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क्यों उदयपुर की आदिवासी महिलाओं की ‘परदे की बीमारी’ पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है

अपनी बात रखने से पहले मैं उदयपुर के गोगुन्दा इलाके के 3 तीन मामले सामने रखना चाहूंगा।

आदिवासी समुदाय,

आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं के प्रति बेपरवाही

आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति शासन-प्रशासन किस हद तक बेपरवाह है, इसके तमाम उदाहरण गोगुन्दा में आसानी से मिल जाते हैं। यहां ना तो महिलाओं के प्रजनन और माहवारी स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं और चिकित्सक मौजूद हैं और ना ही माहवारी प्रबंधन के साफ साधन उपलब्ध हैं।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी 2018-19  के अनुसार पर्वतीय और आदिवासी क्षेत्र में प्रति 80 हजार की आबादी पर एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) का होना आवश्यक है। किन्तु गोगुन्दा में 2.5 लाख की आबादी पर 03 के मुकाबले केवल 01 CHC ही कार्यरत है।

मंत्रालय की वेबसाइट बताती है कि  2.5 लाख की आबादी पर बेसिक मिनिमम सर्विसेज़ (BMS) के अनुसार कम से कम 3 स्त्री रोग विशेषज्ञों की नियुक्ति ज़रूरी है, किन्तु गोगुन्दा की एकमात्र CHC पर सालों से इकलौता पद भी रिक्त है।

इसका खामियाज़ा गरीब आदिवासी महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। सबसे बुरी स्थिति मेनोपॉज़ (माहवारी समापन की अवस्था) से गुज़र रही महिलाओं की है। इन महिलाओं की स्वास्थ्य जांच के लिए गोगुन्दा के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और उप स्वास्थ्य केन्द्रों में बेसिक सुविधाओं की नितांत कमी है। ऐसे में इन महिलाओं के पास उदयपुर स्थित महाराणा भूपाल अस्पताल आने या निजी अस्पतालों में जाने के सिवाय और कोई रास्ता नज़र नहीं आता।

भामाशाह सुविधा बंद होने से नहीं मिल रहा लाभ

गोगुन्दा में अगर स्वास्थ्य सेवाओं पर नज़र डालें, तो यहां महिलाओं के माहवारी से जुडी परेशानी होने पर सैम्पल की जांच करने की सुविधा गोगुन्दा CHC में उपलब्ध नहीं है। सोनोग्राफी की सुविधा भी केवल गर्भवती महिलाओं के लिए है। महिला चिकित्सक ना होने से माहवारी सम्बंधित परेशानियों से गुज़र रही महिलाएं इस अस्पताल का रुख तक नहीं करती हैं।

31 दिसंबर तक भामाशाह कार्ड धारक होने के चलते कुछ महिलाएं उदयपुर स्थित अस्पताल में इलाज करने आ भी जाती थी किन्तु यह कार्ड बंद के बाद इन महिलाओं तक नि:शुल्क उपचार का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है। ऐसे में हर गाँव में ये महिलाएं दर्द के साथ जीने को मजबूर हैं।  उदयपुर आने पर अपने तथाकथित पिछड़ेपन और भाषा के चलते भी आदिवासी इलाको की इन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार आम बात है।

गोगुन्दा की स्वास्थ्य सेवाओं पर एक नज़र

उदयपुर का गोगुन्दा उपखंड हाल ही में 2 तहसीलों में विभक्त हुआ है। सायरा के अलग तहसील बन जाने के बावजूद सारा प्रशासनिक काम गोगुन्दा से ही संचालित है। गोगुन्दा की 49 प्रतिशत आबादी आदिवासी है, जहां मुख्यतः भील- गमेती और गरासिया जनजातियां रहती हैं। पूरा उपखंड अरावली पर्वतीय वन क्षेत्र है।

आदिवासी महिलाएं

गोगुन्दा में कुल 40 उपस्वास्थ्य केंद्र संचालित है। एक ANM के भरोसे चलने वाले अधिकांश उप स्वास्थ्य केंद्र दोपहर 12 बजे बाद नहीं खुलते हैं। जबकि राजकीय प्रावधानों के अनुसार सभी ANM को उप-स्वास्थ्य केंद्र पर 24 घंटे रहना आवश्यक है।

ब्ल़ॉक में आबादी के अनुसार 07 की जगह कुल 05 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैं। 01 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गोगुन्दा तहसील मुख्यालय पर संचालित है। यह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अकेले ही 1007 वर्ग किलोमीटर का दायरा कवर करता है। गोगुन्दा में क्षेत्रफल और आबादी के अनुसार न्यूनतम 03 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होना आवश्यक है।

 

 

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