो सरकार उसको करने के लिए बोलती है। पुलिस केवल सरकार द्वारा दिए गए आदेशों का पालन मात्र करती है। अतः दंगो के फैलने में पुलिस का पूर्णतः योगदान नहीं होता है।
हम और आप ही हैं इस दंगे का ज़िम्मेदार
सरकार ने इस दंगे को फैलने दिया, इसका मतलब यह हुआ कि सरकार अपनी छवि खुद खराब कर रही है। एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति भारतदर्शन कर रहे थे और दूसरी ओर देश की राजधानी जल रही थी।
अब बात करते हैं दंगों का ज़िम्मेदार कौन है। तो इमें कोई दो राय नहीं है कि दंगों के ज़िम्मेदार हम ही हैं। हम ही वे लोग हैं जो जाति, धर्म व क्षेत्रवाद, भाषावाद से ऊपर नहीं उठे हैं। हमारे नेताओं को हमने ही चुना है। वे लोग हमारी ही विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे उसी समाज का हिस्सा हैं, जिसमें हम रहते हैं।
वे वही बोलते हैं, जो हम सुनना चाहते हैं। उनको दोष देना बेकार है। हमें अपने आप को सुधारना है लेकिन अपने आप को सुधारना कोई नहीं चाहता है, क्योंकि यह तो मुश्किल है और अपनी समस्याओं के लिए दूसरों पर दोषारोपण करना कहीं अधिक आसान है। हम आसान रास्ता ही अपनाते हैं।
अपने आप को सुधारने की यात्रा बहुत लंबी है, यह कब समाप्त होगी, किसी को नही पता है। समाप्त होगी भी या नहीं, यह भी कोई नहीं जानता है। जब तक ये जवाब नहीं मिल जाते, तब तक ऐसे दंगों की आदत डाल लीजिए और उसका दोष सरकार , पुलिस व दूसरे धर्मों के लोगों पर लगाते रहिए।