हिंदी पट्टी में यह आम कहावत है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जिसे चाहे केंद्र में सरकार उन्हीं की बनती है। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा चुनाव में वाराणसी से चुनाव लड़ना एवं पूर्ण बहुमत प्राप्त करना उस कहावत को चरितार्थ करता है।
ये बातें तो लोकसभा चुनाव की हुईं मगर हम राज्यों के विधानसभा चुनावों के संदर्भ में बात करें तो आप पाएंगे कि हिंदी पट्टी के विधानसभा चुनावों में भी बिहार की राजनीतिक हवा हावी रहती है।
झारखंड विधानसभा चुनाव में भी दिखा है बिहार कनेक्शन
चाहे वह हाल में संपन्न हुआ झारखंड विधानसभा चुनाव हो या फिर देश की राजधानी दिल्ली के चुनाव की बात हो, चुनावी समीक्षकों ने यह स्वीकारा कि झारखंड में महागठबंधन के चुनाव जीतने के पीछे आरजेडी का साथ रहा है।
जबकि भाजपा के हारने का एक हद तक कारण जेडीयू एवं एलजेपी भी रहा, क्योंकि आरजेडी महागठबंघन के साथ चुनाव लड़ रहा था। जबकि भाजपा, जेडीयू एवं एलजेपी अलग-अलग लड़ रहे थे।
दिल्ली चुनाव में भी बिहार के राजनीतिक दलों साथ-साथ नेताओं की धमक साफ दिख रही है। भाजपा तथा काँग्रेस दोनों ही दलों के दिल्ली चुनाव प्रभारी बिहार से ही हैं।
मनोज तिवारी के सामने हैं कीर्ति आज़ाद
जहां भाजपा से मनोज तिवारी चुनाव अभियान की कमान संभाले हुए हैं, (वे दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष भी हैं) वहीं काँग्रेस से कीर्ति आज़ाद चुनाव समिति के अध्यक्ष हैं और अपना दमखम दिखा रहे हैं।
दोनों ही मूल रूप से बिहार से हैं। कीर्ति आज़ाद बिहार के दरभंगा से लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। हालांकि वह पिछला लोकसभा चुनाव झारखंड के धनबाद से लड़े थे मगर उनकी छवि राष्ट्रीय नेता की है, क्योंकि वह भारतीय क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भारत का प्रतिनिधित्व भी कर चुके हैं और दिल्ली में भी उनकी पकड़ काफी अच्छी है।
अकाली दल और भाजपा के बीच मनमुटाव
फिलहाल अकाली दल का भाजपा से मनमुटाव चल रहा है, क्यौंकि अकाली दल CAA का विरोध कर रही है और विरोधस्वरुप वह दिल्ली में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रही है।
ऐसे में भाजपा अकेली पड़ती नज़र आ रही थी। इस वजह से भाजपा ने बिहार के दलों पर पासा फेंका, क्योंकि दिल्ली में बिहार एवं पूर्वांचल के मतदाताओं की संख्या काफी ज़्यादा है।
भाजपा ने गठबंघन के तहत जेडीयू को दो, जबकि एलजेपी को एक सीटें दी हैं। इन परिस्थितियों में काँग्रेस भी पीछे नहीं रही और उसने बिहार के मुख्य विपक्षी दल आरजेडी से गठबंघन किया एवं उसे चार सीटें दी।
अब दिल्ली की बात हो और आम आदमी पार्टी का ज़िक्र ना हो, यह तो लगभग असंभव सी बात है। दिल्ली चुनाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूरे दमखम के साथ लगे हुए हैं।
वह भी बिहार एवं पूर्वांचल के वोटरों को लुभाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं और इस वजह से टिकटों के वितरण में इन इलाके के उम्मीदवारों को तरजीह दिए हैं। चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हों मगर बिहार का नेतृत्व दिल्ली में पुख्ता एवं और मज़बूत होने जा रहा है।