कितने विधायक-सांसद आए और गए किसी को हमारी समस्या नहीं दिखती। सब वोट लेकर चले जाते हैं। खेती-बाड़ी और घर के काम से इतनी फुरसत नहीं मिलती कि 6 किलोमीटर घूमकर मेन रोड पर जाएं। हम लोगों के किए बाज़ार जाना तक मुश्किल हो जाता है।
यह कहना है गांगी नदी से तीनों ओर से घिरे तलीसा गाँव की प्रतिमा देवी का, जो पेशे से किसान हैं। गाज़ीपुर ज़िले के सैदपुर तहसील के अंतर्गत आने वाला यह गाँव गंगा की सहायक नदी ‘गांगी’ से तीनों ओर से घिरा है। नैशनल हाइवे से मात्र 500 मीटर की दूरी पर स्थित होने के बावजूद भी पुल ना होने के कारण यहां आवागमन की सुविधाएं नदारद हैं।
ग्रामीणों को नैशनल हाइवे तक जाने के लिए 6 किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। इसके कारण यहां लगभग 3000 की आबादी प्रभावित है। ग्रामीण तमाम समस्याओं से जूझने को विवश हैं, जिनके दूरगामी परिणाम हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की सार्वजनिक जीवन में भागीदारी कम ही होती है, ऐसे में पुल का ना होना उनकी आवाजाही को और अधिक सीमित करता है। जैसा कि ‘प्रतिमा देवी’ भी बताती हैं कि ‘नदी पर पुल ना होने के कारण गाँव की महिलाओं के लिए बाज़ार जाना भी मुश्किल हो गया है। साथ ही, मेडिकल इमरजेंसी के समय एम्बुलेंस जैसी सुविधाएं भी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
कृषि केंद्रित इस गाँव के अधिकतर लोग अनाज और सब्ज़ियां उगाते हैं। पुल ना होने के कारण मंडी तक जाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है और कई बार वे स्थानीय साहूकारों को समर्थन मूल्य से कम कीमत पर अपनी उपज बेचने के लिए बाध्य होते हैं।
सब्ज़ी उगाने वाले सूबेदार ने क्या कहा?
सब्जी उगाने वाले सूबेदार कहते हैं,
आवागमन के साधन की अनुपलब्धता और पुल ना होने के कारण मैं मंडी नहीं जा पाता हूं। हमें पास के बाज़ार में ही एक स्थानीय कुंजड़े को उसकी मनचाही कीमत पर सब्ज़ियां देनी पड़ती हैं, जिससे उनको नुकसान होता है।
खोवा विक्रेताओं के लिए भी परेशानी का सबब
नदी में अप्रैल-मई को छोड़कर वर्ष भर पानी रहता है। इससे आवाजाही बाधित रहती है। खेती के अतिरिक्त दैनिक ज़रूरतों के लिए लोग जानवर पालकर दूध का खोवा बनाते हैं और पास के सैदपुर बाज़ार में बेचने जाते हैं।
खोवा विक्रेताओं के लिए नदी किसी अभिशाप से कम नहीं है। खोवा विक्रेता ‘जामवन्त’ बताते हैं कि हाइवे तक की अतिरिक्त दूरी उनका काम मुश्किल करती है। उधर से आने में कई बार देरी हो जाती है, जिसके कारण शाम को चारा जुटाने की समस्या खड़ी हो जाती है।
स्वास्थ्य और शिक्षा की बुनियादी सुविधाएं नदारद
इसके अतिरिक्त यहां की आबादी अस्पताल व शिक्षा जैसी बुनियादी चीज़ों के लिए भी संघर्ष करती है। इब्राहिमपुर, तलीसा प्राइमरी स्कूल में शिक्षा मित्र गौतम बताते हैं,
पुल ना होने के कारण नदी पार स्थित गाँव के बच्चे स्कूल भी नहीं आ पाते हैं। नदी के उस पार की बस्ती में पास में कोई भी और स्कूल नहीं है। इधर अगर पुल बन जाता तो वे बच्चे आराम से स्कूल आ पाते।
बरसात के दौरान आने वाली बाढ़ इस समस्या को और बढ़ा देती है। तलिसा गाँव के स्थानीय लोगों के लिए बरसात की बाढ़ केवल बरसात तक खत्म नहीं होती, बल्कि उसके दूरगामी प्रभाव होते हैं।
फसलें भी हो जाती हैं तहस-नहस
बाढ़ आने से गाँव का एक बड़ा इलाका डूब जाता है, जिससे फसल तहस-नहस हो जाती है। गाँव के लोगों के लिए उनकी फसलें केवल खाद्यान्न ज़रूरत पूरी करने का ज़रिया भर नहीं है, बल्कि गाँवों से बाहर निकलकर बनारस या दिल्ली पढ़ रहे उनके बच्चों के कॉलेज-यूनिवर्सिटीज़ की फीस और इलाज के खर्च के साथ वह सब कुछ है, जिसकी आवश्यकता इस पूंजीवादी युग में पड़ सकती है।
ऐसे में इन फसलों का जलमग्न होना किसानों के वर्तमान के साथ उनके भविष्य को भी डूबा देता है। पुल ना होने के कारण जहां साल भर ग्रामीण परेशान रहते हैं, वहीं बाढ़ उनकी वास्तविक पूंजी भी सफाचट कर जाती है।
शिक्षा मित्र गौतम कहते हैं,
इस गाँव में पुल के साथ चेक डैम की आवश्यकता है, जिससे बाढ़ की समस्या पर अंकुश लगे और साथ ही जल संरक्षण हो ताकि तीव्रता से घटता जलस्तर संरक्षित किया जा सके।
हालांकि सरकारी महकमा और जन प्रतिनिधि सीधे तौर पर इन सम्बंध में कन्नी काटते नज़र आते हैं। इस बाबत हमने क्षेत्र के विधायक से सम्पर्क करने की कोशिश की तो ज्ञात हुआ कि वो यहां नहीं रहते और कामकाज उनके भाई देखते हैं।
हालांकि कार्यालय पर जाने पर भी कोई मौजूद नहीं था। जनभावनाओं के साथ प्रतिनिधियों के वोट बैंक तक के रिश्ते के कारण यह क्षेत्र अब तक आवगमन की सुविधाओं से कटा हुआ है और लोग संघर्ष करने को बाध्य हैं।
नोट: गायत्री यादव Youth Ki Awaaz इंटर्नशिप प्रोग्राम जनवरी-मार्च 2020 का हिस्सा हैं।