आतंकवाद के बाद जलवायु परिवर्तन मानव सभ्यता को नष्ट करने में अहम भूमिका निभाएगा या निभा रहा है। इसके परिणाम भी आ रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग और उसके बाद आई भीषण बाढ़। आग ने जहां जंगल के ज़्यादातर इलाके को जलाया, उसके साथ-साथ कई जानवरों की प्रजातियों पर भी खतरा मंडराने लगा। कई जानवरों की प्रजाति खत्म होने की कगार पर पहुंच गई हैं।
क्या थी ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग की वजह
ऑस्ट्रेलिया में लगी आग के पीछे समुंदर के पानी के तापमान में बढ़ोतरी और ग्रीन हाउस गैस प्रमुख कारण हैं। समुंदर में हो रहा खनन और उसके भीतर हो रहे हथियारों के परिक्षण बेहद जानलेवा साबित हो रहे हैं। इसके चलते समुंदर का जैविक संतुलन बिगड़ता जा रहा है, जो मानव सभ्यता के लिए सही नहीं है।
इसके साथ-साथ फिलिपींस, हवाई और इंडोनेशिया जैसे देशों में सक्रीय ज्वालामुखी लगातार लावा उगल रही है। यह साफ दर्शाता है कि ज़मीन के अंदर हलचल बहुत तेज़ हो गई है।
इसके पीछे भी ज़मीन का गैर-कानूनी उत्खनन कारण है। ज़मीन के अंदर के खनिज तत्वों को पहले खोज लेने की दौड़ में सबकुछ भूलकर हम उसके मूलभूत ढांचों को क्षति पंहुचा रहे हैं। इससे ज़मीन का ऊपरी स्तर कमज़ोर होता जा रहा है और बाढ़, बारिश में भूस्खलन के किस्से बढ़ रहे हैं।
पेड़ों के धड़ल्ले से काटे जाने के परिणाम
लगातार पेड़ और जंगल का आवरण कम होने से वातावरण में ज़बरदस्त परिवर्तन हो रहा है, जिससे बारिश, ठंड और गर्मी के प्रमाण में असाधारण बढ़ोतरी हो रही है। हर मौसम बेहद ही कठोर हो रहा है। ठंड बढ़ने से उन जगहों पर भी बर्फ गिरने लगी है, जहां बर्फ नहीं गिरती थी। वही हाल गर्मी और बारिश का भी है।
इन सबके अलावा कृषि में हद से ज़्यादा उपयोग किए जाने वाले कीटनाशक और कृत्रिम रासायनिक खाद भी जलवायु के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहे हैं। ये अंत में ज़मीन, पानी और हवा को प्रदूषित करते हैं। साथ-ही-साथ इनके उपयोग से उत्पन्न चीज़ों को भी बेअसर और पोषण रहित कर रही है।
मतलब यह है कि विकास और प्रगति की राह पर हमने प्रकृति का इतना नुकसान कर दिया है, जिसके परिणाम सामने होने के बावजूद हम उन्हें खामोश बैठे हैं। अभी वक्त रहते हम नहीं संभले तो हमें आगे और भी विनाशकारी परिणाम भुगतने होंगे। हम इंसान ही इंसान के दुश्मन बन बैठे हैं। जलवायु का परिवर्तन असाधारण है, इसका परिणाम मानवसभ्यता का विनाश भी हो सकता है।