23 फरवरी की दोपहर दिल्ली के पूर्वोत्तर इलाकों में CAA का समर्थन करने वाले और इस विवादित एक्ट का विरोध करने वाले दो गुटों के बीच शुरू हुए टकराव ने जल्दी ही एक भयावह रूप ले लिया।
हिंसा की इस घटना ने दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम दंगों को भड़का दिया जिसकी भयावह तस्वीरें हम सभी ने सोशल मीडिया और न्यूज़ के माध्यम से देखी। ताजा खबर मिलने तक इस हिंसा में मरने वालों की संख्या 23 तक पहुंच चुकी है। साथ ही बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं।
इस घृणात्मक हिंसा की दृश्य और कहानियां परेशान करने वाली थी। कई ऐसे वीडिओज़ आए, जिनमें भीड़ का बेहद ही खौफनाक चेहरा देखने को मिला और मुमकिन है कि ऐसी तस्वीरें देखने के बाद समाज में लोगों का एक-दूसरे से भरोसा और भी कम हो जाए।
लेकिन इसके साथ कुछ ऐसे लोग और ऐसी कहानियां सामने आईं, जिसने इस टूटते भरोसे को सहेजने का काम किया। कुछ लोगों ने यह साबित किया कि हिंदुस्तान में अभी भी सांप्रदायिक सौहार्द और इंसानी लगाव की जगह बाकी है।
पहला मामला
मोहम्मद अनस एक पत्रकार हैं, दिल्ली में रहते हैं। जब दिल्ली में हालात बिगड़े, तब उन्होंने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर एक पोस्ट लिखा, जो कि इस प्रकार था:
“मेरे एक बहुत ही करीबी दोस्त का परिवार अकेला हिंदू परिवार है मुस्लिम मोहल्ले में। उनके घर पर माँ अकेली हैं। साठ वर्ष से अधिक उनकी आयु है। पिछले तीस सालों से मुस्तफाबाद में रह रहा है परिवार। अभी थोड़ी देर पहले उनके घर पर अटैक हुआ है। मेरी मुस्तफाबाद में रहने वालों से अपील है कि उन्हें बख्स दें। ऐसा न करें। उनका कोई कसूर नहीं है। यह बहुत ही गलत बात है। मुस्तफाबाद के लोग यदि मेरा पोस्ट पढ़ रहे हैं तो उनकी सुरक्षा करें। हाथ जोड़ कर विनती है मेरी। दिल्ली में रह रहे दोस्त इस पोस्ट को वॉयरल करें। जैसे भी हो उनकी हिफाज़त कीजिए।”
इसके साथ ही उन्होंने उस परिवार के घर का पता बताया। यह बात लोगों ने पढ़ी और इसका एक पॉज़िटिव नतीजा सामने आया कि उनके दो दोस्तों, मोमिन सैफी और शान अंसारी ने उस पते पर जाकर उनके दोस्त की माँ को भीड़ के बीच से बचाकर अपने घर लाए। इसके बारे में मोहम्मद अनस ने आगे लिखा,
आज मुस्तफाबाद में एक हिंदू ब्राह्मण परिवार की अकेली महिला अपने घर में फंस गईं। बाहर मुस्लिम बलवाईयों की भीड़ तोड़फोड़ कर रही थी। महिला मेरी दोस्त की माँ हैं। उसने मुझे फोन किया और मैंने मिनट भर के भीतर अपने फेसबुक से अपील की।
उन्होंने आगे लिखा,
मुझे मिनट के अंदर ही कई मुस्लिम दोस्तों के फोन आते हैं। दोस्तों ने अपने मित्रों को फोन लगाना शुरू किया। और आखिर में पंद्रह मिनट के अंदर मुस्तफाबाद के उस हिंदू ब्राह्मण परिवार के घर के बाहर दर्जनों मुसलमान पहुंच कर बलवाईयों के बीच से माता जी को सुरक्षित निकाल कर अपने घर में पनाह देते हैं।
वह आगे कहते हैं,
अब मुझे मालूम चला है कि कुछ कट्टरपंथी हिंदू मेरी उस फेसबुक पोस्ट के माध्यम से अपना एजेंडा सेट कर रहे हैं। मैं उन जानवरों को बताना चाहता हूं कि माता जी को बचाने वाले मुसलमान हैं। अफसोस इस बात का है कि इस लड़ाई में बेगुनाहों को निशाना बनाया जा रहा है। ना जाने कितने मुस्लिम परिवार, कट्टरपंथी हिंदुओं के बीच रहम की भीख मांग रहे हैं लेकिन कोई उनकी एक नहीं सुन रहा है। इंसानियत मर चुकी है।
बकौल अनस
चूंकि फेसबुक पर मेरे अच्छे खासे फॉलोवर हैं, हिंदू-मुसलमान हर कोई मेरी इज्ज़त करता है। मेरी बात मानता है, लगातार इस मामलें में लगने से मेरे दोस्त की माँ, जो कि मेरी भी माँ समान हैं, वे बच गईं। लेकिन उनका क्या जो हिंदू-मुस्लिम दंगाईयों के बीच फंसे हुए हैं। इंसानियत को बचा लीजिए। बेगुनाहों पर दया कीजिए। काश कि ऐसी ही कोई खबर बलवाई हिंदुओं के बीच फंसे किसी मुसलमान को बचाने के लिए आती तो अच्छा रहता। Momin Saifi और Shaan Ansari का शुक्रिया। मोमिन भाई अपने दोस्तों के साथ पहुंच कर माता जी को सुरक्षित अपने घर ले गए हैं। यही तो है असली हिंदुस्तान।
दूसरा मामला
दूसरी घटना है यमुना विहार की, जहां ऐसी ही कुछ स्थिति बनी थी। बस फर्क यह कि वहां एक मुस्लिम परिवार फंसा हुआ था। इंडिया टुडे के मुताबिक उस परिवार के एक सदस्य बताते हैं कि 24 फरवरी की रात तकरीबन 11:30 बजे एक भीड़ “जय श्रीराम” के नारे लगाते हुए उनके मोहल्ले में आती है और उनके घर के पास जमा होती है।
उनके घर से लगी एक बुटीक को उस भीड़ ने आग के हवाले कर दिया और फिर उनके घर से उनके कार और मोटरसाइकिल को निकाल उनको भी आग लगा दी। ऐसे में यह परिवार, जिसमें एक 2 महीने का बच्चा भी शामिल था, खतरे में आ गया। उसी वक्त उनके दोस्त और BJP के वार्ड पार्षद वहां पहुंचे और पागल हो चुकी भीड़ से उस परिवार को बचाया।
तीसरा मामला
जहां एक तरफ कई नेता, जिनपर माहौल को शांत बनाए रखने की ज़िम्मेदारी है, वे भड़काऊ बयान दे रहे हैं। वहीं क्रांति संभव जैसे युवा हैं, जो इस माहौल में भाईचारे को बनाए रखने के लिए गाँधी जी का रास्ता अपना रहे हैं।
हुआ यूं कि जब क्रांति ने अपने इलाके में माहौल खराब होते देखा तो वे अपने घर से निकले। सड़क पर बहुत ही तनावपूर्ण हालात थे। कुछ लड़के तो वहां पत्थर इकट्ठे करते भी दिखे। यह सब देख क्रांति संभव ने अपने दोस्त के साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता के और ‘हम नहीं लड़ेंगे’ जैसे नारे लगाने शुरू किए। देखते ही देखते उनके पीछे लोगों का पूरा हुजूम जुड़ गया और सभी यही नारे लगाने लगे। कुछ ही देर में हिंसा का वो माहौल शांत होने लगा।
चौथा मामला
यह मामला है वजीराबाद का, जहां कुछ लोगों ने साबित किया कि अगर भीड़ आग लगाने के लिए इकट्ठा हो सकती है, तो एक भीड़ इस आग को शांत करने के लिए भी खड़ी हो सकती है। देखिए यह वीडियो जिसमें लोग एकता और भाईचारे के नारे लगाते हुए सड़कों पर आए।
पांचवा मामला
ऐसी ही एक और तस्वीर ब्रिजपुरी से भी आई। इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे एक बुज़ुर्ग के पीछे लोग “हम अपनी कॉलोनी का माहौल नहीं बिगड़ने देंगे” और “हिंदू मुस्लिम एकता ज़िंदाबाद” के नारे लगाते हुए कॉलोनी का चक्कर लगा रहे हैं।
ये सब हमें एक रास्ता दिखाती है कि कैसे इस हिंसक और नफरती माहौल को शांति एवं साम्प्रदायिक सौहार्द की तरफ मोड़ा जा सकता है।