दिल्ली विधानसभा चुनाव हो और हिन्दी भाषी राज्य बिहार और उत्तर प्रदेश की चर्चा ना हो, यह असंभव सी बात है। यह कहावत है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुज़रता है और यह कहावत बहुत हद तक सही भी है।
सत्ताधारी दल भाजपा और उसके गठबंधन के पास उत्तर प्रदेश और बिहार से ही अकेले 100 से अधिक सांसद हैं। इसलिए पूर्वांचल के मतदाताओं को ध्यान में रखना हर पार्टी चाहेगी और अब तो चुनाव प्रचार भी खत्म हो गए हैं। 8 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे और 11 फरवरी को मतगणना होगी।
क्या है पूर्वांचल फैक्टर
दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की संख्या के अलग-अलग आंकड़े सामने आते हैं। न्यूज़लॉन्ड्री को दिए एक इंटरव्यू में दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी बताते हैं कि दिल्ली में 43 प्रतिशत वोटर पूर्वांचल के रहने वाले हैं।
जनसत्ता अखबार से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्रा, जो खुद भी पूर्वांचल से आते हैं, बताते हैं,
दिल्ली में 26 से ज़्यादा विधानसभा क्षेत्रों में 20 प्रतिशत वोटर पूर्वांचली हैं। वहीं, 10 विधानसभा क्षेत्रों में वोटरों की संख्या 50 प्रतिशत से ज़्यादा है। ऐसे विधानसभा क्षेत्र संगम विहार, बुरारी, किराड़ी, विकासपुरी और उत्तम नगर है।”
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर मनोज तिवारी का होना
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, जिन्होंने भोजपुरी गायक से सांसद बनने तक का सफर तय किया है, अभी वह दिल्ली में भाजपा की कमान संभाल रहे हैं। इसके पीछे बस एक ही वजह है कि वह पूर्वांचल से आते हैं और दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
इसको देखते हुए भाजपा के दिल्ली इकाई में मनोज तिवारी के विरोध के बावजूद भाजपा ने विधानसभा चुनाव की कमान मनोज तिवारी के हाथों में दे रखी है और चुनाव प्रचार में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बिहार के उप मुख्यमंत्री को भी प्रचार की अहम ज़िम्मेदारी दी गई है। इसके तहत पूर्वांचल के मतदाताओं की संख्या को ध्यान में रखा गया है।
भाजपा, उत्तर प्रदेश और बिहार में अपनी सरकार होने का फायदा उठाना चाहती है। वहीं, भाजपा की तरफ से दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार की कमान वैसे तो प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के हाथों में है।
काँग्रेस के लिए कितने महत्वपूर्ण हो सकते हैं कीर्ति आज़ाद
उसी प्रकार काँग्रेस भी भाजपा के पूर्व सांसद और अब काँग्रेस के नेता कीर्ति आज़ाद के ज़रिये दिल्ली के चुनावों की राजनीति को साधने की कोशिश कर रही है। गौरतलब है कि कीर्ति आज़ाद भारतीय क्रिकेट टीम का भी हिस्सा रह चुके हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वह भाजपा से काँग्रेस में आए और झारखंड के धनबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था लेकिन उनकी भी अपनी राष्ट्रीय पहचान है।
भले ही कृति आज़ाद अभी काँग्रेस में आए हैं लेकिन इनके पिता भागवत झा आज़ाद बिहार के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं, जो काँग्रेस के कद्दावर नेता थे। कीर्ति आज़ाद भी दरभंगा से तीन बार लोकसभा सदस्य और दिल्ली के गोल मार्केट से विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
इसलिए काँग्रेस ने भी अपनी शून्य को दूर करने के लिए और पूर्वांचल के मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रमुख बनाया है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, जिनकी शादी उत्तर प्रदेश में कन्नौज में हुई थी और उन्होंने भी खुद को पूर्वांचल का कहकर हमेशा राजनीति की।
लेकिन अभी काँग्रेस के पास शीला दीक्षित की मृत्यु के बाद कोई वैसा नेता नहीं है, जो दिल्ली की जनता पर अपना प्रभाव छोड़ सके। इसलिए काँग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। काँग्रेस मैदान में अपने कुछ प्रत्याशियों और राष्ट्रीय नेतृत्व के दम पर चुनाव लड़ रही है। इसलिए काँग्रेस की कोशिश है कि किसी भी तरह से अपना वोट प्रतिशत बढ़ाते हुए विधानसभा में अपने शून्य के नंबर को समाप्त किया जा सके। जबकि 2013 तक पूर्वांचल के तमाम मतदाता काँग्रेस के साथ थे।
अरविंद केजरीवाल की प्रासंगिकता
आम आदमी पार्टी को अपने पिछले पांच सालों के कामों पर भरोसा है। वहीं, अरविंद केजरीवाल का एक मज़बूत चेहरा भी काफी बड़ा फैक्टर है। जबकि और किसी दल के पास अरविंद केजरीवाल को टक्कर देने के लिए कोई नेता नहीं है। भापजा के प्रदेश अध्यक्ष तो अरविंद केजरीवाल के सामने कहीं दिखाई नहीं देते हैं।
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को पिछले चुनाव में किए गए बिजली, पानी, स्वास्थ्य, मोहल्ला क्लिनिक और सरकारी स्कूल जैसे बुनियादी वादे को पूरा करके अपने भरोसे को मज़बूत किया है।
ऐसे में भला केजरीवाल भी कैसे पीछे रहते! पूर्वांचल के मतदाताओं की बात की जाए तो पिछले विधानसभा चुनाव में आप के 14 विधायक पूर्वांचल से आते थे। इस बार भी आप के 12 प्रतयाशी पूर्वांचल से संबंध रखते हैं।
आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, दिल्ली इकाई के पूर्व प्रमुख दिलीप पांडे और सरकार में मंत्री और वर्तमान दिल्ली इकाई के प्रमुख गोपाल राय भी पूर्वांचल से ही आते हैं। दिल्ली में अपने किए गए विकास और राजनीतिक समीकरण को बखूबी समझने वाले केजरीवाल को पूरी उम्मीद है कि फिर से उनकी वापसी ज़रूर होगी। अब यह तो परिणाम ही बताएगा।